भारत और भारतीय राजनीति दोनों को प्याज ने पिछले पाँच दशकों से बहुत प्रभावित किया है प्याज की कमी न केवल खाने का जायका खराब करती है बल्कि राजनीति का जायका भी खराब कर देती है सन 1998 में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा के प्याज नहीं खाने के ब्यान से उनकी मुख्यमंत्री कुर्सी चली गयी थी और बाद में भाजपा की सरकार भी चली गयी थी आजादी के बाद से लेकर अबतक प्याज अनेक सरकारों की आहुती ले चुका है इस बार भी महाराष्ट्र की प्याज क्षेत्र से आने वाली 15 से ज्यादा लोकसभा सीटों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं और इसकी गूंज महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगी | परंतु प्याज के उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए पिछले दस वर्षों में नेफेड एवं भारत सरकार के प्रयासों की सराहना अवश्य ही की जानी चाहिए | परंतु महाराष्ट्र के प्याज क्षेत्र की सीटों के नतीजों से साफ जाहीर होता है कि नेफेड के प्रयासों को ठीक से न तो समझा गया है और न ही उसके कारण किसानों एवं उपभोक्ताओं के जीवन में आए बदलावों को महसूस किया गया है जिस तेजी से किसानों के हितों को ध्यान में रखकर नेफेड ने प्याज की नीति बनाने में सरकार का सहयोग किया है उसको लागू करने में सफलता परप्त की है और व्यवहरिक अवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अपनी नीतियों में सुधार किया है वो तारीफ के योग्य है इसलिए मुझे लगा कि इसकी चर्चा अवश्य ही की जानी चाहिए |
आज जो लोग भी नेफेड एवं सरकार पर उंगली उठा रहे हैं उनको यह जानना जरूरी है कि पिछले 10 वर्षों में किस प्रकार नेफेड ने किसानों, उपभोक्ता एवं सरकार तीनों के हितों को ध्यान में रखकर प्याज की खरीदी, रख-रखाव एवं डिस्पोसल संबंधी नीति बनाई और आवश्यकतानुसार उसमें व्यापक बदलाव किए हैं | नेफेड ने न केवल विचौलियों की भूमिका को सीमित किया है बल्कि किसानों को उनके उत्पादन की उचित कीमत दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है प्याज के भंडारण की व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव किए हैं और उसके रख-रखाव से जुड़े आधारभूत ढांचे के विकास को किसान उत्पादक संगठनों से जोड़ा है किसानों की आय के अनेक श्रोत विकसित करने में मदद की हैं उपभोक्ताओं को कालाबाजारी एवं जमाखोरी के कारण उत्पन्न महंगाई से बचाने का काम किया है इसके साथ-साथ सरकार के संसाधनों को बचाने का काम भी काम किया है | इसको हम अलग- अलग करके निम्न प्रकार से समझ सकते हैं :-
1. नरेंद्र मोदी सरकार आने से पहले प्याज को लेकर सरकारों की कोई स्पष्ट नीति नहीं थी और 2014 से पहले सुरक्षित भंडार (बफर स्टाक) जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी आवश्यकता पड़ने पर उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखकर मूल्य स्थितिकरण कोष (MIS Scheme) के माध्यम से कभी-कभार खरीद होती थी उसके लिए संसाधनों की भी कमी थी इसी कारण 2014-15 में प्याज के दामों को नियंत्रित करने में सरकार असफल रही थी भाजपा शासनकाल के दौरान 2015 में जब प्याज के दाम वेतहाशा बढ़े तो नेफेड के पास मात्र 2656 टन प्याज उपलब्ध था जबकि दिल्ली की आजादपुर मंडी में एक दिन की खपत 700 से 1100 टन के आसपास होती थी इसके बाद नेफेड ने किसान उत्पादक संगठनों एवं सहकारी संस्थाओं के साथ बातचीत करने के पश्चात अपनी नीति में व्यापक बदलाव लाने का निर्णय लिया और PPP मॉडल के तहत किसान उत्पादक संगठनों को भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया | उनको आधारभूत ढांचा विकसित करने के लिए आर्थिक सहयोग के साथ-साथ भंडारण, रख-रखाव इत्यादि का सुनिश्चित व्यवसाय (Assure Business) देने का अनुबंध किया जल्दी ही इसके सुखद परिणाम आने प्रारंभ हो गए और साल दर साल प्याज की भंडारण क्षमता बढ़ती चली गयी | उसकी तकनीक में भी काफी सुधार हुआ | नेफेड एवं भारत सरकार ने मिलकर संसाधनों की कोई कमी नहीं होने दी | सन 2015 में जहां नेफेड ने 4 करोड़ 64 लाख रुपए की कीमत से 2656 टन प्याज खरीदी हुई थी और इतनी की भंडारण क्षमता थी वो बढ़कर 2019-20 में 76 करोड़ के बजट के साथ 58,287 टन प्याज हो गई और 2021-22 तक 439 करोड़ की कीमत से 2 लाख 13 हजार टन हो गयी आज मुझे इस बात का जिक्र करते हुए गौरव है कि पिछले वर्ष अर्थात 2023-24 में नेफेड ने कुल 542 करोड़ के बजट के साथ लगभग 7 लाख टन प्याज की खरीदी की है अर्थात खरीदी बजट में 116 गुना, भंडारण क्षमता में 188 गुना बृद्धि हुई है |
2. नेफेड ने पीपीपी मॉडल के आधार पर भंडारण क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया और आज अकेले महाराष्ट्र में भंडारण क्षमता 2650 टन से बढ़कर लगभग 5 लाख टन हो गई है इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि नेफेड ने अपनी क्षमता बढ़ाने की बजाय किसान उत्पादक संगठनों की भंडारण क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया और इसके लिए उनको संसाधन उपलब्ध करने के साथ-साथ भारत सरकार की योजनाओं से जोड़ने का भी काम किया | आज किसान उत्पादक संगठनों की भंडारण क्षमता का विकास तो हुआ है साथ ही प्याज के यही भंडार उनकी अतिरिक्त आय के साधन भी बन गए हैं प्याज की खेती के अलावा किसानों के पास भंडारों का किराया, निगरनी एवं लदाई-उतराई इत्यादि का व्यवसाय है एक अनुमान के अनुसार पिछले वर्ष किसान उत्पादक संगठनों को इन सब माध्यमों से लगभग 100 करोड़ की अतिरिक्त आय प्राप्त हुई है
3. नेफेड के प्रयासों से किसानों को प्याज के ऊंचे दाम मिलने प्रारंभ हो गए हैं विशेषकर ज्यादा उत्पादन की दशा में प्याज के दामों में भरी गिरावट देखने को मिलती है ऐसे समय नेफेड के बाजार में आने से प्याज के दामों में बढ़ोतरी देखी गयी है जिसका सीधा लाभ जागरूक किसानों को अवशय ही मिलता है | किसानों की धारण (होल्डिंग) क्षमता बढ्ने से भी किसानों को प्याज के ज्यादा दाम मिलने में मदद होती है और मौसम के आगे-पीछे प्याज के काफी अच्छे दाम मिलते हैं पिछले वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि किसानों को नेफेड एवं भारत सरकार के हस्तक्षेप से समान्य से ज्यादा दाम मिले हैं जैसे कि 2017-18 में 26 रुपए 95 पैसे तक, 2020-21 में 28 रुपए 90 पैसे, 2021-22 में 20 रुपए 56 पैसे, 2023-24 में 19 रुपए से 34 रुपए तक नेफेड से भुगतान हुआ है यदि उस समय की बाजार की बाजार के भाव देखें तो 8-9 रुपए, 11-12 रुपए यहाँ तक कि उससे भी नीचे खुल रहे थे परंतु नेफेड एवं एनसीसीएफ़ के बाजार में उतरने से प्याज के दामों में लगातार बढ़ोतरी हुई |
4. नेफेड के प्रयासों से भंडारण एवं प्याज के रख-रखाव में काफी सुधार हुआ है | नई-नई तकनीकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया है जिसके परिणाम स्वरूप प्याज की रिकवरी में अभूतपूर्व बृद्धि देखने को मिली है जहां पहले 35 से 50 प्रतिशत के बीच रिकवरी आती थी वहीं अब नेफेड के प्रयासों से बढ़कर 63 प्रतिशत तक पहुँच गयी है अर्थात यदि हम 2014 से पहले की रिकवरी की तुलना वर्तमान की रिकवरी दर से करें तो रिकवरी का प्रतिशत बढ़ने से अनुमानत: इस वर्ष सरकार को लगभग 100 करोड़ रुपए की बचत होगी |
5. भारत सरकार की इस नीति से पिछले 10 वर्षों में किसान के साथ उपभोक्ताओं को भी काफी फायदा हुआ है | बफर स्टाक की योजना लागू होने के बाद जहां एक तरफ किसानों को ज्यादा दाम मिलने प्रारंभ हो गए वहीं दूसरी तरफ बाजार में प्याज के दामों को नियंत्रित करने में सरकार को सफलता मिली है जिसके कारण कालाबाजारी एवं जमाखोरी पर लगाम लगी है यदि पिछले 7-8 वर्षों की बात करें तो 2018 के अपवाद को छोडकर प्याज के दाम एक स्तर से ऊपर नहीं गए हैं पिछले वर्ष लौटते मानसून की भारी बारिश के कारण रवि की फसल खराब हो गयी थी और खरोफ की फसल सामान्य से तीन महीने देरी से आई | इसके बावजूद सरकार ने प्याज के दामों को नियंत्रण में रखने में सफलता प्राप्त की थी ऐसा पहले लगभग असंभव था इसका श्रेय भी नेफेड एवं एनसीसीएफ़ को जाता है |
यदि उपरोक्त तथ्यों को देखा जाए तो हम कह सकते है कि नेफेड के सहयोग से भारत सरकार की बफर बनाने की नीति के माध्यम से प्याज की खरीदी, रखरखाव एवं बिक्री की व्यवस्था में व्यापक बदलाव हुए हैं एक तरफ प्याज के लिए बजट राशि 4.64 करोड़ से 542 करोड़ हो गयी है दूसरा इस राशि का भुगतान सीधा किसान के खाते में हो रहा है जिससे किसानों की आय में काफी बृद्धि हुई है तीसरा प्याज के किसानों को उत्पादन का दाम 7-8 रुपए से बढ़कर 34 रुपए तक मिलने प्रारंभ हुए हैं जिसके कारण किसानों का विश्वास बढ़ा और उत्पादन में अभूतपूर्व बृद्धि हुई है देश प्याज निर्यात का केंद्र बना है चौथा प्याज के भडारण एवं रख-रखाव में काफी सुधार हुआ है जिससे सरकार के पैसे में बचत हुई है पाँचवाँ किसानों की आय में प्याज की खेती के अलावा आय के अन्य श्रोतों का विकास हुआ है एवं कृषि रोजगार में बृद्धि हुई है छठा उपभोक्ताओं को कालाबाजारी एवं जमाखोरी से छुटकारा मिला है सरकार का निर्यात शुल्क समाप्त करने का फैसला भी स्वागत योग्य है और प्याज उत्पादक किसानों की आय बढाने में काफी सहायक सिद्ध होगा | नेफेड की आलोचना करने वालों से मेरा आग्रह है कि वे केवल कमियों पर ही ध्यान न देकर पिछले 11 वर्षों में नरेंद्र मोदी शासनकाल के दौरान नेफेड एवं उसके अधिकारियों द्वारा अथक परिश्रम से लाये गए बदलावों का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात ही कोई राय बनाएँ |
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अशोक कुमार ठाकुर
निदेशक, नेफेड, भारत सरकार