Ashok Thakur

Thursday 16 April 2020

कोरोना योद्धाओं पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हमले का दोषी कौन | एक विश्लेषण

          देश में लाखों की डाक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, आशा कार्यकर्ता, सफाई कर्मचारी एवं पुलिसकर्मी जान को जोखिम में डालकर कोरोना से लड़ रहे हैं | ज्यादातर लोगों को जानकारी भी होगी कि कोरोना जैसी भयानक बिमारी से लड़ने के लिए हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के पास पीपीई अर्थात पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विमेंट्स जैसे कि मास्क, रेस्पिरेटर्स, आई शील्ड, गाउन और ग्लब्जस की भारी कमी थी | ऐसा कोरोना के अचानक तेजी से फैलने की बजह से हुआ | क्योंकि हम न तो तैयार थे और न ही WHO ने अवगत कराया था | चीन ने भी जानकारियों को छुपाने का काम किया जिसकी बजह से दुनिया के दुसरे देशों का हाल भी कुछ ऐसा ही था | यूरोप एवं अमेरिका में सैंकड़ों डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मीयों  को अपनी जान गंवानी पड़ी | अगर इन कारणों से हमारे स्वास्थ्य कर्मी इन पीपीई किट्स के इन्तजार में मरीजों का इलाज प्रारंभ नहीं करते तो हजारों नागरिकों की जान का खतरा हो सकता था | सब तकलीफों के बाबजूद हमारे डाक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों ने बड़ी हिम्मत के साथ अपनी जान को जोखिम में डालकर सीमित संसाधनों में देश के मरीजों का इलाज प्रारंभ किया | जिसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है |  
          मुझे लगता है कि ऐसे समय में जहां इन स्वास्थ्य एवं पुलिस कर्मियों का उत्साह बढ़ाना जरूरी था और ऐसा ही प्रधानमंत्री जी ने किया भी और इनका उत्साह बढ़ाने के पुरे देश से आग्रह किया और देशवासियों ने ऐसा किया भी | इन सबके के बाबजूद एक खास तबका इन कोरोना योद्धाओं पर हमले कर रहा है जो अत्यंत निंदनीय है पिछले  तीन दिनों में छिटपुट घटनाओं के अलावा देश के अन्दर डॉक्टरों, नर्सों, आशा कार्यकर्ताओं एवं पुलिस कर्मियों पर 9 बड़े हमले हो चुके हैं | इस महामारी से जंग कितनी दुश्वार है इसका अंदाजा निम्न आकड़ों से लगाया जा सकता है पूरा विश्व कोरोना के इस संकट से झुझ रहा है लगभग 21 लाख संक्रमितों मरीजों में से 1 लाख 35 हजार की जान जा चुकी है और लगभग 51 हजार से ज्यादा मरणासन्न हैं अमेरिका जैसी महाशक्ति एवं यूरोप के विकसित देश भी लाचार और अहसाय दिख रहे हैं उनके यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं | भारत में भी तालाबंदी के बाबजूद संक्रमित मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है इस समय देश के अन्दर तालाबंदी के समय 486 मामलों की तुलना में मामले बढ़कर लगभग 12.5 हजार से ज्यादा हो गए हैं और लगभग 420 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है | केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी ने इस महामारी को रोकने के लिए रात-दिन एक कर रखा है | परन्तु इन हमलों ने इस मुश्किल कार्य को और दुश्वार बना दिया है
          अब सवाल उठता है कि आखिर ये सब हो क्यों रहा है कौन अनपढ़, जाहिल एवं ग्बार लोग हैं जो अपनी ही जान के दुश्मन बने हुए हैं हमने कालिदास जैसे महामूर्ख के बारे में तो सूना था | जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर बैठा था | लेकिन आज हजारों कालिदासों को अपनी आखों से देख रहे हैं | जो अपने रक्षकों पर ही हमले कर रहे हैं |
इसके अलावा पिछले कल मैं एनडीटीवी इण्डिया एवं कुछ अन्य चैनलों में एक स्टोरी देख रहा था जिसमें धर्म के नाम पर भेदभाव को लेकर सवाल उठाये थे | शिवसेना के नेता संजय राउत ने तो मस्जिद का जिक्र करने के लिए कपिल मिश्रा पर मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करने की मांग तक कर डाली है | इसके अलावा एंकर का कहना कि हिन्दू मुसलमानों से सामान नहीं खरीद रहे हैं | कुछ मुस्लिम तो अपना नाम छुपा कर सब्जी बेचने को मजबूर हैं | इनके साथ मारपीट होने के कारण एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया गया है | मेरा मानना है कि अगर कहीं भी ऐसा होता है तो ये मानवता को शर्मशार करने बाला है इसकी जितनी भी निंदा की जाये वो कम है | लेकिन मुझे लगता है कि आधी-अधूरी तहकीकात एवं अधुरा विश्लेषण कर एंकर ने खबर के साथ न्याय नहीं किया है और इसके लिए उन्होंने पूरी तरह दुसरे धर्म या पंथ के लोगों को कटघरे में खड़ा करके का कम किया है जिसने दोनों के बीच की खाई को और बढ़ाने का ही काम किया है | उनको इसकी तह तक जाना चाहिये और निष्पक्ष बिश्लेषण होना चाहिए | मेरा सवाल है क्या इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए कि वास्तव में इन घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है | क्या वो हिन्दू जिसके मन में तबलीगी जमात और अन्य मुस्लिम के हमलों की खबरों के कारण डर पैदा हो गया और उसने उनके साथ मारपीट की या वो चैनल जिन्होंने तबलीगी जमात और मस्जिदों से हमले की घटना को दिखाया या वो लोग जिन्होंने प्रशासन के साथ सहयोग करने से मना कर दिया और कोरोना के कैरियर बनकर उसको पुरे देश में फैलाया या जिन्होंने उनका इलाज कर रहे डाक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर न केवल थूका बल्कि अनेक जाहिलाना हरकतें की हैं या वो लोग जिन्होंने उनका जीवन बचाने में लगे स्वास्थ्य कर्मियों एवं पुलिस कर्मियों पर हमला किया | मेरा सवाल है क्या ये सब घटनाएँ सामान्य जनमानस के मन पर आघात नहीं करती हैं क्या इस घटनाओं ने मुसलमानों के प्रति नकारात्मक छवि नहीं बनाई होगी | आखिर क्यों इन घटनाओं में मुस्लिम तबके के ही भाई-बहनों शामिल रहे हैं चाहे दिल्ली में मुसलामानों का मरकज भवन में गुडागर्दी और इलाज के दौरान तब्लिगियों की बदतमीजी हो या  मुम्बई में भीड़ इक्कठी हुई तो मस्जिद के पास हुई या मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, इंदौर सभी जगह हमलों में मस्जिद का कनेक्सन रहा हो या बेंगलुरु में मस्जिद के लोगों के भडकाने पर आशा कार्यकर्ता पर हमला हुआ हो या ऊतर प्रदेश के मुजफ्फरनगर हो या जयपुर का रामगंज क्षेत्र हो सभी हमलों का संबंध मुस्लिम तबके के लोगों से हो | क्या ये सवाल जायज नहीं है कि आखिर ये सभी घटनाएँ एक बर्ग विशेष से जुड़े क्षेत्रों में ही क्यों हो रही हैं | क्या अब इनको सरंक्षण देने के लिए मोदी सरकार या राज्य सरकारें वैसा ही करना चाहिए | जैसे कि उस समय की कांग्रेस सरकार ने जब देखा की सभी आतंकवादियों का संबंध मुसलमानों से है और लगातार ये सवाल उठ रहें कि सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों निकल रहे हैं उस समय एक बड़े नेता का कहना कि " कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों निकल रहे हैं" तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनको सरंक्षण देने के लिए हिन्दू आतंकवाद का जाल रच दिया | जिसकी कहानी सारा देश और दुनिया जानती है | तो क्या अब कुछ मेरे पत्रकार चाहते हैं कि इनके कुकृत्यों को छुपाने के लिए मस्जिद की जगह क्या मंदिर लिख दिया जाये | क्या केवल इसलिए सचाई को छुपा देना चाहिए कि मुसलमानों के प्रति दुसरे तबके के लोगों के मन में नफ़रत न बढ़े | लेकिन उनको पता होना चाहिए कि जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा फल पायेगा | बबुल का पेड़ लगाने से आम पैदा नहीं होते हैं अगर गलत काम करेंगे तो उनकी छवि खराब होगी ही और गेहूं के साथ धुन तो पिस्ता ही है | मैं समझता हूँ कि इन जाहिलों से मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबका इत्तफाक नहीं रखता है और वे भी इनके वैसा ही व्यवहार करेंग जो अन्य धर्म और पंथों के लोगों ने किया | लेकिन उनके मुकाबले अन्य धर्म एवं पंथों के लोगों को एक अच्छे और बुरे मुसलमान में फर्क करना निहायत ही मुश्किल काम है | इसलिए वो अज्ञानवस दोनों को एक ही तराजू में तोलता है | लेकिन हजारों मुसलमान आज भी शान से हिन्दू  मुहल्लों में रह रहे हैं और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा है जिनके बारे में दुसरे लोग जानते हैं | इसलिए इन घटनाओं के दूसरों को दोष देना गलत है मुझे बचपन की वो कहानी याद आ रही है जिसमें बाबा भारती का घोड़ा डाकू खड़क सिंह ने एक गरीब के भेष में लुट लिया था लेकिन बाबा भारती ने स्वयं डाकू खड़क सिंह से इस घटना का जिक्र नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा था कि अगर आपने किसी से इस घटना का जिक्र किया तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा | उस कहानी का सार यही है कि उस घटना का पता लगने पर लोगों का गरीबों पर से विश्वास उठ जाता और फिर कोई जरूरतमंद गरीब की मदद नहीं करता | 
          देश के मुसलमानों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों, मौलवियों और मौलानाओं को उस कहानी से अवश्य सबक लेते हुए ये समझना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं से मुस्लिम समाज की छवि ही घहरा आधात लगा है | जिसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं | कुछ लोग चैनलों पर बैठकर शब्दों के हेर-फेर से उसका दोष दूसरों पर भले ही मढ़ दें | लेकिन सच्चाई को कोई बदल नहीं सकता है |  कुछ मुस्लिम धर्मगुरुओं के झूठी और संदिग्ध रिसर्च के आधार पर झूठ फैलाना कि कोरोना मुसलमानों पर असर नहीं करता है उसका खामियाजा भी उनके ही लोगों को भुगतना पड़ रहा है एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ही नहीं पकिस्तान में भी लाखों लोगों ने कोरोना का टेस्ट कराने से मना कर दिया है ऐसा अनेक अन्य मुस्लिम देशों से भी सुनने में आया है | इसके भयानक परिणाम हो सकते हैं | इसलिए मेरा सभी पक्षों से अनुरोध है कि हमें अपनी गलती को स्वीकार करना चाहिए और इसको रोकने के लिए सरकार, विज्ञानिकों और डाक्टरों का सहयोग करना चाहिए |
          मेरा प्रगतिशील मुस्लिम विचारकों एवं बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि वे आगे आयें और समाज का नेतृत्व इन रुढ़िवादी मौलवियों एवं मौलानाओं से अपने हाथ लें | आज मुसलमानों का बहुत बड़ा तबका इन रुढ़िवादी जंजीरों से बाहर आना चाहता है उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता है | हमें ये समझना होगा कि कोई भी धर्म या पंथ अगर लोगों को जेहादी, जाहिल और ग्बार बनाता हो तो उस समाज के प्रगतिशील लोग ही आगे आकर उसकी कमियों को दूर कर सकते हैं | इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है | सैंकड़ों बर्ष पहले यूरोप के कुछ प्रगतिशील ईसाईयों ने कैथिलिक चर्च की रुढ़िवादी सोच अर्थात क्रुसेड की मानसिकता को तोड़ने का काम किया वे बाद में प्रोटेस्टेंट कहलाये | उनके सार्थक प्रयासों से पूरा यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका आज विकास की नई उचाईयों को छू रहा है | आज मुसलमानों को जेहाद की मानसिकता से बचाने के लिए इसी प्रकार की मुहीम की आवश्यकता है ताकि आज का मुसलमान भी विज्ञान और विकास के साथ जुड़ कर आगे बढ़े |   
          अंत में मैं यही कहूँगा कि आज सबसे बड़ी लड़ाई कोरोना वायरस से है जो पूरी मानवता के लिए खतरा बन गया है | आज जो विज्ञानिक, डाक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मी अथवा पुलिसकर्मी अपनी जान को जोखिम में डालकर हमको इस महामारी से बचाने में लगा है वही वास्तव में अल्लाह है वही इशु है और वही भगवान है | ईश्वर भी अपने बंदों के माध्यम से लोगों की सेवा करता है कोरोना योद्धा भी उसी के प्रतिनिधि हैं | अगर हम सब जिन्दा रहेंगे तो अपनी आस्था, विश्वास, परंपरा और विचारधारा भी जिन्दा रहेगी अन्यथा मरने के बाद किसने स्वर्ग और नरक देखे हैं | यही संसार की सचाई है | इसको हम सबको स्वीकार करना चाहिए |

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