Ashok Thakur

Tuesday, 28 April 2020

अदभुत है भारतीयों की लोक सेवा एवं लोक कल्याण की भावना


   
  Ashok Thakur, BJP
     कोरोना एक वैश्विक समस्या है जिसने मानव जीवन को संकट में डाल दिया है और दुनिया की अनेक सभ्यताओं के आस्तित्व को चुनौती दी है | ये संघर्ष कब तक चलेगा इसपर सभी विशेषज्ञों के अलग-अलग मत हैं लेकिन एक बात सिद्ध है कि जबतक इसकी औषधि का पता नहीं चलता तबतक अनिश्चितता बनी रहेगी | इस अप्रत्याशित घटना से अनेक राष्ट्राध्यक्षों को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है | चीन, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, इटली और फ्रांस की सरकारों के मुखिया जनता के निशाने पर हैं दूसरी तरफ आस्था और पंथ विश्वास भी आस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं कहीं-कहीं इक्का दुक्का कट्टरपंथी पहले तो कोरोना को चुनौती देने का ढोंग करते दिखाई देते हैं और कुछ कुर्बानी देने की बात भी करते हैं | लेकिन जैसे ही कोरोना के शिकंजे में आते हैं फिर या तो जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे होते हैं या चुपचाप किसी कोने में दुबग जाते हैं | कोरोना ने दुनिया को बता दिया है कि वह किसी धर्म, मजहब या पंथ को नहीं जानता है उसके लिए तो सबका खून एक जैसा ही है | जो इस सत्य को स्वीकार कर लेंगे वो जीवित रहेंगे और जो स्वीकार नहीं करेंगे उनका हश्र तबलीगी जमात बालों जैसा ही होगा |
     आज दुनिया के सामने अनेक प्रश्न खड़े हैं क्या मानव जीवन की रक्षा सर्वोपरी है या अर्थव्यवस्था को बचाना जरूरी है सबका अपना-अपना दृष्टिकोण है सबसे अधिक कोरोना संक्रमण प्रभावित अमेरिका के सामान्य नागरिक लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं वे वास्तव में ही बहादुर हैं भारत समेत कुछ देशों ने मानव जीवन को अमूल्य मानते हुए मनुष्य जीवन की रक्षा के लिए सम्पूर्ण लॉकडाउन को महत्व दिया है और अनेक बाधाओं के बाबजूद उसको सख्ती से लागू करने में जुटे हैं उसके सकरात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं कुछ देशों ने अर्थव्यवस्था को जरूरी मानते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन की वजाय अर्थव्यवस्था को महत्व देने का प्रयास किया है लेकिन वे भी अहसाय और लाचार दिखाई देते हैं हाँ कुछ देशों दक्षिणी कोरिया, जर्मनी एवं कनाडा इत्यादि ने बीच का रास्ता अपनाया है और उसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं | कौन सही और कौन गलत इस पर बहस जारी है और सबके अपने-अपने तर्क हैं लेकिन सही और गलत का फैसला तो भविष्य ही बताएगा | लेकिन इन सब से परे कोरोना ने अनेक सरकारों का दंभ भी तोड़ा है विशेषकर उनका जो अपनी राजनैतिक शक्ति को सर्वोपरी और सामाजिक शक्ति को गौण मानती थीं |  
     महामारी से संघर्ष में सभी देशों ने अपने-अपने ढंग से प्रयास किये हैं सभी के प्रयास सम्मानीय हैं लेकिन भारत के प्रयासों की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की है एक ऐसा देश जो यूरोपीय दृष्टि से भारत गरीब माना जाता है और भारतीय समाज को भीड़ जैसा अनुशासनहीन, झगड़ालू और रुढ़िवादी विचारों वाला माना जाता है वे भी आज कोरोना संक्रमण से बचने के लिए हाथ मिलाने और चूमा-चाटी जैसी प्रथाओं को छोड़कर हाथ जोड़कर प्रणाम करने बाले दकियानूसी विचार को अपना रहे हैं | आज इस महामारी ने जीवन मूल्यों को बदलने का काम किया है एक तरफ जहां अमेरिका और यूरोप में लाशों को दफनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है चीन को लाशों को जलाने के लिए अस्पतालों के साथ ही मशीने लगाने का निर्णय लेना पड़ा है वहीं भारत में आज भी मृत व्यक्ति की लाश लेने और उसका सम्मान के साथ दाह-संस्कार करने के लिए लोग लड़ते और संघर्ष दिखाई देते हैं कुछ मामलों में तो संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार को हस्ताक्षेप करना पड़ रहा है | व्यक्ति और देशों को अपनी चिंता करना स्वाभाविक है लेकिन भारत के लोग "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ॥" की कल्पना के साथ अपने साथ अपने गाँव, मुहल्ले, कुनबे, नगर, क्षेत्र, राष्ट्र एव विश्व की भी चिंता करते दिखाई दे रहे हैं केवल अपने कल्याण के लिए प्राथना नहीं करते हैं बल्कि हमेशा सभी के सुख, समृधि की कामना करते हैं | भारत के लाखों लोगों ने "ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥" को सार्थक करते हुए कोरोना संघर्ष के दौरान दान,  त्याग, तपस्या, समर्पण और मानवतावाद की अभूतपूर्व शक्ति का परिचय दिया है | इस दौरान भारतियों ने निष्काम भाव से देशभर में अनंत सेवा भाव के अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किये हैं |

     इस महामारी के संकट में केंद्र, राज्य ने अपना कर्तव्य निभाने का पूरा प्रयास किया है कल प्रधानमंत्री जी ने अपने सन्देश में बताया कि केंद्र ने PDS के तहत पिछले 30 दिनों में 19.63 लाख मीट्रिक टन अनाज लगभग 40 करोड़ लोगों को वितरित किया है ये वास्तव में ही बड़ा कार्य है लेकिन दिल्ली में लगभग 15 लाख परिवार अर्थात 50 से 60 लाख लोग PDS के दायरे से बाहर हैं अगर पुरे देश की बात करें तो संख्या करोड़ों में आती है इनमें वो लोग भी हैं जो काम की तलाश में अपना गाँव छोड़कर अन्यंत्र आ गए हैं गाँव में भले ही उनका राशन कार्ड है लेकिन यहाँ उनके पास न तो स्थायी काम है न ही स्थायी पता है और न ही राशन कार्ड है इसलिए चाहकर भी वे  राशन की सुविधा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और न ही राशन खरीदने की स्थिति में हैं देश में 81 करोड़ लोग PDS के दायरे में हैं और करोड़ों गरीब लोग PDS के दायरे से बाहर भी हैं अगर हम राशन मिलने और नहीं मिलने बालों के बीच के अंतर को देखें तो ये संख्या लगभग 50 करोड़ से अधिक बैठती है इन सभी तक पहुँचने का राज्य सरकारों के पास भी कोई तंत्र नहीं है | केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर सजग एवं संघर्षरत हैं जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने स्तर पर सक्रिय हैं जिलाधिकारी और एसडीएम भी सराहनीय काम कर रहे हैं सीमित संसाधनों के बाबजूद उन्होंने अभावग्रस्त लोगों अन्न एवं भोजन भोजन की व्यवस्था का प्रयास किया है | लेकिन इन सबके बाबजूद करोड़ों लोग समाज पर आश्रित हैं |
      देशभर में लॉकडाउन के दौरान लोगों को असुविधा तो जरुर हुई है लेकिन इस दौरान 130 करोड़ के देश में भूख से मृत्यु की कोई खबर नहीं है इस संकट में समाज के लाखों लोग अपनी चिंता छोड़ दिन-रात राहत के काम में लगे हैं समाज द्वारा सबको भोजन की व्यवस्था की गयी है अपरिचित के प्रति भी अपार चिंता का भाव, ये हमारी भारतीय संस्कृति की त्याग, तपस्या और समर्पण की भावना के कारण ही संभव हो पाया है ऐसा अनुपम उदाहरण दुनिया की किसी और सभ्यता में देखने को नहीं मिलेगा | आज देश के अन्दर लाखों की संख्या में लोग बिना किसी लोभ-लालच के अपने सामाजिक दायित्व बोध से सक्रीय हैं और इस कार्य में ये सभी किसी के आदेश नहीं बल्कि स्वप्रेरणा से लगे हैं इनको नाम और प्रसिद्धि नहीं चाहिए और न ही ये साधू अथवा सन्यासी हैं बल्कि इनके उपर अपने परिवार की भी जिम्मेदारियां हैं इनमें कोई भी धन-कुबेर या अकुप संपत्ति का मालिक नहीं है बल्कि ज्यादातर मध्यम वर्ग से आते हैं मेरे नजदीक तिरुपति बालाजी दर्शन सेवा समिति, रोहिणी, ने आस-पास के क्षेत्र में प्रतिदिन 1500 लोगों को अव्वल दर्जे का भोजन कराया | इसमें उन्होंने स्थानीय प्रशासन और स्थानीय पुलिस का भी सहयोग किया | एक अन्य गरीब कॉलोनी स्वरूप नगर में रहने बाले साधारण परिवार के सुरेश पाण्डेय भी अपने साथियों के साथ मिलकर प्रतिदिन 50 से 100 जरूरतमंद लोगों को राशन किट दे रहे हैं इसी प्रकार भलस्वा स्लम कालोनी में भी एक संस्था लगभग 500 लोगों को प्रतिदिन भोजन खिला रही है | राजस्थान कोटा में मेडिकल और आइआइटी की कोचिंग देने बाली संस्था लगभग 8 हजार लोगों को भोजन खिला रही है तो कोटा से 50 कि०मि० दूर एक गाँव बड़ोत में भी बिनोद गुप्ता 100 से 150 लोगों को भोजन करवा रहे हैं ये सभी सामान्य परिवारों से हैं इसके अलावा देश के मठ, मंदिर और गुरुद्वारों की तो बात ही क्या है । अकेले दिल्ली का एक गुरुद्वारा पूरी दिल्ली सरकार से ज़्यादा लोगों को प्रसाद खिला रहा है । ऐसे हजारों उदाहरण मिल जायेंगे | आरएसएस की सेवा भारती के लाखों स्वयं सेवक जाति, पंथ और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर निष्काम भाव से मानव सेवा में जुटे हैं | मणिपुर में तो एक सामाजिक संस्था ने अलग-अलग ज़रूरी वस्तुओं के अलग-अलग स्टाल लगा दिए ताकि ज़रूरतमंद अपनी ज़रूरत के हिसाब से पुरे सम्मान के साथ सामान ले लें । जहां सरकारें नहीं पहुंच सकीं वहां ये संस्थाएँ पहुंची हैं | इस संकटकाल में भारत की सामाजिक शक्ति का अदभुत स्वरूप देखने को मिला है और यहभारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की मजबूर जड़ों का अनुपम उदाहरण है | हमें इस पर  गर्व है ।  
     अगर हम चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस पर हमले की बात करें तो ये किसी भी सभ्य समाज के लिए काला धब्बा हैं इसको कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है लेकिन 130 करोड़ से ज्यादा आबादी बाले देश में ये नगण्य के बराबर हैं और लॉकडाउन के अनुसासन को लगभग सभी ने स्वीकार कर लिया है | शारीरिक दुरी, स्वच्छता और मास्क को जीवन का हिस्सा बना लिया है इस दौरान संवेदनहीनता के जाने बाली पुलिस का भी मानवीय चेहरा सामने आया है अनेक स्थानों पर स्थानीय थानाध्यक्षों ने समाज के साथ समन्वय बनाकर अभूतपूर्व काम किया है न केवल लोगों को सरकारी आदेशों का पालन करने के लिए प्रेरित किया है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर भोजन एवं इलाज की भी सुविधा प्रदान कराई है | प्रशासन में भी मानवीय मूल्यों को मजबूती देने बाले चेहरे सामने आये हैं जिन्होंने इसे न केवल अपना कर्तव्य समझकर बल्कि सामाजिक दायित्व बोध के साथ काम को अंजाम दिया है | देश के डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मियों की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है उन्होंने अपनी जान को हथेली पर रखकर लोगों की जान बचाने का काम किया है उन्होंने न केवल सामान्य जनों बल्कि उनकी भी जान बचाने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास किये हैं जिन्होंने उनपर थूकने, अभद्रता और हमला करने जैसा घृणित कार्य किया है | ये सब हमारी समृद्ध संस्कृति और संस्कारों का ही परिणाम है |
     वैश्विक आपदा के इस युग में हमारे समस्त देशवासियों ने अभूतपूर्व एकजुटता का परिचय दिया है प्रधानमन्त्री के आह्वान पर चाहे जनता कर्फ्यू को सफल बनाने का काम हो या थाली बजाकर कोरोना योद्धाओं का अभिवादन करने का कम हो या फिर दीये जलाकर एकजुटता का परिचय देना हो | ये सभी क्षण ऐतिहासिक और दर्शनीय हैं और हमारे देशवासियों ने इन्हें बखूवी अंजाम दिया है | आज मैं यही कहूंगा कि हम आशावादी बनें और अनुसासन और दायित्व निर्वहन को अपना राष्ट्रिय कर्तव्य मानकर संघर्ष को आगे बढ़ाएं | मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि इस आपदा से हम विजयी होकर निकलेंगे और भारतीय संस्कृति के इन जीवन मूल्यों को कोरोना के बाद के युग में विश्वभर में स्थान और सम्मान जरुर मिलेगा |


2 comments:

  1. इस प्रयासों के लिए हर सहयोगी को मेरा लाख लाख प्रणाम. धन्यवाद.

    ReplyDelete