Ashok Thakur

Tuesday 28 April 2020

अदभुत है भारतीयों की लोक सेवा एवं लोक कल्याण की भावना


   
  Ashok Thakur, BJP
     कोरोना एक वैश्विक समस्या है जिसने मानव जीवन को संकट में डाल दिया है और दुनिया की अनेक सभ्यताओं के आस्तित्व को चुनौती दी है | ये संघर्ष कब तक चलेगा इसपर सभी विशेषज्ञों के अलग-अलग मत हैं लेकिन एक बात सिद्ध है कि जबतक इसकी औषधि का पता नहीं चलता तबतक अनिश्चितता बनी रहेगी | इस अप्रत्याशित घटना से अनेक राष्ट्राध्यक्षों को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है | चीन, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, इटली और फ्रांस की सरकारों के मुखिया जनता के निशाने पर हैं दूसरी तरफ आस्था और पंथ विश्वास भी आस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं कहीं-कहीं इक्का दुक्का कट्टरपंथी पहले तो कोरोना को चुनौती देने का ढोंग करते दिखाई देते हैं और कुछ कुर्बानी देने की बात भी करते हैं | लेकिन जैसे ही कोरोना के शिकंजे में आते हैं फिर या तो जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे होते हैं या चुपचाप किसी कोने में दुबग जाते हैं | कोरोना ने दुनिया को बता दिया है कि वह किसी धर्म, मजहब या पंथ को नहीं जानता है उसके लिए तो सबका खून एक जैसा ही है | जो इस सत्य को स्वीकार कर लेंगे वो जीवित रहेंगे और जो स्वीकार नहीं करेंगे उनका हश्र तबलीगी जमात बालों जैसा ही होगा |
     आज दुनिया के सामने अनेक प्रश्न खड़े हैं क्या मानव जीवन की रक्षा सर्वोपरी है या अर्थव्यवस्था को बचाना जरूरी है सबका अपना-अपना दृष्टिकोण है सबसे अधिक कोरोना संक्रमण प्रभावित अमेरिका के सामान्य नागरिक लॉकडाउन के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं वे वास्तव में ही बहादुर हैं भारत समेत कुछ देशों ने मानव जीवन को अमूल्य मानते हुए मनुष्य जीवन की रक्षा के लिए सम्पूर्ण लॉकडाउन को महत्व दिया है और अनेक बाधाओं के बाबजूद उसको सख्ती से लागू करने में जुटे हैं उसके सकरात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं कुछ देशों ने अर्थव्यवस्था को जरूरी मानते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन की वजाय अर्थव्यवस्था को महत्व देने का प्रयास किया है लेकिन वे भी अहसाय और लाचार दिखाई देते हैं हाँ कुछ देशों दक्षिणी कोरिया, जर्मनी एवं कनाडा इत्यादि ने बीच का रास्ता अपनाया है और उसमें काफी हद तक सफल भी रहे हैं | कौन सही और कौन गलत इस पर बहस जारी है और सबके अपने-अपने तर्क हैं लेकिन सही और गलत का फैसला तो भविष्य ही बताएगा | लेकिन इन सब से परे कोरोना ने अनेक सरकारों का दंभ भी तोड़ा है विशेषकर उनका जो अपनी राजनैतिक शक्ति को सर्वोपरी और सामाजिक शक्ति को गौण मानती थीं |  
     महामारी से संघर्ष में सभी देशों ने अपने-अपने ढंग से प्रयास किये हैं सभी के प्रयास सम्मानीय हैं लेकिन भारत के प्रयासों की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की है एक ऐसा देश जो यूरोपीय दृष्टि से भारत गरीब माना जाता है और भारतीय समाज को भीड़ जैसा अनुशासनहीन, झगड़ालू और रुढ़िवादी विचारों वाला माना जाता है वे भी आज कोरोना संक्रमण से बचने के लिए हाथ मिलाने और चूमा-चाटी जैसी प्रथाओं को छोड़कर हाथ जोड़कर प्रणाम करने बाले दकियानूसी विचार को अपना रहे हैं | आज इस महामारी ने जीवन मूल्यों को बदलने का काम किया है एक तरफ जहां अमेरिका और यूरोप में लाशों को दफनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है चीन को लाशों को जलाने के लिए अस्पतालों के साथ ही मशीने लगाने का निर्णय लेना पड़ा है वहीं भारत में आज भी मृत व्यक्ति की लाश लेने और उसका सम्मान के साथ दाह-संस्कार करने के लिए लोग लड़ते और संघर्ष दिखाई देते हैं कुछ मामलों में तो संक्रमण के खतरे को देखते हुए सरकार को हस्ताक्षेप करना पड़ रहा है | व्यक्ति और देशों को अपनी चिंता करना स्वाभाविक है लेकिन भारत के लोग "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ॥" की कल्पना के साथ अपने साथ अपने गाँव, मुहल्ले, कुनबे, नगर, क्षेत्र, राष्ट्र एव विश्व की भी चिंता करते दिखाई दे रहे हैं केवल अपने कल्याण के लिए प्राथना नहीं करते हैं बल्कि हमेशा सभी के सुख, समृधि की कामना करते हैं | भारत के लाखों लोगों ने "ॐ सहनाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै ॥" को सार्थक करते हुए कोरोना संघर्ष के दौरान दान,  त्याग, तपस्या, समर्पण और मानवतावाद की अभूतपूर्व शक्ति का परिचय दिया है | इस दौरान भारतियों ने निष्काम भाव से देशभर में अनंत सेवा भाव के अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किये हैं |

     इस महामारी के संकट में केंद्र, राज्य ने अपना कर्तव्य निभाने का पूरा प्रयास किया है कल प्रधानमंत्री जी ने अपने सन्देश में बताया कि केंद्र ने PDS के तहत पिछले 30 दिनों में 19.63 लाख मीट्रिक टन अनाज लगभग 40 करोड़ लोगों को वितरित किया है ये वास्तव में ही बड़ा कार्य है लेकिन दिल्ली में लगभग 15 लाख परिवार अर्थात 50 से 60 लाख लोग PDS के दायरे से बाहर हैं अगर पुरे देश की बात करें तो संख्या करोड़ों में आती है इनमें वो लोग भी हैं जो काम की तलाश में अपना गाँव छोड़कर अन्यंत्र आ गए हैं गाँव में भले ही उनका राशन कार्ड है लेकिन यहाँ उनके पास न तो स्थायी काम है न ही स्थायी पता है और न ही राशन कार्ड है इसलिए चाहकर भी वे  राशन की सुविधा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं और न ही राशन खरीदने की स्थिति में हैं देश में 81 करोड़ लोग PDS के दायरे में हैं और करोड़ों गरीब लोग PDS के दायरे से बाहर भी हैं अगर हम राशन मिलने और नहीं मिलने बालों के बीच के अंतर को देखें तो ये संख्या लगभग 50 करोड़ से अधिक बैठती है इन सभी तक पहुँचने का राज्य सरकारों के पास भी कोई तंत्र नहीं है | केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर सजग एवं संघर्षरत हैं जनप्रतिनिधि भी अपने-अपने स्तर पर सक्रिय हैं जिलाधिकारी और एसडीएम भी सराहनीय काम कर रहे हैं सीमित संसाधनों के बाबजूद उन्होंने अभावग्रस्त लोगों अन्न एवं भोजन भोजन की व्यवस्था का प्रयास किया है | लेकिन इन सबके बाबजूद करोड़ों लोग समाज पर आश्रित हैं |
      देशभर में लॉकडाउन के दौरान लोगों को असुविधा तो जरुर हुई है लेकिन इस दौरान 130 करोड़ के देश में भूख से मृत्यु की कोई खबर नहीं है इस संकट में समाज के लाखों लोग अपनी चिंता छोड़ दिन-रात राहत के काम में लगे हैं समाज द्वारा सबको भोजन की व्यवस्था की गयी है अपरिचित के प्रति भी अपार चिंता का भाव, ये हमारी भारतीय संस्कृति की त्याग, तपस्या और समर्पण की भावना के कारण ही संभव हो पाया है ऐसा अनुपम उदाहरण दुनिया की किसी और सभ्यता में देखने को नहीं मिलेगा | आज देश के अन्दर लाखों की संख्या में लोग बिना किसी लोभ-लालच के अपने सामाजिक दायित्व बोध से सक्रीय हैं और इस कार्य में ये सभी किसी के आदेश नहीं बल्कि स्वप्रेरणा से लगे हैं इनको नाम और प्रसिद्धि नहीं चाहिए और न ही ये साधू अथवा सन्यासी हैं बल्कि इनके उपर अपने परिवार की भी जिम्मेदारियां हैं इनमें कोई भी धन-कुबेर या अकुप संपत्ति का मालिक नहीं है बल्कि ज्यादातर मध्यम वर्ग से आते हैं मेरे नजदीक तिरुपति बालाजी दर्शन सेवा समिति, रोहिणी, ने आस-पास के क्षेत्र में प्रतिदिन 1500 लोगों को अव्वल दर्जे का भोजन कराया | इसमें उन्होंने स्थानीय प्रशासन और स्थानीय पुलिस का भी सहयोग किया | एक अन्य गरीब कॉलोनी स्वरूप नगर में रहने बाले साधारण परिवार के सुरेश पाण्डेय भी अपने साथियों के साथ मिलकर प्रतिदिन 50 से 100 जरूरतमंद लोगों को राशन किट दे रहे हैं इसी प्रकार भलस्वा स्लम कालोनी में भी एक संस्था लगभग 500 लोगों को प्रतिदिन भोजन खिला रही है | राजस्थान कोटा में मेडिकल और आइआइटी की कोचिंग देने बाली संस्था लगभग 8 हजार लोगों को भोजन खिला रही है तो कोटा से 50 कि०मि० दूर एक गाँव बड़ोत में भी बिनोद गुप्ता 100 से 150 लोगों को भोजन करवा रहे हैं ये सभी सामान्य परिवारों से हैं इसके अलावा देश के मठ, मंदिर और गुरुद्वारों की तो बात ही क्या है । अकेले दिल्ली का एक गुरुद्वारा पूरी दिल्ली सरकार से ज़्यादा लोगों को प्रसाद खिला रहा है । ऐसे हजारों उदाहरण मिल जायेंगे | आरएसएस की सेवा भारती के लाखों स्वयं सेवक जाति, पंथ और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर निष्काम भाव से मानव सेवा में जुटे हैं | मणिपुर में तो एक सामाजिक संस्था ने अलग-अलग ज़रूरी वस्तुओं के अलग-अलग स्टाल लगा दिए ताकि ज़रूरतमंद अपनी ज़रूरत के हिसाब से पुरे सम्मान के साथ सामान ले लें । जहां सरकारें नहीं पहुंच सकीं वहां ये संस्थाएँ पहुंची हैं | इस संकटकाल में भारत की सामाजिक शक्ति का अदभुत स्वरूप देखने को मिला है और यहभारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की मजबूर जड़ों का अनुपम उदाहरण है | हमें इस पर  गर्व है ।  
     अगर हम चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और पुलिस पर हमले की बात करें तो ये किसी भी सभ्य समाज के लिए काला धब्बा हैं इसको कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है लेकिन 130 करोड़ से ज्यादा आबादी बाले देश में ये नगण्य के बराबर हैं और लॉकडाउन के अनुसासन को लगभग सभी ने स्वीकार कर लिया है | शारीरिक दुरी, स्वच्छता और मास्क को जीवन का हिस्सा बना लिया है इस दौरान संवेदनहीनता के जाने बाली पुलिस का भी मानवीय चेहरा सामने आया है अनेक स्थानों पर स्थानीय थानाध्यक्षों ने समाज के साथ समन्वय बनाकर अभूतपूर्व काम किया है न केवल लोगों को सरकारी आदेशों का पालन करने के लिए प्रेरित किया है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर भोजन एवं इलाज की भी सुविधा प्रदान कराई है | प्रशासन में भी मानवीय मूल्यों को मजबूती देने बाले चेहरे सामने आये हैं जिन्होंने इसे न केवल अपना कर्तव्य समझकर बल्कि सामाजिक दायित्व बोध के साथ काम को अंजाम दिया है | देश के डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मियों की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है उन्होंने अपनी जान को हथेली पर रखकर लोगों की जान बचाने का काम किया है उन्होंने न केवल सामान्य जनों बल्कि उनकी भी जान बचाने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास किये हैं जिन्होंने उनपर थूकने, अभद्रता और हमला करने जैसा घृणित कार्य किया है | ये सब हमारी समृद्ध संस्कृति और संस्कारों का ही परिणाम है |
     वैश्विक आपदा के इस युग में हमारे समस्त देशवासियों ने अभूतपूर्व एकजुटता का परिचय दिया है प्रधानमन्त्री के आह्वान पर चाहे जनता कर्फ्यू को सफल बनाने का काम हो या थाली बजाकर कोरोना योद्धाओं का अभिवादन करने का कम हो या फिर दीये जलाकर एकजुटता का परिचय देना हो | ये सभी क्षण ऐतिहासिक और दर्शनीय हैं और हमारे देशवासियों ने इन्हें बखूवी अंजाम दिया है | आज मैं यही कहूंगा कि हम आशावादी बनें और अनुसासन और दायित्व निर्वहन को अपना राष्ट्रिय कर्तव्य मानकर संघर्ष को आगे बढ़ाएं | मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि इस आपदा से हम विजयी होकर निकलेंगे और भारतीय संस्कृति के इन जीवन मूल्यों को कोरोना के बाद के युग में विश्वभर में स्थान और सम्मान जरुर मिलेगा |


Saturday 25 April 2020

उद्धव ठाकरे क्यों छुपाना चाहते हैं साधुओं की निर्मम हत्या का सच

    
 Ashok Thakur, BJP
     सोशल मीडिया में अचानक एक साधू का चित्र आता है बुरी तरह घायल, खून से लथपथ और घायल है  ।लेकिन इसके बावजूद अबोध बालक से भोले-भाले चेहरे पर मुस्कुराहट है और जगह-जगह से सिर फटने के बाद भी चेहरे पर न पीड़ा, न शिकन और न ही शिकायत दिखाई दे रही है ऐसा मालुम पड़ता है जैसे हमला करने बालों के प्रति कोई शिकवा नहीं है | अपने खून के प्यासी इस भीड़ को वो अज्ञानी और अबोध मानकर न केवल मुस्करा रहा रहा है बल्कि ऐसा प्रतीत होता है मानो वो अब भी उनको माफ़ कर देना चाहता हो । मौत का भय जरा भी विचलित नहीं कर रहा है शायद वो कहना चाहता हो की शरीर नश्वर है आत्मा अजर अमर और अजन्मा है जो जन्म और मरण से परे है इसलिए मौत का डर कैसा | दूसरी तरफ़ बहसी दरिंदों की एक भीड़ है जिसमें मानवता और इंसानियत का नामोनिशान तक दिखाई नहीं दे रहा है । मैं सोच रहा हूँ क्या इस भीड़ में एक भी ऐसा इंसान नहीं था जिसमें मानवता नाम की कोई चीज हो और जो इस साधू के चेहरे की मासूमियत, निश्चलता और सरलता को पहचान सकता हो | शायद नहीं | जो थे भी वे सभी वहसी दरिन्दे थे जिनके अन्दर का इन्सानियत मर चुकी थी | जिस भगवे को ये देश हजारों-लाखों बर्षों से पूजता और सहेजता आया है जो शौर्य, शांति और ज्ञानरूपी प्रकाश का प्रतीक हो । जिसकी  प्रेरणा से हमारे लाखों शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण दे दिए हों | उसी भगवे के अन्दर लिपटा एक महामानव इन राक्षसों को नहीं दिखाई दिया और उन्होंने उसकी निर्ममता से हत्या कर दी | ये अमानवीयता और दरिंदगी की प्रकाष्ठा है |           

     आप सोच रहे होंगे कि मैं किस घटना की बात कर रहा हूँ ये महाराष्ट्र के एक जिले पालघर की घटना है|जिसको बीते आज 10 दिन होने बाले हैं लेकिन हत्या के पीछे के कारण सच्चाई से कोषों दूर है जैसा कि हम जानते हैं कि 16 अप्रैल की रात श्री वृक्षागिरी जी महाराज एवं श्री सुशीलगिरी जी महाराज एवं उनके ड्राईवर की उन्मादी भीड़ ने निर्मम हत्या कर दी है | इसी में से एक साधू के चित्र का मैंने जिक्र किया है | इस घटना की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है | इस घटना ने महाराष्ट्र सरकार, पालघर प्रशासन, स्थानीय पुलिस, स्थानीय राजनैतिक एवं सामाजिक नेतृत्व पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं ये घटना किसी भी सभ्य समाज और लोकतान्त्रिक व्यवस्था को झकझोर देने बाली है | आखिर कैसे एक भीड़ पुलिस की उपस्थिति में वेखौफ़ होकर कानून को अपने हाथ में लेकर तीनों की निर्मम हत्या कर देती  हैं | कई सवाल हैं कि क्या अब मुख्य मार्ग पर चलना भी अपराध हो गया है | क्या अब सड़क पर निकलने से पहले लोगों को अनेक बार सोचना पड़ेगा | क्या भगवा जो भारत के शौर्य, शांति, ज्ञान और गौरव का परिचायक है क्या इस देश में उसको पहनना अपराध हो गया है | क्या कोई भी बिना किसी छानवीन और पूछताछ के किसी को भी चोर या अपराधी कहकर मार देगा | क्या पुलिस की वर्दी का डर समाप्त हो गया है या वो भी भीड़ का हिस्सा बन गयी है। ऐसे ही अनेक सवाल हैं जिन्होंने हमें झकझोर कर रख दिया है | महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने घटना को जितना सरल बताने का प्रयास किया है क्या वास्तव में ऐसा ही है या कुछ और है ।  

     अगर हम लोगों की ही बात माने तो अनेक दिनों से उस क्षेत्र में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह फ़ैली हुई थी | ऐसी भी संभावना है कि क्षेत्र में इस तरह की घटना हुई होगी जिससे अफवाह फ़ैल गई | अगर इस तरह की घटना क्षेत्र में घटित हुई थी तो स्थानीय प्रशासन को त्वरित एवं संतोषजनक कारवाई नहीं की होगी | जिसकी बजह से स्थानीय लोगों में रोष उत्पन्न हुआ होगा और पुलिस एवं प्रशासन से विश्वास कम हुआ होगा | जिसकी बजह से उन्होंने अपने बच्चों एवं परिवारों की सुरक्षा के लिए कानून को अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया जो बिलकुल जायज नहीं था | दूसरा ये भी हो सकता है कि बच्चा चोर गिरोह के साथ स्थानीय पुलिस की मिलीभगत की बात सामने आई हो या क्षेत्र के लोगों द्वारा पकडे गए किसी अपराधी को पुलिस ने छोड़ दिया हो | जिसके कारण उन्होंने पुलिस पर विश्वास नहीं किया और उसकी उपस्थिति में ही साधुओं पर हमला कर दिया | इसके अलावा मुझे और कोई कारण नजर नहीं आता है |      

     अगर पुलिस की अनुपस्थिति में क्षेत्र में स्थनीय सरपंच चित्रा चौधरी तीन घंटे तक हमलावारों को रोक सकती है तो विभिन्न पार्टियों के उपस्थित नेताओं ने एकत्रित आकर उसका साथ क्यों नहीं दिया | उन्होंने लोगों को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया | ज़िला परिषद का सदस्य जो मौक़े पर उपस्थित था वो मौन क्यों था । क्या इसलिए की वो  और उसके साथी नेता भगवा रंग से नफरत करते थे | दूसरा जिस भी स्थानीय निवासी या अधिकारी ने साधुओं की गाड़ी को रोका होगा तो उनका परिचय जरुर माँगा होगा | उन्होंने अपना परिचय भी जरुर दिया होगा तो फिर साधू भेष में होने के बाबजूद भीड़ को उकसाने का क्या कारण है | अगर चित्रा चौधरी साधुओं को पहचानकर बचाने की कोशिश कर सकती है अगर अकेली तीन घंटे तक लोगों को कानून अपने हाथों में लेने से रोक सकती हैं तो सवाल ये भी उठता है तो पुलिस उस भीड़ को रोकने में कैसे नाकाम हो गयी | जब बिल्डिंग के अंदर घायल साधु से पुलिस की बातचीत हो गयी और उन्होंने पुलिसकर्मीयों को अपने बारे में बता दिया और से बात ये तो सर्व सत्य है कि साधुओं को सैंकड़ों की भीड़ ने घेर रखा था | भीड़ में कुछ लोग हथियारों, लाठी-डंडों और पथ्थर भी लिए हुए थे | इसकी जानकारी पुलिस को सुचना के दौरान मिल ही गयी होगी | फिर भी पुलिस न केवल देर से पहुंची बल्कि बिना किसी तैयारी के आई |  इसके अलावा हत्या में पुलिस पर मिलीभगत का भी आरोप लग रहा है जैसा कि वीडियो में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि एक पुलिसवाला पूरी बात जानने के बावजूद साधू को बिल्डिंग से बाहर लेकर आता है जहां  उसकी जान को खतरा है और सब जानते हुए भी वह पुलिसवाला उसको मारने के लिए भीड़ के हवाले कर देता है |  फिर उसकी हत्या हो जाती है | वैसे तो ये पूरा मामला ही रफा-दफा हो गया होता और किसी को कानों-खबर नहीं होती | तीन दिन तक ऐसा हुआ भी और पुलिस पर कोई सवाल नहीं उठाया गया | लेकिन मुझे लगता है कि मामले को रफा-दफा करने और असली मुजरिमों को बचाने के लिए पुलिस ने कुछ निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया होगा जिससे व्यथित होकर किसी भाई ने वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा कर दिया | जिससे घटना की सच्चाई का पुरे देश को पता चला और पुलिस की संदिग्ध भूमिका भी सामने आ गयी | चौतरफा दबाब के बाद महाराष्ट्र सरकार हरकत मे आयी और उसने आनन-फानन में लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसमें अनेक निर्दोष भी शामिल  हैं और दो पुलिस बालों को सस्पैंड किया है लेकिन अभी तक उसने इस हत्या की सीबीआई जाँच कराने पर विचार नहीं किया और न ही करेंगे क्योंकि उनको यह पता है कि अगर इस घटना की जाँच सीबीआई या किसी निष्पक्ष संस्था के हाथ में चली गयी तो एक-एक करके इसकी घटना की सारी परतें खुल जायेंगी और शिव सेना को अपनी सरकार और चेहरा दोनों बचाना असंभव हो जाएगा | क्योंकि ये इतना संवेदनशील मामला है कि इस घटना की बजह से उसके अपने विधायक भी वगावत कर सकते हैं | इसलिए महारष्ट्र सरकार जाँच अपने हाथ में रखना चाहती है और सच्चाई को दबाना चाहती है |     

     इन सबसे परे कुछ परेशान कर देने बाले सवाल हैं कि आखिर हम किस युग में जी रहे हैं जिसमें लोगों को न कानून का डर है न पुलिस का खौफ है और न ही मानवीयता है | ऐसा लगता है कि पालघर में जंगल कानून चलता है आखिर कैसे लोग सड़क चलते साधुओं को ड्राईवर समेत मार सकते हैं जबकि वो किसी भी दृष्टिकोण से चोर दिखाई नहीं देते हैं |     

     इस पुरे घटनाक्रम में ऐसा प्रतीत होता है कि भीड़ में कुछ लोगों को साधू भेष से नफरत थी और उनका एकमात्र लक्ष्य साधुओं को मार डालना था | इस घटना ने कंधमाल में नक्सल-धर्मांतरण माफिया द्वारा स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती हत्याकांड को याद दिला दिया है आज एक बार फिर हिंदू विरोधी समूह ने भीड़ को साधुओं की हत्या के पहले बरगलाया और फिर उकसाया | सम्भवतः पुलिसकर्मीयों से भी गठजोड़ बनाया । महाराष्ट्र सरकार का यह कहना कि अभी तक गिरफ्तार लोगों में एक भी मुस्लिम नहीं है ये जाँच को भ्रमित करने की कोशिश है और महाराष्ट्र के गृहमंत्री एवं एक पार्टी का प्रवक्ता का स्थानीय सरपंच का बार-बार नाम लेना सरकार की मंशा पर संदेह पैदा करता है विशेषकर उस सरपंच का जो न केवल साधुओं को भीड़ से बचाने का प्रयास कर रही थी बल्कि तीन घंटे तक संघर्ष किया । उसका क़सूर इतना नाता भाजपा से है | ये घटिया राजनीति है इसकी जितना निंदा की जाये उतनी कम है | कुछ लोग तो उस रात उसकी हत्या भी करना चाहते थे जैसा कि उसने आरोप लगाया है | जिससे साफ जाहिर होता है कि भीड़ में कुछ लोग तो अवश्य थे जो साधुओं को हर हाल में मारना चाहते थे | इसीलिए उन्होंने  को भी निशाना बनाया था |     

     वैसे तो सब जाँच का विषय है लेकिन प्रथम दृष्टया चश्मदीद गवाहों के बयान से स्पष्ट हो गया है कि कुछ ग्रामवासियों को साधुओं के आने की अग्रिम सूचना थी । यह क्षेत्र में अवैध बांग्लादेशी मुसलमान की केन्द्र रहा है दो बार बंगलादेशियों की गिरफ़्तारी हो चुकी है । मुझे इस मामले के पीछे मुझे मुसलमानों से ज्यादा इसाई मिशनरी या नक्सलियों का हाथ होने का भी शक है क्योंकि ज्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में ये मिशनरीयां भोले-भाले आदिवासियों को बहला-फुसलाकर इसाई बनाने का प्रयास करती रहती हैं या फिर इन क्षेत्रों में नक्सलीयों का प्रभाव रहता है । साधू समाज धर्मांतरण को रोकने का लगातार प्रयास करता रहा है जो दोनों के हितों को नुक़सान पहुँचता है इसीलिए इन दोनों में उनके प्रति नफरत का भाव रहता है समय-समय पर इन मिशनरीयों के द्वारा समय-समय पर साधुओं पर हमले भी होते रहे हैं विशेषकर कांग्रेस शासित राज्यों में इन मिशनरीयों के पीछे सोनिया गाँधी और कैथोलोक चर्च का हाथ होने की आरोप लगते रहे हैं महाराष्ट्र में भी कांग्रेस समर्थित सरकार है इसलिए आतंकी एवं मिशनरी के होंसले बुलंद होना लाजमी है अत: इस मामले में उपरोक्त सभी सवालों की गहराई से जाँच करने की आवश्यकता है और दोषियों पर फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाकर शीघ्र अति शीघ्र फैसला कर कड़ी से कड़ी सजा देने की आवश्यकता है | ताकि भविष्य में कोई इस तरह का दुस्साहस न कर सके | जय हिन्द    

Tuesday 21 April 2020

कोरोना संकट के दौरान सामने आया केजरीवाल सरकार का संवेदनहीन चेहरा

          वैसे तो पिछले पांच बर्षों में केजरीवाल सरकार के अनेक क़दमों पर सवाल उठे हैं और आम जनता से उनकी चालाकी भरे फैसलों की एक लम्बी फेरहिस्त है | लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के संकट काल में केजरीवाल सरकार का ऐसा संवेदनहीन चेहरा सामने आया है | जिसे देखकर सब लोग दांग रह जायेंगे | यूँ तो मैं अपने मित्रों की इस मौके पर राजनीति नहीं करने की बात से सहमत हूँ परन्तु जब मैंने देखा की केजरीवाल सरकार ने गरीब, मजदुर, संक्रमित और अन्य नागरिकों से छल और झूठ की सारी हदें पार कर दी हैं अत: इसपर लिखना आवश्यक समझा अन्यथा इसके परिणाम भोली-भाली जनता को भुगतने पड़ेंगे और पद रहे हैं |
          जहां एक तरफ केंद्र सरकार कोरोना वायरस के संक्रमण फ़ैलने की खबर मिलते ही हरकत में आ गयी | पहले विदेशों में फंसे हजारों भारतीय नागरिकों को देश लाकर उनके पृथकवास एवं उचित इलाज का काम युद्ध स्तर पर किया | यहां तक कि आवश्यकता पड़ने पर चार्टर्ड प्लेन का सहारा लेने से सरकार नहीं हिचकिचाई | दुनिया के अन्य देशों में बढ़ते घोर संक्रमण को देखकर 21 दिन की तालाबंदी घोषित की गयी जिसे बाद उसे 19 दिन बढ़ाकर 3 मई तक लागू कर दिया ताकि यह संक्रमण आम लोगों तक न पहुँचे | लेकिन मुझे ये कहते हुए कतई भी संकोच नहीं है कि कोरोना संक्रमण को रोकने में केंद्र सरकार की सभी पहल की सफलता और असफलता का पूरा दारोमदार राज्य सरकारों के कामकाज एवं क्रियान्वन पर निर्भर करता है | फिर वह चाहे सरकार के फैसलों को जमीनी स्तर पर लागू करना हो या नागरिकों को विश्वास में लेकर उन्हें घरों में सीमित रखना हो, शारीरिक दुरी बनाये रखने के साथ-साथ जरूरतमंदों को खाद्य बस्तुएं उपलब्ध कराना हो या संभावित मरीजों को पृथकवास की सुविधा प्रदान करना हो और संक्रिमित नागरिकों को उचित इलाज की सुविधा मुहिया कराना हो | लेकिन दिल्ली सरकार सभी मोर्चों पर असफल रही है जिन सरकारों ने तालाबंदी को ईमानदारी से लागु वहां संक्रमण नियन्त्रण में है |
     अत्यंत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि दिल्ली सरकार कोरोना महामारी जैसे इस भयंकर संकटकाल में भी मानवीय मूल्यों को एक तरफ रखकर केवल और केवल राजनीति कर रही है | वास्तविक कार्य निष्पादन की वजाय चालाकी और धूर्तता का सहारा लिया जा रहा है | जैसा कि हम जानते हैं कि तालाबंदी की घोषणा के साथ ही दिल्ली सरकार पर लोगों को मुलभुत सुविधाएं प्रदान करनी की जिम्मेदारी आयी है | दिल्ली में लाखों की संख्या में गरीब दिहाड़ी मजदुर रहते हैं जो रोज कमाने-खाने वाले हैं और अचानक उनपर अन्न का संकट आ गया है | हमने ये भी देखा है कि दिल्ली सरकार ने लोगों के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा रखी है परन्तु जब हमने जमीन पर क्रियान्वन न के बराबर है | इसी लिए एक महानुभाव ने माननीय न्यायालय से हस्ताक्षेप की गुहार लगाई जिसपर दिल्ली सरकार ने न्यायालय में 4 लाख लोगों को प्रतिदिन भोजन उपलब्ध कराने की बात कही है इसके अलावा विना राशन कार्ड बालों के लिए अस्थाई राशन कूपन देने की घोषणा की है | जिसकी हकीकत हम आप निम्न आंकड़ों से समझ जायेंगे |
         सबसे पहले आपको इस हकीकत को समझने के लिए केजरीवाल सरकार के राशन कार्ड के खेल को समझना होगा | वर्ष 2012-13 में कांग्रेस सरकार के समय दिल्ली में कुल 34 लाख 35 हजार परिवारों के पास राशन कार्ड थे केजरीवाल सरकार ने सत्ता में आते ही दिल्ली के 14 लाख 85 हजार कार्ड धारक परिवारों के नाम उड़ा दिए | जिसका मतलब है कि लगभग 56 लाख गरीबों की राशन सुविधा समाप्त हो गयी जो उनको हर माह मिलती थी और 31 मार्च 2016 क्र आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में मात्र 19 लाख 50 हजार राशन कार्ड धारक रह गए | सन 2016 के बाद के आवेदनों पर राशन कार्ड जारी नहीं किये और अगर जारी भी हुए तो केवल आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता या विधायकों के खास लोगों को | जिनकी संख्या भी नाममात्र के बराबर है | इसलिए तालाबंदी के समय लगभग 60 लाख गरीब एवं मजदुर लोग राशन कार्ड की सुविधा से वंचित हैं जोकि सरकार की किसी भी  योजना में शामिल नहीं हैं अर्थात केंद्र सरकार ने जो राशन गरीबों के लिए भेजा है उनको नहीं मिल पायेगा | अगर हम दिल्ली सरकार के 4 लाख गरीब मजदूरों को खाना खिलाने की बात मान भी लें तो बाकि 56 लाख लोगों का क्या होगा | इसका उनके पास कोई जबाब नहीं है 
     जब न्यायलय का दबाब आया तो दिल्ली सरकार ने तुरंत अस्थाई राशन कूपन जारी करने की घोषणा की गयी | जिसका बड़े पैमाने पर  प्रचार भी किया गया | लेकिन इसमें दिल्ली सरकार ने जो किया उसको सुनकर आप हैरत में पड़ जायेंगे | पहला दिल्ली सरकार की वेबसाइट का सर्वर ही काम नहीं करता है और हेल्प लाइन न० लगातार सलंग्न आता है उदाहरण के लिए रोहिणी निवासी श्री संतोष दिवेदी पिछले 15 दिनों से प्रयास कर रहे हैं उन्हें सफलता नहीं मिली है  दूसरा रजिस्ट्रेशन के लिए एंड्राइड मोबाइल की आवश्यकता है जो वास्तविक गरीबों के पास उपलब्ध ही नहीं है तीसरा 30 मार्च या उसके बाद आवेदन करने वाले हजारों लोगों को आजतक राशन कूपन जारी नहीं  किया गया है और न ही बताने को तैयार है कि आज तक दिल्ली सरकार ने कितने अस्थाई राशन कूपन जारी किये हैं | चौथा अब उनका हाल सुनिये जिनको अस्थाई राशन कुपन जारी किया गया है जैसे कि वंदना त्रिपाठी निवासी राजीव नगर, बेगमपुर को वितरण केंद्र प्राइमरी स्कूल सराय काले खां गाँव दिया गया है जोकि उसके निवास स्थान से 35 कि० मि० दूर है ऐसे ही सेक्टर-16, रोहिणी के निवासी श्री कलीम खान को अलीपुर का वितरण केंद्र दिया गया है  जो उसके घर से लगभग 15 कि० मि० दूर है ऐसे हजारों मामले हैं जिनके साथ अस्थाई कूपन के नाम पर धोखा हुआ है | परिणाम स्वरूप देश की राजधानी दिल्ली में लोग घास खाने को मजबूर हैं ।
      अब वितरण केन्द्रों का हाल जान लीजिये | भोजन की उपलब्धता भी लगातार कम की जा रही है जिसके कारण काफी लोग बिना भोजन ही लौट जाते हैं दूसरा आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता एवं उनके समर्थकों को वरीयता दी जाती है आम जनता मुंह ताकती रह जाती है फिर भोजन की गुणवता भी दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है और उसमें भ्रष्टाचार चरम पर है और न जाने कितने फर्जी बिल बन रहे हैं ये तो भविष्य ही बताएगा | मेरा एक सवाल केजरीवाल साहेब से है कि अगर दिल्ली सरकार गरीब जनता को मुफ्त भोजन उपलब्ध करा रही है तो फिर हजारों सामाजिक संस्थाओं, भाजपा एवं कांग्रेस जैसे राजनैतिक दलों एवं दिल्ली पुलिस लाखों की संख्या में किन दिल्लीवासियों को भोजन करा रहे हैं
       दिल्ली सरकार के अधिकतर अधिकारी फोन या मोबाईल पर उपलब्ध ही नहीं हैं ज्यादातर लोग 100 न० पर काल करते हैं तो उनकी मदद थानाध्यक्ष स्थानीय सामाजिक संस्थाओं से मिलकर कर रहे हैं दिल्ली सरकार नदारद है अगर इनको दिल्ली सरकार के भरोसे छोड़ देते तो ये कब के भूखे मर जाते | मेरा केजरीवाल साहेब से सवाल है कि अगर वो गरीबों को भोजन करा रहे हैं तो सामाजिक संस्थाएं, सेवा भारती, स्थानीय पुलिस, भजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता किन लोगों को लाखों की संख्या में भोजन करा रहे हैं | यहां ये बताने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली सरकार के ज्यादातर अधिकारी भारी दबाब में हैं आम आदमी पार्टी के नेता इस मौके को अपनी पार्टी और अपनी जेब भरने का अवसर मान रहे हैं | ऐसा भी सुनने में आया है कि दिल्ली सरकार के एक विधायक के दबाब में आकर तो एक डाक्टर ने आत्महत्या कर ली है आरोप है कि ये विधायक महोदय उस पर मरीजों के रहने एवं खाने की सुविधायों से समझौता कर पैसा देने के लिए दबाब बना रहे थे | अभी हम इसपर टिप्पणी करना उचित नहीं समझते है क्योंकि इस मामले की जाँच चल रही है मुझे उम्मीद है कि उसकी जाँच निष्पक्षता से होगी | लेकिन इन आरोपों की पुष्टि करने बाला एक वीडियो आज जहांगीरपूरी के रहने वाले एक परिवार की बिटिया प्रतिभा गुप्ता ने सोशल मीडिया पर डाला है जिसमें इस बच्ची ने एलएनजेपी अस्पताल में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया है ऐसा ही एक वाक्य आंबेडकर अस्पताल में श्री श्यामपाल सिंह के साथ भी घटा है और न जाने सैंकड़ों ऐसे उदहारण होंगे जिनमें इलाज के नाम पर दिल्ली सरकार का भ्रष्टाचार और छलावा नजर आता है |
      ऐसा ही हाल दिल्ली सरकार का तालाबंदी और संक्रमण की जाँच का है या इस काम में लगे डॉक्टर एवं सवास्थ्य कर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्टिव किट उपलब्ध कराने का है जिसके कारण वे अपनी पूरी शक्ति के साथ मरीजों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं | जिसके कारण कोरोना का संक्रमण भी लगातार फैल रहा है और मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है |
      उपरोक्त सभी कारणों की बजह से चंद ही दिनों में ही दिल्ली के गरीबों एवं मजदूरों को असुरक्षा और भूख का डर सताने लगा | सामान्य परिस्थितियों में कोई भी इंसान अपनी जान को जोखिम में डालने जैसा बड़ा कदम उठाने की हिम्मत नहीं करता है चाहे वो कितना ही अनपढ़ या अज्ञानी क्यों न हो | लेकिन दिल्ली में मजदूरों को अहसास हो गया कि दिल्ली सरकार के सभी निर्णय केवल दिखावा हैं हकीकत कुछ और है और अगर वे ज्यादा दिन यहाँ रुके तो उन्हें न केवल भूखों मरना पड़ेगा बल्कि गाँव के मुकावले संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा है | इसलिए वे दिल्ली छोड़ने के लिए कुलबुलाने लगे | अब आप सबको यह जानकर हैरानी होगी कि आम आदमी पार्टी सरकार ने उस डर को समाप्त करने की वजाय उल्टा अपने नेताओं के माध्यम से मजदूरों को भटकाना प्रारंभ कर दिया | ख़बर यह भी है कि गरीबों एवं मजदूरों में घबड़ाहट बढ़ाने के लिए दिल्ली सरकार ने जानबूझकर बिजली एवं पानी सप्लाई को बाधित किया | अंतत: मजदूरों व गरीबों का धैर्य जबाब दे गया और हजारों-लाखों की संख्या में आनद विहार, आईएसबीटी एवं दिल्ली बॉर्डर की ओर पलायन करने लगे | दिल्ली सरकार ने उनको ऐसी गलती करने से रोकने की वजाय डीटीसी की बसों में भर-भरकर बॉर्डर एरिया में छोड़ दिया कुछ के लिए योगी सरकार ने बसों की व्यवस्था की लेकिन अनेक मजदुर तो बेचारे पैदल ही गावों को चल दिए | कोरोना जैसे वायरस के संक्रमण को देखते हुए ये नजारा भयावह था अगर भीड़ में एक भी संक्रिमत मरीज घुस जाता तो भारत का हाल अमेरिका की गरीब बस्तियों से भी ज्यादा खराब हो सकता था | संक्रमण को रोक पाना असंभव था | ये वास्तव में अपराधिक कृत्य था लेकिन एक कहावत है कि "अगर बाढ़ ही खेत को खाने लगे तो फिर उसे कौन बचा सकता है" ठीक उसी प्रकार केजरीवाल सरकार पर जिन लोगों को बचाने की जिम्मेदारी थी उन्होंने उनके ही जीवन को खतरे में डाल दिया |

           दिल्ली सरकार भ्रष्टाचार के साथ झूठ और फरेब का सहारा लेकर जनता को छ्लने का काम कर रही है जो अत्यंत निंदनीय है | मैं पूछना चाहता हूँ केजरीवाल साहेब से कि कहां हैं उनकी मुहल्ला सभाएं | आज जिनकी सख्त आवश्यकता है क्योंकि जिलाधिकारी या एसडीएम् वास्तविक गरीबों का पता नहीं लगा सकते हैं | जबतक की वे स्थानीय जनता के प्रतिनिधि, पुलिस, धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं और उनके स्वयं सेवकों को साथ लेकर काम नहीं करेंगे | आज के संकटकाल में सरकार और समाज को केन्द्रित होकर काम करने की आवश्यकता है | जिसका स्पष्ट अभाव चारों ओर दिखाई दे रहा है | केवल चैनलों पर वैठकर ब्यान देने से नहीं बल्कि लोगों के साथ लेकर ही तालाबंदी का प्रभावी क्रियान्बन किया जा सकता है और वही कोरोना जैसी महामारी को रोकने में कारगर हो सकता है अन्यथा इस सारी कवायद का हश्र वैसा ही होने वाला है जैसे कि आज दिल्ली में हो रहा है और कोरोना के संक्रमित मरीज एवं कोरोना हॉट-स्पॉट की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है मेरा पुन: माननीय मुख्यमंत्री जी से निवेदन है कि ये राजनीति का समय नहीं है हम सब जिन्दा रहेंगे तो राजनीति और अन्य बातें होती रहेंगी | अभी तो सबको साथ लेकर एक बृहद योजना के साथ तालाबंदी को लागू किया जाना अति आवश्यक है | परन्तु उसके लिए निति और नियत दोनों ठीक होना अत्यंत आवश्यक है | जय हिन्द

Thursday 16 April 2020

कोरोना योद्धाओं पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हमले का दोषी कौन | एक विश्लेषण

          देश में लाखों की डाक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, आशा कार्यकर्ता, सफाई कर्मचारी एवं पुलिसकर्मी जान को जोखिम में डालकर कोरोना से लड़ रहे हैं | ज्यादातर लोगों को जानकारी भी होगी कि कोरोना जैसी भयानक बिमारी से लड़ने के लिए हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के पास पीपीई अर्थात पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विमेंट्स जैसे कि मास्क, रेस्पिरेटर्स, आई शील्ड, गाउन और ग्लब्जस की भारी कमी थी | ऐसा कोरोना के अचानक तेजी से फैलने की बजह से हुआ | क्योंकि हम न तो तैयार थे और न ही WHO ने अवगत कराया था | चीन ने भी जानकारियों को छुपाने का काम किया जिसकी बजह से दुनिया के दुसरे देशों का हाल भी कुछ ऐसा ही था | यूरोप एवं अमेरिका में सैंकड़ों डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मीयों  को अपनी जान गंवानी पड़ी | अगर इन कारणों से हमारे स्वास्थ्य कर्मी इन पीपीई किट्स के इन्तजार में मरीजों का इलाज प्रारंभ नहीं करते तो हजारों नागरिकों की जान का खतरा हो सकता था | सब तकलीफों के बाबजूद हमारे डाक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों ने बड़ी हिम्मत के साथ अपनी जान को जोखिम में डालकर सीमित संसाधनों में देश के मरीजों का इलाज प्रारंभ किया | जिसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है |  
          मुझे लगता है कि ऐसे समय में जहां इन स्वास्थ्य एवं पुलिस कर्मियों का उत्साह बढ़ाना जरूरी था और ऐसा ही प्रधानमंत्री जी ने किया भी और इनका उत्साह बढ़ाने के पुरे देश से आग्रह किया और देशवासियों ने ऐसा किया भी | इन सबके के बाबजूद एक खास तबका इन कोरोना योद्धाओं पर हमले कर रहा है जो अत्यंत निंदनीय है पिछले  तीन दिनों में छिटपुट घटनाओं के अलावा देश के अन्दर डॉक्टरों, नर्सों, आशा कार्यकर्ताओं एवं पुलिस कर्मियों पर 9 बड़े हमले हो चुके हैं | इस महामारी से जंग कितनी दुश्वार है इसका अंदाजा निम्न आकड़ों से लगाया जा सकता है पूरा विश्व कोरोना के इस संकट से झुझ रहा है लगभग 21 लाख संक्रमितों मरीजों में से 1 लाख 35 हजार की जान जा चुकी है और लगभग 51 हजार से ज्यादा मरणासन्न हैं अमेरिका जैसी महाशक्ति एवं यूरोप के विकसित देश भी लाचार और अहसाय दिख रहे हैं उनके यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं | भारत में भी तालाबंदी के बाबजूद संक्रमित मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है इस समय देश के अन्दर तालाबंदी के समय 486 मामलों की तुलना में मामले बढ़कर लगभग 12.5 हजार से ज्यादा हो गए हैं और लगभग 420 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है | केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी ने इस महामारी को रोकने के लिए रात-दिन एक कर रखा है | परन्तु इन हमलों ने इस मुश्किल कार्य को और दुश्वार बना दिया है
          अब सवाल उठता है कि आखिर ये सब हो क्यों रहा है कौन अनपढ़, जाहिल एवं ग्बार लोग हैं जो अपनी ही जान के दुश्मन बने हुए हैं हमने कालिदास जैसे महामूर्ख के बारे में तो सूना था | जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर बैठा था | लेकिन आज हजारों कालिदासों को अपनी आखों से देख रहे हैं | जो अपने रक्षकों पर ही हमले कर रहे हैं |
इसके अलावा पिछले कल मैं एनडीटीवी इण्डिया एवं कुछ अन्य चैनलों में एक स्टोरी देख रहा था जिसमें धर्म के नाम पर भेदभाव को लेकर सवाल उठाये थे | शिवसेना के नेता संजय राउत ने तो मस्जिद का जिक्र करने के लिए कपिल मिश्रा पर मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करने की मांग तक कर डाली है | इसके अलावा एंकर का कहना कि हिन्दू मुसलमानों से सामान नहीं खरीद रहे हैं | कुछ मुस्लिम तो अपना नाम छुपा कर सब्जी बेचने को मजबूर हैं | इनके साथ मारपीट होने के कारण एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया गया है | मेरा मानना है कि अगर कहीं भी ऐसा होता है तो ये मानवता को शर्मशार करने बाला है इसकी जितनी भी निंदा की जाये वो कम है | लेकिन मुझे लगता है कि आधी-अधूरी तहकीकात एवं अधुरा विश्लेषण कर एंकर ने खबर के साथ न्याय नहीं किया है और इसके लिए उन्होंने पूरी तरह दुसरे धर्म या पंथ के लोगों को कटघरे में खड़ा करके का कम किया है जिसने दोनों के बीच की खाई को और बढ़ाने का ही काम किया है | उनको इसकी तह तक जाना चाहिये और निष्पक्ष बिश्लेषण होना चाहिए | मेरा सवाल है क्या इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए कि वास्तव में इन घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है | क्या वो हिन्दू जिसके मन में तबलीगी जमात और अन्य मुस्लिम के हमलों की खबरों के कारण डर पैदा हो गया और उसने उनके साथ मारपीट की या वो चैनल जिन्होंने तबलीगी जमात और मस्जिदों से हमले की घटना को दिखाया या वो लोग जिन्होंने प्रशासन के साथ सहयोग करने से मना कर दिया और कोरोना के कैरियर बनकर उसको पुरे देश में फैलाया या जिन्होंने उनका इलाज कर रहे डाक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर न केवल थूका बल्कि अनेक जाहिलाना हरकतें की हैं या वो लोग जिन्होंने उनका जीवन बचाने में लगे स्वास्थ्य कर्मियों एवं पुलिस कर्मियों पर हमला किया | मेरा सवाल है क्या ये सब घटनाएँ सामान्य जनमानस के मन पर आघात नहीं करती हैं क्या इस घटनाओं ने मुसलमानों के प्रति नकारात्मक छवि नहीं बनाई होगी | आखिर क्यों इन घटनाओं में मुस्लिम तबके के ही भाई-बहनों शामिल रहे हैं चाहे दिल्ली में मुसलामानों का मरकज भवन में गुडागर्दी और इलाज के दौरान तब्लिगियों की बदतमीजी हो या  मुम्बई में भीड़ इक्कठी हुई तो मस्जिद के पास हुई या मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, इंदौर सभी जगह हमलों में मस्जिद का कनेक्सन रहा हो या बेंगलुरु में मस्जिद के लोगों के भडकाने पर आशा कार्यकर्ता पर हमला हुआ हो या ऊतर प्रदेश के मुजफ्फरनगर हो या जयपुर का रामगंज क्षेत्र हो सभी हमलों का संबंध मुस्लिम तबके के लोगों से हो | क्या ये सवाल जायज नहीं है कि आखिर ये सभी घटनाएँ एक बर्ग विशेष से जुड़े क्षेत्रों में ही क्यों हो रही हैं | क्या अब इनको सरंक्षण देने के लिए मोदी सरकार या राज्य सरकारें वैसा ही करना चाहिए | जैसे कि उस समय की कांग्रेस सरकार ने जब देखा की सभी आतंकवादियों का संबंध मुसलमानों से है और लगातार ये सवाल उठ रहें कि सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों निकल रहे हैं उस समय एक बड़े नेता का कहना कि " कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों निकल रहे हैं" तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनको सरंक्षण देने के लिए हिन्दू आतंकवाद का जाल रच दिया | जिसकी कहानी सारा देश और दुनिया जानती है | तो क्या अब कुछ मेरे पत्रकार चाहते हैं कि इनके कुकृत्यों को छुपाने के लिए मस्जिद की जगह क्या मंदिर लिख दिया जाये | क्या केवल इसलिए सचाई को छुपा देना चाहिए कि मुसलमानों के प्रति दुसरे तबके के लोगों के मन में नफ़रत न बढ़े | लेकिन उनको पता होना चाहिए कि जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा फल पायेगा | बबुल का पेड़ लगाने से आम पैदा नहीं होते हैं अगर गलत काम करेंगे तो उनकी छवि खराब होगी ही और गेहूं के साथ धुन तो पिस्ता ही है | मैं समझता हूँ कि इन जाहिलों से मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका इत्तफाक नहीं रखता है और वे भी इनके वैसा ही व्यवहार करेंग जो अन्य धर्म और पंथों के लोगों ने किया | लेकिन उनके मुकाबले अन्य धर्म एवं पंथों के लोगों को एक अच्छे और बुरे मुसलमान में फर्क करना निहायत ही मुश्किल काम है | इसलिए वो अज्ञानवस दोनों को एक ही तराजू में तोलता है | लेकिन हजारों मुसलमान आज भी शान से हिन्दू  मुहल्लों में रह रहे हैं और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा है जिनके बारे में दुसरे लोग जानते हैं | इसलिए इन घटनाओं के दूसरों को दोष देना गलत है मुझे बचपन की वो कहानी याद आ रही है जिसमें बाबा भारती का घोड़ा डाकू खड़क सिंह ने एक गरीब के भेष में लुट लिया था लेकिन बाबा भारती ने स्वयं डाकू खड़क सिंह से इस घटना का जिक्र नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा था कि अगर आपने किसी से इस घटना का जिक्र किया तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा | उस कहानी का सार यही है कि उस घटना का पता लगने पर लोगों का गरीबों पर से विश्वास उठ जाता और फिर कोई जरूरतमंद गरीब की मदद नहीं करता | 
          देश के मुसलमानों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों, मौलवियों और मौलानाओं को उस कहानी से अवश्य सबक लेते हुए ये समझना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं से मुस्लिम समाज की छवि ही घहरा आधात लगा है | जिसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं | कुछ लोग चैनलों पर बैठकर शब्दों के हेर-फेर से उसका दोष दूसरों पर भले ही मढ़ दें | लेकिन सच्चाई को कोई बदल नहीं सकता है |  कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के झूठी और संदिग्ध रिसर्च के आधार पर झूठ फैलाना कि कोरोना मुसलमानों पर असर नहीं करता है उसका खामियाजा भी उनके ही लोगों को भुगतना पड़ रहा है एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ही नहीं पकिस्तान में भी लाखों लोगों ने कोरोना का टेस्ट कराने से मना कर दिया है ऐसा अनेक अन्य मुस्लिम देशों से भी सुनने में आया है | इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं | इसलिए मेरा सभी पक्षों से अनुरोध है कि हमें अपनी गलती को स्वीकार करना चाहिए और इसको रोकने के लिए सरकार, विज्ञानिकों और डाक्टरों का सहयोग करना चाहिए |
          मेरा प्रगतिशील मुस्लिम विचारकों एवं बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि वे आगे आयें और समाज का नेतृत्व इन रुढ़िवादी मौलवियों एवं मौलानाओं से अपने हाथ लें | आज मुसलमानों का बहुत बड़ा तबका इन रुढ़िवादी जंजीरों से बाहर आना चाहता है उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता है | हमें ये समझना होगा कि कोई भी धर्म या पंथ अगर लोगों को जेहादी, जाहिल और ग्बार बनाता हो तो उस समाज के प्रगतिशील लोग ही आगे आकर उसकी कमियों को दूर कर सकते हैं | इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है | सैंकड़ों बर्ष पहले यूरोप के कुछ प्रगतिशील ईसाईयों ने कैथिलिक चर्च की रुढ़िवादी सोच अर्थात क्रुसेड की मानसिकता को तोड़ने का काम किया वे बाद में प्रोटेस्टेंट कहलाये | उनके सार्थक प्रयासों से पूरा यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका आज विकास की नई उचाईयों को छू रहा है | आज मुसलमानों को जेहाद की मानसिकता से बचाने के लिए इसी प्रकार की मुहीम की आवश्यकता है ताकि आज का मुसलमान भी विज्ञान और विकास के साथ जुड़ कर आगे बढ़े |   
          अंत में मैं यही कहूँगा कि आज सबसे बड़ी लड़ाई कोरोना वायरस से है जो पूरी मानवता के लिए खतरा बन गया है | आज जो विज्ञानिक, डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मी अथवा पुलिसकर्मी अपनी जान को जोखिम में डालकर हमको इस महामारी से बचाने में लगा है वही वास्तव में अल्लाह है वही इशु है और वही भगवान है | ईश्वर भी अपने बंदों के माध्यम से लोगों की सेवा करता है कोरोना योद्धा भी उसी के प्रतिनिधि हैं | अगर हम सब जिन्दा रहेंगे तो अपनी आस्था, विश्वास, परंपरा और विचारधारा भी जिन्दा रहेगी अन्यथा मरने के बाद किसने स्वर्ग और नरक देखे हैं | यही संसार की सचाई है | इसको हम सबको स्वीकार करना चाहिए |

Tuesday 14 April 2020

कोरोना वैश्विक संकंट के लिए जिम्मेदार कौन? - अशोक ठाकुर

Ashok Thakur 

          पिछले कल  भारत के प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन था | उन्होंने अन्य देशों की तरह तालाबंदी को 03 मई 2020 तक के लिए बढ़ाने की घोषणा करते हुए कहा कि अभी इस महामारी को रोकने के लिए तालाबंदी, शारीरिक दुरी, पृथकवास, मुख्पट्टी एवं शुद्धिकरण के अलावा कोई उपाय नहीं है | इसके तुरंत  बाद दोपहर दो बजे मुंबई के बांद्रा स्टेशन और अन्य शहरों के मजदूरों ने अपना धैर्य खो दिया और उनका सड़कों पर उतरना भयावह था | क्योंकि 21 दिन तालाबंदी के बाबजूद भारत में कल रात तक कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 11 हजार हजार पार कर गयी है | अर्थात कोरोना आम लोगों के बीच मौजूद है और इनमें अगर एक भी संक्रमित घुस जाता है तो हालात और बिगड़ सकते हैं |
          दूसरी तरफ अगर हम विश्व के आकड़ों पर गौर करें तो आज रात्री तक विश्व में कोरोना संक्रमित मरीजों के संख्या 20 लाख पार कर जाएगी |  अभी तक कोरोना संक्रमण लगभग 1 लाख 26 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चूका है अकेले अमेरिका में ही मरीजों की संख्या 6 लाख पार हो गयी है पूरा यूरोप मृत्यु शःया पर पड़ा है | मुझे आज  दुनिया के महान विज्ञानिक आइंस्टीन के परमाणु परीक्षण के समय गीता को उद्धृत कर कही वो लेने याद आ रही हैं  "श्रीभगवानुवाच | कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो | लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: | ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: || अर्थात मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और सृष्टि का नाश करने बाला हूँ परन्तु शायद आइंस्टीन जैसे विज्ञानिक ने भी कभी ये कल्पना नहीं की होगी की एक दिन दूरबीन से भी दिखाई नहीं देने वाला एक वायरस का बढ़ा हुआ विकराल रूप सारी पृथ्वी को लाचार और मजबूर बना देगा | उसके सामने बड़ी-बड़ी महाशक्तियां घुटने टेकने को मजबूर हो जाएँगी | दूसरा मुझे आज रामायण की एक चौपाई याद आ रही हैं जिसमें अंहकार और दंभ को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा है | आज अमेरिका और यूरोपिय देश जो अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं का दंभ भरते थे और उन्होंने काफी हद तक मृत्यु दर पर भी नियंत्रण पा लिया था यही दंभ उनपर भारी पड़ गया | डोनाल्ड ट्रम्प तो अंतिम समय तक गलतफहमी का शिकार रहे और आज पूरा अमेरिका उसका खामियाजा भुगत रहा है | सभी स्वास्थ्य सुविधाएं और इंतजाम बौने साबित हो रहे हैं
          अब सवाल ये उठता है कि पुरे विश्व को इस संकट में धकेलने के लिए कौन जिम्मेदार है क्या कभी इस पर किसी की जबाबदेही तय होगी भी या नहीं | क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन की भूमिका की भविष्य में जाँच होनी चाहिए या नहीं | वैसे तो मेरा मानना है कि अभी हम सबको अपनी पूरी शक्ति के साथ इसे वायरस को नियंत्रण में लाने का काम करना चाहिए | परन्तु एक बार ये महामारी नियंत्रण में आ जाये | तो फिर पूरी इमानदारी के साथ जाँच भी होनी चाहिए और आत्ममंथन भी होना चाहिए कि आखिर  इस संकट के लिए कौन जिम्मेदार है | उनको दुनिया के सामने लाना ही चाहिए | 
          इसलिए अभी तत्काल हम इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं कि ये चीन का जैविक हथियार है जो वुहान की एक लैब इंस्टिट्यूट आफ वाईरोलोजी से लीक हुआ है या ये वायरस किसी पशु-पक्षी या सी-फ़ूड के माध्यम से वुहान में आया है या चीन के विज्ञानिकों ने कनाडा की नेशनल माइक्रो बायोलॉजी लैब से चुराया है या फिर दुनिया के सबसे बड़े आमिर दानी बिल गेट्स और दवा कम्पनियों की मिली भगत का परिणाम है बिल गेट्स वास्तव में दानी हैं या बगुला भगत है या भेड़ की खाल में भेड़िया है | लेकिन अभी तक ये सब केवल कहानियाँ (Theory)  हैं और जाँच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है |
          परन्तु इन सभी के आब्जुद कुछ सवाल हैं जिनपर तुरंत विचार करना और निर्णय लेना अति आवश्यक है क्योंकि अगर अभी निर्णय नहीं लिया तो ये विश्व के लिए घातक हो सकते हैं पहला सवाल है कि अगर चीन को नबंबर के अंत में इस महामारी और इसके खतरनाक संक्रमण के बारे में जानकारी मिल गयी थी  तो उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से दुनिया के अन्य देशों को समय रहते क्यों नहीं चेताया | उसने इस सच्चाई को 6 हफ्ते तक क्यों छुपाये रखा | दूसरा सवाल ये खड़ा होता है कि अगर चीन इसको वुहान के अलावा चीन के अन्य शहरों में फ़ैलाने से रोकने में कामयाब हो गया था तो स्वभाविक है कि इसे दुनिया के अन्य देशों में फ़ैलने से भी रोका जा सकता था | लेकिन उसने ऐसा नहीं किया | चीन ने वुहान के निवासियों को अपने अन्य शहरों में जाने से तो रोका परन्तु विश्व के अन्य देशों में जाने से रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया | चीन के शहर वुहान से लाखों यात्री एवं पर्यटक लगातार दुसरे देशों में क्यों जाते रहे | क्या ये एक साजिस के तहत जानबूझकर किया गया तो विश्व को तुरंत सावधान होने की आवश्यकता है | इससे पहले भी 2002 -03 में सार्स वायरस फैलने के दौरान भी जानकारी छुपाई थी जिसके लिए उसे उस समय WHO से कड़ी लताड़ भी पड़ी थी | तत्कालीन WHO के डायरेक्टर जनरल ने चीन के पशु बाजारों से वायरल संक्रमण के खतरों को लेकर आगाह किया था | इसके बाबजूद चीन ने केवल चुप रहा बल्कि वास्तविक आंकड़ों को भी छुपाने का काम किया | इसलिए विश्व को तुरंत ये तय करना होगा कि चीन पर कितना और कैसे भरोसा किया जा सकता है करना भी है या नहीं करना है |
          आखिर WHO ने सही समय पर अन्य देशों को क्यों नहीं चेताया | उसने कई हफ्तों तक कोरोना वायरस के एक दुसरे से फैलने की संभावना से इन्कार क्यों किया | यहाँ तक कि एक दुसरे से फैलने की ताइवान की घोषणा, जोकि उनके फाइनेंसियल टाइम्स में प्रकाशित भी हुई, को क्यों नजरंदाज किया गया | न केवल नजरंदाज किया बल्कि 14 जनवरी को ट्विट में लिखा कि कोविड-19 के मामले में साफ नहीं है कि ये इंसानों से इंसानों में फैलता है जब अमेरिका ने चीन पर कोरोना मामले को छुपाने का आरोप लगाया तो WHO ने चीन का वचाव क्यों किया और कहा कि ये वुहान तक सीमित है इसलिए घबराने के जरूरत नहीं है यहाँ तक कि WHO के डायरेक्टर जनरल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता की ये दुनिया में फैलेगा और मौतें होंगी इसके अलावा यात्राएँ चालू रखने की भी सलाह दी | जबकि इस सलाह के 3-4 दिन के अन्दर चीन में मामले 79000 पार कर चुके थे और वायरस दुनिया के अन्य देशों में फ़ैल चूका था | वैसे तो WHO के डायरेक्टर जनरल पर इससे पहले भी सूचनाएं छुपाने के आरोप लग चुके हैं | इसलिए दुनिया के सामने अब सबसे बड़ा सवाल है कि अगर WHO का इतना गैर-जिम्मेदाराना रवैया है तो आगे उसपर कैसे भरोसा किया जा सकता हैं उपरोक्त तथ्यों के आधार पर इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि WHO के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी किसी साजिस का हिस्सा हों | इसलिए दुनिया के देशों को इसपर तुरंत फैसला लेना होगा कि क्या उनको WHO के भरोसे इस लड़ाई को लड़ना है या नहीं | 
          इसके अलावा अमेरिका और यूरोप के देशों के नेतृत्व को भी आत्म मंथन करना होगा कि आखिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी | आखिर इन देशों का ख़ुफ़िया तंत्र भी क्यों वेबस क्यों हो गया और इन देशों को इस गंभीर खतरे से चेताने में नाकाम क्यों हो गया | राजनैतिक स्तर पर फैसले लेने में इतनी देरी क्यों हो गयी |
          भारत की राजनैतिक शक्ति को भी अपने दंभ से बाहर आकर जमीनी हकीकत को समझना होगा | पहले दिल्ली फिर मुंबई, सुरत, अहमदावाद और न जाने कितने शहरों के मजदुर पलायन को बेताव हैं हजारों की संख्या में सडकों पर उतर आये हैं शारीरिक दुरी तो दूर की बात है वे एक-एक कमरे में झुंडों में रह रहे हैं अगर एक भी मरीज इनमें घुस गया तो हमारे हालात भी अमेरिका की गरीब बस्तियों ब्रोंक्स एवं क्वींस जैसे बन सकते हैं क्योंकि इनमें इतनी घनी आबादी है जो लाखों लोगों के संक्रमण और हजारों लोगों की मौत का कारण बन सकती है | इन घटनाओं की जबाबदेही भी तय करनी होगी कि आखिर ये परिस्थितियाँ बनी तो क्यों बनीं |
           अंत में मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम और पूरा विश्व इस संकट से जल्द से जल्द बाहर आयें और विश्व के अन्दर बंधुत्व और भाईचारे को स्थापित कर सकें । विश्व को संकट में  डालने बालों को दंड देंगे तथा इससे घटना से सबक लेकर संकल्प लेंगे कि हम "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।  के मूल मन्त्र को सार्थक करेंगे