Ashok Thakur

Tuesday 28 June 2011

अन्ना जिद छोड़ो और संगठित संघर्ष करो

अशोक ठाकुर 
      अन्ना हजारे की स्थिति कमोबेश बैसी ही है जैसी की आजादी की लड़ाई में सभी नरम या गरम दल तो गाँधी के आन्दोलनों को देश हित में समर्थन देते थे क्योंकि अनके लिए तो देश अपने सिद्धांतों यहाँ तक कि अपने शरीर से बढकर था  इसीलिए वे देश के लिए हँसते हँसते फांसी पर चढ़ जाते थे | परन्तु गाँधी जी अपने सिद्धांतों व मूल्यों को देश हित से ज्यादा तवज्जो देकर अन्य आन्दोलनों का समर्थन नहीं करते थे भले ही बह भगत सिंह व उसके साथियों का जेल के अंदर शांतिपूर्ण व अहिसंक अनशन ही क्यों न हो | आज गाँधी की तरह ही अन्ना को देश से ज्यादा अपने सिद्धांत व मूल्य नजर आ रहे हैं और वे बाबा रामदेव के विना शर्त समर्थन को भी इंकार कर रहे हैं जबकि बाबा उनके द्वारा अपने ऊपर की गयी अनावश्यक गलत टिप्पणी को भी नजर अंदाज कर देश हित में १६ अगस्त के आन्दोलन को समर्थन देने को त्यार हैं और कह रहे हैं की व्यक्ति नहीं मुद्दा महत्पूर्ण है और ऐसा पहले दो बार जन्तर मन्तर व राजघाट पर समर्थन दे चुके हैं अन्ना जी और उनके साथी शायद भूल रहे हैं कि आज उनको मिलने वाले जन समर्थन का एक बड़ा कारण बाबा रामदेव जी का जन जागरण अभियान ही है जिसमे उन्होंने देश कि १० करोड़ जनता को प्रत्यक्ष तथा ५० करोड़ को अप्रत्यक्ष रूप से संबोधित किया है  नहीं तो बाबा रामदेव के जनजागरण अभियान से पहले अनशन कर लेते तो अंतर समझ में आ जाता और अन्ना का बडपन होता कि वे पहले संसद मार्ग (जंतर मंतर कि सभा) में ऍफ़ आई आर दर्ज करने के दौरान अपनी धोषणा के अनुसार बाबा रामदेव के पहले से घोषित ०४ जून के अनशन को समर्थन देते न कि अलग गुट बनाकर उससे पहले एक और मोर्चा खोल कर संघर्ष कि धारा को बाँट कर कमजोर करने का काम करते और न जाने ऐसा किसके कहने या इशारे पर हुआ | पर जो कुछ भी हुआ ठीक नहीं हुआ और अब सारा आन्दोलन बंटा हुआ नजर आ रहा है हमारे जैसे लाखों लोग असमंजस की स्थिति में हैं | कभी अन्ना ठीक नजर आते हैं और कभी रामदेव | अब अन्ना को अपने फालतू के सिद्धांतों व मूल्यों को एक तरफ रखकर भगवान कृष्ण व आचार्य चाणक्य के मार्ग दर्शन को ध्यान में रखते हुए देश हित को सर्वोपरी मान कर बाबा रामदेव के साथ कंधे से कन्धा मिलकर संगठित संघर्ष करना चाहिए क्योकि ये बहुत बड़ी लड़ाई है और बड़े ताकतवर लोगों के बिरुद्ध संघर्ष है वे बड़े ही धूर्त और चालाक भी है वे सत्ता और पैसे के नशे में मशरुग होकर अपने आस्तित्व के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं उसका ट्रेलर हमने रामलीला मैदान में देख ही लिया है और अन्ना ये समझ लें कि बुरी शक्तियाँ अपने स्वार्थों की शिद्धि के लिए जल्दी संगठित होती हैं और सिविल सोसायटी में छिपे कुछ जयचंद व मान सिंह उनके काम को और आसान बना देते हैं जबकि अच्छे लोग अपने सिद्धांतों व मूल्यों की लड़ाई में फंसे रहते हैं और संगठित होकर नहीं लड़ते हैं जैसे की आज बाबा रामदेव और अन्ना के बीच हो रहा है तथा ये भी समझ लें कि  ये ४०० लाख करोड़ के मालिक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे रहेंगे | अत: हमें आजादी कि दूसरी लड़ाई में बिना बलिदान के सफलता मिलने बाली नहीं है इस संघर्ष में युवाओं को बलिदान के लिए त्यार रहने का भी आह्वान करना होगा और सारी उर्जा एक जगह लगाकर इस भ्रष्टाचारी तंत्र को उखाड़ फैंकना होगा यही समाज और देश हित में है |