Ashok Thakur

Saturday, 12 December 2020

कृषि कानूनों का विरोध छोटे एवं गरीब किसानों के हितों पर कुठाराघात – अशोक ठाकुर


नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार गरीबों के लिए समर्पित सरकार है ऐसा उन्होंने संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद न केवल कहा था बल्कि अपने पिछले 6 वर्षों के कार्यकाल में गरीब, मजदुर एवं छोटे किसानों के लिए काम करके सिद्ध भी कर दिया है | किसानों के नाम पर होने बाले भ्रष्टाचार को समाप्त करने में मोदी सरकार ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है और इसी दिशा में काम करते हुए सरकार ने गरीब एवं माध्यम दर्जे के किसानों के हितों को ध्यान में रखकर तीन कृषि कानून बनाये हैं | पंजाब के कुछ बड़े एवं समृद्धशाली किसान आन्दोलित हैं दिल्ली के सीमा क्षेत्रों से आम जनता एवं आवश्यक चीजों की आवाजाही रोककर सरकार पर दबाब बढ़ाने की कोशिश भी की है | मुझे लगता है कि पंजाब और आसपास के कुछ लाख किसान देश के करोड़ों किसानों के लिए लाभदायक कानूनों को धक्काशाही से और सरकार पर अनुचित दबाब बनाकर कानूनों को समाप्त कराना चाहते हैं इसमें विपक्षी राजनैतिक पार्टियों के हित छिपे हैं जो पार्टियाँ पिछले तीन दशकों में किसानों की मांगों को लेकर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ीं,| वे आज अनेक सुझाव दे रहे हैं | वो भी ऐसे सुझाव जिनको स्वयं लागू करने की जहमत नहीं उठाई | इन संशोधनों को रोकना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है |

सरकार किसान संगठनों से बात करने और कृषि कानूनों में न्यायोचित बदलाव के लिए भी तैयार है | इस संबंध सरकार ने किसान संगठनों को प्रस्ताव भी भेज दिए हैं जिसमें लगभग सभी शंकाओं का निवारण भी कर दिया है परन्तु फिर भी वे तीनों कानूनों को वापिस लेने के लिए अड़े हैं | इसके पीछे कुछ राजनैतिक शक्तियाँ एवं राजनैतिक साजिश की भी बू आ रही है | इन कानूनों से किसानों का कितना भला और कितना नुकसान है इसका आंकलन तो किसानों को ही करना होगा | लेकिन ऐसा संभव हो नहीं हो पा रहा है क्योकि आन्दोलन कुछ बड़े, समृद्धशाली, प्रभावशाली एवं विचौलिया लोबी के हाथों में चला गया है और किसान संगठन भी उनके दबाव में है जो किसानों को आधी-अधूरी सच्चाई बता रहे हैं |   

§  कृषि सुधारों की मांगें चार दशक पुरानी हैं पिछले चार दशकों से ये मांग उठती रही है 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद, इसने अधिक जोर पकड़ लिया था | अनेक कृषि विशेषज्ञयों ने भी समय-समय पर इसकी मांग की है इन मांगों के दबाव में ही स्वामीनाथन आयोग की स्थापना की गयी थी जिसकी सिफारिशें भी सन 2004 से 2006 के बीच आ गयी थीं जिनको लागू करने की मांग भी एक दशक तक लंबित रही | परन्तु तत्कालीन मनमोहन सरकार उसको लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी | किसानों की मांगों के दबाब में कांग्रेस ने भी अपने 2009, 2013 एवं 2019 लोकसभा चुनावों के घोषणा पत्र एवं संकल्प पत्र में भी कृषि सुधारों का वायदा किया था जिसका वे आज विरोध कर रहे हैं जो आश्चर्यजनक और कांग्रेस की लगातार गिरती राजनैतिक विश्वनीयता का जीता-जगता उदहारण है |

मोदी सरकार ने सन 2015 से ही किसानों की आय को बढ़ाने के लिए अपेक्षित कृषि सुधारों की  दिशा में काम करना प्रारंभ कर दिया था जिसकी स्वयं स्वामीनाथन जी ने भी सराहना की थी | सन 2016 में सरकार ने देश के जाने-माने 300 कृषि विशेषज्ञयों के साथ तीन दिनों तक गहन चर्चा की थी किसानों की एक-एक समस्या को चिन्हित किया गया और अलग समूह बनाकर भी चर्चा की थी विभिन्न सिफारिशों को सामने रखकर विचार हुआ था इसमें कृषि विशेषज्ञों के अलावा स्वयं प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री रामविलास पासवान, खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री,  कृषि सचिव, योजना आयोग के सदस्य एवं अनेक महत्वपूर्ण लोगों ने हिस्सा लिया था | इसके समाप्ति पर राज्यसभा टीवी ने एक परिचर्चा का आयोजन किया था जिसमें, मैं स्वयं कृषि सचिव, किसानों की आय दुगुनी करने के लिए काम करने वाली समिति के अध्यक्ष अशोक दलवी जी एवं अन्य के साथ मौजूद था इस दौरान सरकार के इस प्रयास की काफी सराहना हुई थी इसके बाद भी सरकार समय-समय पर किसान प्रतिनिधियों एवं कृषि विशेषज्ञयों से बातचीत जारी रही और आज किसान को मिलने वाली 6000 रूपये की किसान सम्मान निधि की वार्षिक सहायता एवं ए-2 + एफएल फार्मूले के साथ कृषि उपज पर लागत मूल्य का 50 प्रतिशत लाभ के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण उसी का परिणाम है इसलिए किसान नेताओं का यह कहना कि कृषि सुधारों की मांग उन्होंने नहीं की है या सरकार बिना तैयारी के अचानक लायी है सरासर गलत है | सरकार ने किसानों की लम्बी मांगों को ध्यान में रखकर एवं पूरी तैयारी के साथ कृषि कानूनों में वो सुधार करने का निर्णय लिया है जो किसानों के हित में है |

§  दूसरा कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम में सुधार को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है और ये शंका जाहिर की जा रही है कि मंडियां समाप्त हो जाएँगी | जबकि सरकार ने 2015 से ही मंडियों को मजबूत एवं आधुनिक बनाने के लिए बजट बढाना प्रारंभ कर दिया था पहले चरण में 585 मंडियों को ई-नाम से जोड़ने के लिए इनका बजट लगभग पांच गुना बढाकर 75 लाख कर दिया था इसके अलावा केंद्र सरकार ने 22 हजार छोटे हाटों को कृषि मंडीयों में परिवर्तित करने का काम प्रारंभ किया जो आज भी जारी है इन सुधारों के बाद मंडियों के विस्तार एवं आधुनिकरण में तेजी आएगी | राज्य सरकारें एपीएमसी क्षेत्र के बाहर मार्किट फीस कम होने के कारण दबाव में आएँगी | वर्तमान मंडियों की प्रबंधक समितियों का एकाधिकार कम होगा और प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हें अपने साथ रखने के लिए किसानों को ज्यादा सुविधाएं देनी पड़ेंगी | जिसका सीधा फायदा किसानों को होगा | किसानों की कृषि सहकारी संस्थाएं एवं किसान उत्पादक संगठनों को उनके उत्पादों को खरीदने एवं बेचने की अलग से छुट होगी | जो उनको सीधे फ़ूड चेन से जोड़ने का काम करेंगे और विचौलियों की भूमिका को कम करेंगे | निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा के कारण उनपर भी किसानों को ज्यादा अच्छी सेवाएँ देने का दबाव होगा | अभी इन संस्थाओं के प्रबंधक अपने एकाधिकार के कारण सुस्त रहते हैं | जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है | इन सुधारों के बाद उन्हें किसानों को ज्यादा बेहतर सेवाएँ एवं सुविधाएं देनी पड़ेंगी | जो किसानों के हित में हैं आज नेफेड अपने स्तर पर पहले चरण में 100 आधुनिक मंडियों की स्थापना कर रही है जो वर्तमान सरकारी मंडियों को अपनी सेवायों में सुधार के लिए बाध्य करेंगी | सरकार ने उपलब्ध 8 हजार किसान उत्पादक संघों के अलावा 10 हजार नए एफपीओ बनाने का काम प्रारंभ किया है जिसके लिए लगभग रूपये 6,850 करोड़ का प्रावधान भी किया गया है | इसके अलावा सरकार ने नए कृषि सुधार अधिनियमों के प्रकाश में किसानों को प्रशिक्षण देने का कार्य भी प्रारंभ किया है | इस कार्य में पैसे की कमी न आये इसके लिए सरकार ने 1 लाख करोड़ के बुनियादी ढांचा विकास फण्ड की घोषणा की है किसानों एवं कृषि संस्थओं को मजबूत बनाने के सभी काम युद्ध स्तर पर जारी है जिसके परिणाम जल्द ही दिखाई देने लगेंगे | जिसके बाद निजी क्षेत्र के लोगों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा जिसका अंतत: किसानों को फायदा मिलेगा | सरकार के वर्तमान प्रस्ताव अर्थात राज्यों सरकारों को निजी मंडी एवं कर लगाने की छूट देने एवं पंजीकरण के लिए नियम बनाने की छुट देने के बाद किसानों को आश्वस्त हो जाना चाहिए |      

§  तीसरा न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम फैलाए जा रहे हैं | परन्तु कुछ तथ्यों आर गौर करने से किसानों का भ्रम दूर हो सकता है जैसे कि आज कांग्रेस एवं अन्य दल एमएसपी की गारंटी की बात कर रहे हैं जबकि कांग्रेस ने अपने 10 साल के कार्यकाल में इसको चिमटे से भी छूने से परहेज किया था जबकि मोदी सरकार ने ए-2 + एफएल के फोर्मुले के तहत स्वामीनाथन की मांग को स्वीकार कर कृषि उत्पाद की लागत पर 50% मुनाफे के साथ एमएसपी के निर्धारण का निर्णय लिया | दूसरा चंद फसलों की बजाय 23 फसलों को इसके दायरे में लाने का काम किया | तीसरा कुल उत्पादन की खरीदी जो 2014 से पहले 7 से 8 प्रतिशत ही होती थी जिसका लाभ 5% से भी कम किसानों को मिलता था वहीं आज धान में कुल उत्पादन की 43%, गेहूं में कुल उत्पादन की 36%, गन्ने के कुल उत्पादन की 80% एवं कपास के कुल उत्पादन की लगभग 30% तक खरीदी करने का काम किया है दलहन एवं तिलहन में तो बजट 650 करोड़ रूपये से बढाकर 50 हजार करोड़ करते हुए वार्षिक खरीदी को सवा लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 35 लाख मीट्रिक टन तक ले जाने का काम किया है | जो कि पहले के मुकाबले 30 गुना से भी ज्यादा है | मोदी सरकार दवारा लिखित आश्वासन देने के बाद एमएसपी के संबध में कोई सवाल बचना ही नहीं चाहिए |

§  शांता कुमार समिति की सिफारिशों पर भी गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया | शांता कुमार जी ने कभी भी एमएसपी समाप्त करने की बात नहीं की थी और न ही एफसीआई को समाप्त करने की बात की है बल्कि उन्होंने एफसीआई की दोषपूर्ण खरीदी, बिक्री एवं भंडारण व्यवस्था को सुधारने की बात कही थी और एफसीआई की खरीदी, भंडारण एवं बिक्री प्रक्रिया में राज्यों एवं अन्य निजी संस्थाओं को जोड़ने की भी सिफारिस की थी | उनकी मंशा पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लाने की थी | जिससे ये संस्था किसानों के प्रति ज्यादा व्यवसायिक, जबावदेह बन सके | केंद्र सरकार द्वारा मंडियों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार राज्यों को देने के बाद ये सवाल भी समाप्त हो गया है |

§  मैं समझता हूँ कि आज जिन परिस्थितियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को गुजरना पड़ रहा है ऐसा ही परिस्थितयों से एनडीडीबी की स्थापना एवं हरित क्रांति के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी को भी गुजरना पड़ा था | एनडीडीबी की स्थापना के समय काफी विरोध झेला था और मात्र 500 रूपये के बजट का भी प्रावधान नहीं कर सके थे | लेकिन वो अपने फैसलों के साथ खड़े रहे और बाद में सभी शंकाओं से परे उस समय के सुधारों के परिणाम सुखद निकले थे | श्वेत क्रांति एवं हरित क्रांति के बाद दुग्ध एवं अन्न उत्पादन में देश न केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि लाखों किसानों के जीवन में खुशहाली लाने का भी काम किया | आज अनेक निजी कंपनियों के बाजार में होने के बाबजूद अमूल, इफ्फको, नेफेड एवं कृभको अग्रणी कृषि संस्थाएं हैं | मोदी सरकार के कार्यकाल में इनके जैसी हजारों संस्थाओं  का बजट एवं कारोबार पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है | आज किसान उत्पादक संगठन तेजी से विकसित हो रहे हैं | देश का फल, सब्जी , दलहन, तिलहन एवं अन्न उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुच गया है | इन संस्थाओं ने लाखो करोड़ का बुनियादी ढांचा एवं कारोबार खड़ा कर लिया है वे निजी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कम्पनियों को टक्कर देने में सक्षम हैं इसलिए किसानों को कतई आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है | ऐसा कहना कि कृषि क्षेत्र पर पूंजीपतियों का कब्जा हो जायेगा या किसानों की जमीनें छीन ली जाएँगी | उनपर सरकार ने जो प्रस्ताव दिए हैं उनसे सभी शंकायें का निराकरण कर दिया है | सरकार ने विवाद को एसडीएम कोर्ट से बाहर सिविल न्यायलय में जाने की शर्त को स्वीकार कर लिया है | कृषि अनुबंधों की सारी जिम्मेदारी किसान के बजाय करार करने वाली कंपनी पर डाल दी है और स्पष्ट कर दिया है कि किसान पर न तो कोई पेनल्टी लगेगी और न ही जमीन पर ऋण लेने अथवा कुर्की करने का अधिकार होगा | किसान की जमीन पर खड़ी सरंचना अगर तय समय के अन्दर नहीं हटाई गयी तो किसान को मालिकाना हक़ मिल जायेगा | मुझे लगता है कि अब किसानों के जमीन पर पूंजीपति कब्ज़ा कर लेंगे | इस प्रकार की बात करने का कोई औचित्य नहीं रह गया है | इसके अलावा इन विधेयकों के अलावा भी बिजली एवं पराली के संबंध में भी सरकार ने किसानों को रहत देने की बात की है     

    इसलिए मेरा किसानों से कहना है कि मोदी सरकार की मंशा को समझना चाहिए | जिसने पिछले वर्षों में कृषि बजट को 12 हजार करोड़ से बढ़ाकर 1 लाख 34 हजार करोड़, कृषि शोध को बढ़ावा देने, कृषि उपज के सभी खर्चे एवं परिवार की मजदूरी जोड़कर लागत का डेढ़ गुना एम्एसपी निर्धारण, एमएसपी का दायरा 23 फसलों तक बढ़ाने, पहले से उपलब्ध मंडियों का बजट कई गुना बढ़ाने और उनको आधुनिक बनाने, 22 हजार छोटे हाटों को कृषि मंडियों में परिवर्तित करने, यूरिया की कालाबाजारी को समाप्त करने, फसल बीमा का दायरा जिले से घटाकर ग्राम पंचायत करने, सिंचित क्षेत्र में सुधार करने एवं लगभग 11 करोड़ से ज्यादा किसानों को डीबीटी से जोड़कर 6000 रूपये वार्षिक राशी सीधा उनके खाते में हस्तांतरित करने का निर्णय लिया हो या विचौलियों की भूमिका को सीमित करने के लिए एमएसपी पर खरीदी का भुगतान सीधा किसान के खाते में करने, खरीदी का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने, भ्रष्टाचार पे रोक लगाने एवं एक किसान से खरीदी की अधिकतम सीमा तय करने का महत्वपूर्ण निर्णय लेकर खरीदी की प्रक्रिया में बड़े वदलाब किये हैं इससे बड़े, समृद्धशाली एवं प्रभावशाली किसानों की तानाशाही को लगाम लगी है | ये सभी निर्णय मध्यम एवं गरीब किसानों के हितों की रक्षा हेतु लिए गए हैं इसलिए आज उन गरीब एवं मंझोले किसानों को समझना होगा कि कुछ समृद्धशाली एवं प्रभावशाली किसान उनका हक़ छिनना चाह रहे हैं जो इन कृषि सुधारों में निहित हैं अत: कुछ लाख किसान धक्काशाही से करोड़ों किसानों के हितों को दांव पर लगाकर अपने हितों को साधने में सफल हो जायें | ये देश हित एवं किसान हित में नहीं है जिसको रोकने की आवश्यकता है और अब सैंकड़ों किसान इसके खिलाफ मुखर भी होने लगे हैं | मुझे पूरा भरोसा है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान होगा |

अशोक ठाकुर 

निदेशक, नेफेड, भारत सरकार 

 

 

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