Ashok Thakur

Monday 6 April 2020

कोरोना से उत्पन्न वैश्विक संकट में भारत की क्या भूमिका हो सकती है ?

          आज पूरे विश्व में कोरोना वायरस के प्रकोप से हाहाकार मचा हुआ है | भविष्य में क्या होगा, कैसे होगा इसपर लगातार अनिश्चितता है | एक से एक बढ़कर एक हथियार हैं मिसाइल, रॉकेट, परमाणु बम, लडाकू जहाज और योद्धा हैं इसके अलावा भी न जाने कैसे कैसे उपकरण उपलब्ध हैं | परन्तु दुशमन है कि दिखाई ही नहीं देता है | वो लगातार हमले कर रहा है लोग मारे जा रहा है परन्तु कोई कुछ करने की स्थिति में नहीं है | एक से बढ़कर एक डॉक्टर, विज्ञानिक और बुद्धिजीवी हैं |  परन्तु सब लाचार हैं | चारों ओर लाशों के ढेर लगे हैं | कोई दफनाने या जलाने बाला तक नहीं है | विश्व स्वास्थ्य संगठन हो या स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने बाली अन्य संस्थायें, कोई कुछ भी कहने व करने की स्थिति में नहीं है अगर कुछ कहते भी हैं तो उसका कोई ठोस आधार नहीं है  और सबसे बड़ी बात ये है कि जिसने भी इस वायरस को हल्के में लेने का प्रयास किया | वो उसके उतने ही गंभीर परिणाम भुगत रहा हैं |
          दुनिया के वो देश जो अपने आप को स्वास्थ्य क्षेत्र के न केवल महारथी मानते थे बल्कि वास्तव में महारथी हैं भी और उन्होंने अपने यहाँ मृत्यु दर पर नियंत्रण कर इस बात को सिद्ध भी कर दिया है | लेकिन आज लाचार और मजबूर हैं | अगर हम आकड़ों के आधार पर विश्लेष्ण करें, तो हैरान हो जाने बाली बाते सामने आ रही हैं | पिछले कुछ दिनों से आने बाले कोरोना मरीजों के आकड़ों के आधार पर विश्लेषण करने से मेरा अंदाजा है कि आज मध्य रात्रि अर्थात 12 बजे तक विश्व में कुल कोरोना प्रभावित मरीजों की संख्या 13 लाख को पार कर जायेगी और इस वायरस से मरने बालों की संख्या भी 75 हजार के आस-पास पहुँच जाएगी | पिछले दिनों में ये देखने में आया है कि कुल बंद किये मामलों के हिसाब से विश्व की औसत मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है और कुछ ही दिनों में 15 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत पहुच गयी है कुछ देशों में तो यह 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है और जितना विकसित एवं स्वास्थ्य सुविधाओं से सुसज्जित देश है उतने ही ज्यादा मामले और उतनी ही ज्यादा मौते हुई हैं | सबसे आश्चर्य चकित करने बाली बात ये है कि दुनिया के कुल कोरोना ग्रसित मरीजों में 75 प्रतिशत मामले यूरोप एवं अमेरिकी महाद्वीप से आते हैं और मृत्यु दर भी इन्हीं देशों की सबसे ज्यादा है |
          यदि इसके जनक माने जाने बाले देश चीन को छोड़ दें तो पूरा एसिया महाद्वीप अभी इसके प्रकोप से बचा हुआ है केवल मध्य एसिया का देश इरान ही अपवाद है जहाँ मामले भी ज्यादा है और मौते भी ज्यादा हो रही  हैं | जिसके लिए काफी हद तक उनका रहन-सहन भी जिम्मेदार है | अफ्रीका महाद्वीप भी बचा हुआ है | भारत जैसे घनी आबादी बाले देश को इस तरह के वायरस पर नियंत्रण पाना काफी चुनौतीपूर्ण है परन्तु इसके बाबजूद भारत को कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में काफी हद तक सफलता मिली है यदि तबलीगी जमात से जुड़े मरीजों के आकड़ों को अलग कर दिया जाये तो भारत सरकार और भारत की राज्य सरकारों का काम काफी सराहनीय रहा है | लेकिन इस बात की भी चिंता है कि तबलीगी जमात जैसी मानसिकता के लोग चलते-फिरते कोरोना बम का काम कर रहे हैं और अगर उन्होंने इसे समाज के स्तर पर फैला दिया तो परिणाम भयावह हो सकते हैं जहाँ तक अन्य भारतीय समाज से जुड़े लोग हैं तो उन्होंने सरकारों को पूरा सहयोग दिया है जहाँ विश्व के अन्य देशों सहयोग करने बाले नहीं मिल रहे हैं वहीं भारत में पूर्ण बंदी के दौरान जरूरत मंदों के लिए खाने का सामान उपलब्ध कराने में लाखों स्वयं सेवक स्वेच्छा से काम कर रहे हैं जहाँ तक सरकारें नहीं पहुच पा रही हैं बहां ये संस्थाएं पहुँच रही हैं और लोगों को जरूरत के सामान पहुँचाने के साथ-साथ अपने घरों में बने रहें में भी सहयोग कर रही हैं | राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से जुडी संस्थाएं इस काम में काफी आगे हैं | राजनैतिक पार्टियों में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं का काम काफी सराहनीय है जो समाज के साथ जुड़कर उम्दा काम कर रहे हैं | जहां तक भारत की मृत्यु दर की बात है तो वो विश्व की औसत मृत्यु दर से कुछ ज्यादा है और 25 से 30 प्रतिशत के बीच में बढ़-घट रही है जोकि चिंताजनक है और उसपर ध्यान देने की आवश्यकता है | परन्तु विकसित देशों के मुकाबले मरीजों और मरने बाले दोनों ही संख्या काफी कम हैं | 
        अब यक्ष प्रश्न जो सबके मन में चल रहा है और सबसे बड़ी चिंता भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर है कि आखिर ये प्रकोप कब तक चलेगा और रुकेगा तो कब और कैसे |  इन परिस्थितियों में हमें क्या करना चाहिये? यदि कोरोना वायरस के स्वभाव और फ़ैलाने की गति को देखें तो जबतक एक भी मरीज है तब तक इसके पुन: फ़ैलने का खतरा बना रहेगा | पिछले दिनों में सम्पूर्ण बंदी के बाजूद कोरोना से संक्रमण के मामले 250 से बढ़कर 4500 हो गए हैं कुछ व्हावी या जेहादी मानसिकता के जाहिल लोगों के होते हुए इनपर रोक लगाना और भी मुश्किल लग रहा है | इसके अलावा देश में बंदी को भी लम्बे समय तक जारी रखना संभव नहीं है |क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले ही सुस्ती के दौर से गुजर रही है इसके अलावा विश्व के विकसित एवं विकासशील देशों के हालातों पर नजर डालें तो वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा सिर पर मंडरा रहा है | इसलिए ज्यादा दिन तक बंदी लागू करने से अर्थव्यवस्था के हालात और बदतर हो जायेंगे | इस वायरस के इलाज के लिए जल्दी दवा बनने की संभावना भी नहीं दिखाई दे रही है और दवा बनने तक इन्तजार करना संभव नहीं दिखाई देता है |
          इन सब बातों का आंकलन करने के बाद मुझे लगता है कि अब डरने से कुछ नहीं होगा बल्कि देश को लंबी लड़ाई की तैयारी करनी होगी | ये छह महीने से लेकर कोरोना वायरस की दवा बनने तक जारी रह सकती है | इसके लिए व्यापक स्तर पर देश  की जनता को मानसिक और सामाजिक तौर पर तैयार करना होगा | राष्ट्रिय स्तर पर लाकडाउन का आज तेरवां दिन है इसके बाबजूद कोरोना जिस गति से पांव पसार रहा है उसके लिए हमें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना होगा | सरकारी अस्पतालों के अलावा निजी अस्पतालों, निजी नर्सिंग होम, निजी लैब को भी सरकार को अपने नियंत्रण ले लेना चाहिए | एकीकृत ढांचे के तहत काम करने की आवश्यकता है | सरकारी कर्मचारियों को घरों में बैठाने की वजाय जनता को जरूरी सामानों की आपूर्ति में लगाना होगा | इसके अलावा उन लोगों को जो अपनी स्वेच्छा से सेवा कार्यों में जुटे हैं उनको जरुरतमंदों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आह्वान करने की वजाय, उन्हें स्थानीय प्रशासन के साथ जोड़कर काम में लगाने की आवश्यकता है | क्योंकि विकेन्द्रित होने के कारण बड़ी शक्ति लगने के बाबजूद संतोषजनक परिणाम नहीं आ सकते हैं | उससे संक्रमण का खतरा भी ज्यादा होता है | इसलिये अपनी-अपनी विचारधाराओं को त्याग कर केन्द्रित होकर काम करने की आवश्यकता है | जो प्रशासन के साथ मिलकर ही संभव है |
          लोगों को सामान्य जीवन के तौर-तरिकों में बदलाव लाने के लिये जागरूक करना होगा | सामाजिक दुरी और स्वच्छता को जीवन का हिस्सा बनाना होगा | भारतीयों के लिए ये नयी बात नहीं है ये पहले भी भारतीय परंपराओं का हिस्सा रही है | जागरूकता अभियान केवल समाचार माध्यमों से चलाने से काम नहीं चलेगा बल्कि सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यापारिक क्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं को साथ लेकर व्यापक स्तर पर चलाना होगा | समाज के निचले तबके को साथ जोड़कर बड़े स्तर पर मास्क, हाथों के दस्ताने एवं अन्य जरूरी सामान बनाने पर जोर देना होगा | इससे बड़े स्तर पर उनकी उपलब्धता तो सुनिश्चित होगी ही साथ ही बंदी के कारण बेरोजगार तबके को काम भी मिल सकेगा | जोकि सामाजिक दुरी बनाये रखने के साथ-साथ प्राथमिक सावधानियां को लागू करने में सहायक होगा | तबलीगी जमात जैसे लोगों से सख्ती से पेश आना पड़ेगा और आवश्यकता पड़े तो सख्त कानूनी करवाई करने से भी नहीं हिचकना चाहिए |
          इस दौरान लोगों को मुलभुत आवश्यकताएं अर्थात सस्ता राशन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी होगी और ये अधिक से अधिक लोगों तक घर पर वितरित करने की भी आवश्यकता है | औद्योगिक क्षेत्रों को सामान्य आवागमन से मुक्त करने की आवश्यकता है और जो इकाइयां अपने कर्मचारियों को अन्दर ही रहने की व्यवस्था करने में सक्षम हैं उन्हें काम करने की छुट देनी चाहिए | उनकी जरूरत के सामान का वितरण कार्य स्थल पर करना सुनिश्चित करना चाहिए | दवाई, चिकित्सा उपकरण और इनसे जुड़े छोटे एवं मझले स्तर के उधोगों को आर्थिक सहायता देकर काम प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है | कोरोना वायरस के पश्चात बढ़ने बाले वैश्विक टकराव से उत्पन्न परिस्थितियों और भविष्य में चीन पर लगने बाले संभावित आर्थिक प्रतिबंधों के लिये तैयार होना होगा | इसपर विचार करना चाहिए कि किस प्रकार भारत विश्व बाजार में अपना हिस्सा बढ़ा सकता है व्यापक स्तर पर उसकी तैयारी करनी चाहिए |  हमें सुनिश्चित करना होगा कि सुरक्षित वातावरण में हमारी औद्धोगिक इकाइयां जल्द से जल्द और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करें | ताकि वो हमारी अपनी जरूरतों के अलावा विश्व के अन्य जरूरतमंद देशों को भी उपकरणों एवं दवाइयों की आपूर्ति कर सकें और हमारी अर्थव्यवस्था को संभालने में सहायक हों | हमें अपनी सबसे बड़ी शक्ति अर्थात मानव संस्साधन की तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है | यूरोप एवं अमेरिकी महाद्वीप में होने वाली मौतों के बाद श्रम शक्ति का काफी अभाव होगा | जिसकी आपूर्ति के लिये भारत जैसे घनी आबादी बाला देश स्वाभिक विकल्प हो सकता है | बशर्ते हमारे पास कौशल श्रम उपलब्ध हो |

          मुझे लगता है कि हमें हार मानने की बजाय मौजूदा परिस्थितियों में योजनाबद्ध तरीके से  काम करने की आवश्कता है | जब मृत्यु दरवाजे पर कड़ी है तो उससे डरने की वजाय मुकाबला करना ज्यादा उचित है क्योंकि एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई है तो कुछ सावधानियों के साथ मजबूती से आगे बढने की आवश्कता है | ताकि इस भयावह संकट के पश्चात उत्पन्न होनी बाली परिस्थितियों में भी लाभ उठा सकें | यह भी सर्व सत्य भी है कि जो विपरीत परिस्थियों में धैर्य और स्थिर रहकर काम करता है वही सफलता की उचाईयों को छू सकता है | भगवान राम का भव्य मंदिर तो बनना प्रारंभ हो ही गया है इन विपरीत परिस्थितियों में उनके मूल्यों को स्थापित करके ही हम महाशक्ति एवं विश्व गुरु बन सकते हैं जिस प्रकार उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में आम लोगों को साथ लेकर पराक्रम  किया और राक्षस शक्तियों को परास्त किया | आज की परिस्थितियों में वही हमारे लिये सर्वोतम आदर्श हो सकते हैं एक कहावत है "वीर भोग्या वसुंधरा" | हमें उसी का अनुसरण करने की आवश्यकता है | जय श्रीराम !


    








No comments:

Post a Comment