Ashok Thakur

Saturday 12 December 2020

कृषि कानूनों का विरोध छोटे एवं गरीब किसानों के हितों पर कुठाराघात – अशोक ठाकुर


नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार गरीबों के लिए समर्पित सरकार है ऐसा उन्होंने संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद न केवल कहा था बल्कि अपने पिछले 6 वर्षों के कार्यकाल में गरीब, मजदुर एवं छोटे किसानों के लिए काम करके सिद्ध भी कर दिया है | किसानों के नाम पर होने बाले भ्रष्टाचार को समाप्त करने में मोदी सरकार ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है और इसी दिशा में काम करते हुए सरकार ने गरीब एवं माध्यम दर्जे के किसानों के हितों को ध्यान में रखकर तीन कृषि कानून बनाये हैं | पंजाब के कुछ बड़े एवं समृद्धशाली किसान आन्दोलित हैं दिल्ली के सीमा क्षेत्रों से आम जनता एवं आवश्यक चीजों की आवाजाही रोककर सरकार पर दबाब बढ़ाने की कोशिश भी की है | मुझे लगता है कि पंजाब और आसपास के कुछ लाख किसान देश के करोड़ों किसानों के लिए लाभदायक कानूनों को धक्काशाही से और सरकार पर अनुचित दबाब बनाकर कानूनों को समाप्त कराना चाहते हैं इसमें विपक्षी राजनैतिक पार्टियों के हित छिपे हैं जो पार्टियाँ पिछले तीन दशकों में किसानों की मांगों को लेकर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ीं,| वे आज अनेक सुझाव दे रहे हैं | वो भी ऐसे सुझाव जिनको स्वयं लागू करने की जहमत नहीं उठाई | इन संशोधनों को रोकना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है |

सरकार किसान संगठनों से बात करने और कृषि कानूनों में न्यायोचित बदलाव के लिए भी तैयार है | इस संबंध सरकार ने किसान संगठनों को प्रस्ताव भी भेज दिए हैं जिसमें लगभग सभी शंकाओं का निवारण भी कर दिया है परन्तु फिर भी वे तीनों कानूनों को वापिस लेने के लिए अड़े हैं | इसके पीछे कुछ राजनैतिक शक्तियाँ एवं राजनैतिक साजिश की भी बू आ रही है | इन कानूनों से किसानों का कितना भला और कितना नुकसान है इसका आंकलन तो किसानों को ही करना होगा | लेकिन ऐसा संभव हो नहीं हो पा रहा है क्योकि आन्दोलन कुछ बड़े, समृद्धशाली, प्रभावशाली एवं विचौलिया लोबी के हाथों में चला गया है और किसान संगठन भी उनके दबाव में है जो किसानों को आधी-अधूरी सच्चाई बता रहे हैं |   

§  कृषि सुधारों की मांगें चार दशक पुरानी हैं पिछले चार दशकों से ये मांग उठती रही है 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद, इसने अधिक जोर पकड़ लिया था | अनेक कृषि विशेषज्ञयों ने भी समय-समय पर इसकी मांग की है इन मांगों के दबाव में ही स्वामीनाथन आयोग की स्थापना की गयी थी जिसकी सिफारिशें भी सन 2004 से 2006 के बीच आ गयी थीं जिनको लागू करने की मांग भी एक दशक तक लंबित रही | परन्तु तत्कालीन मनमोहन सरकार उसको लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी | किसानों की मांगों के दबाब में कांग्रेस ने भी अपने 2009, 2013 एवं 2019 लोकसभा चुनावों के घोषणा पत्र एवं संकल्प पत्र में भी कृषि सुधारों का वायदा किया था जिसका वे आज विरोध कर रहे हैं जो आश्चर्यजनक और कांग्रेस की लगातार गिरती राजनैतिक विश्वनीयता का जीता-जगता उदहारण है |

मोदी सरकार ने सन 2015 से ही किसानों की आय को बढ़ाने के लिए अपेक्षित कृषि सुधारों की  दिशा में काम करना प्रारंभ कर दिया था जिसकी स्वयं स्वामीनाथन जी ने भी सराहना की थी | सन 2016 में सरकार ने देश के जाने-माने 300 कृषि विशेषज्ञयों के साथ तीन दिनों तक गहन चर्चा की थी किसानों की एक-एक समस्या को चिन्हित किया गया और अलग समूह बनाकर भी चर्चा की थी विभिन्न सिफारिशों को सामने रखकर विचार हुआ था इसमें कृषि विशेषज्ञों के अलावा स्वयं प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री रामविलास पासवान, खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्री,  कृषि सचिव, योजना आयोग के सदस्य एवं अनेक महत्वपूर्ण लोगों ने हिस्सा लिया था | इसके समाप्ति पर राज्यसभा टीवी ने एक परिचर्चा का आयोजन किया था जिसमें, मैं स्वयं कृषि सचिव, किसानों की आय दुगुनी करने के लिए काम करने वाली समिति के अध्यक्ष अशोक दलवी जी एवं अन्य के साथ मौजूद था इस दौरान सरकार के इस प्रयास की काफी सराहना हुई थी इसके बाद भी सरकार समय-समय पर किसान प्रतिनिधियों एवं कृषि विशेषज्ञयों से बातचीत जारी रही और आज किसान को मिलने वाली 6000 रूपये की किसान सम्मान निधि की वार्षिक सहायता एवं ए-2 + एफएल फार्मूले के साथ कृषि उपज पर लागत मूल्य का 50 प्रतिशत लाभ के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण उसी का परिणाम है इसलिए किसान नेताओं का यह कहना कि कृषि सुधारों की मांग उन्होंने नहीं की है या सरकार बिना तैयारी के अचानक लायी है सरासर गलत है | सरकार ने किसानों की लम्बी मांगों को ध्यान में रखकर एवं पूरी तैयारी के साथ कृषि कानूनों में वो सुधार करने का निर्णय लिया है जो किसानों के हित में है |

§  दूसरा कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम में सुधार को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है और ये शंका जाहिर की जा रही है कि मंडियां समाप्त हो जाएँगी | जबकि सरकार ने 2015 से ही मंडियों को मजबूत एवं आधुनिक बनाने के लिए बजट बढाना प्रारंभ कर दिया था पहले चरण में 585 मंडियों को ई-नाम से जोड़ने के लिए इनका बजट लगभग पांच गुना बढाकर 75 लाख कर दिया था इसके अलावा केंद्र सरकार ने 22 हजार छोटे हाटों को कृषि मंडीयों में परिवर्तित करने का काम प्रारंभ किया जो आज भी जारी है इन सुधारों के बाद मंडियों के विस्तार एवं आधुनिकरण में तेजी आएगी | राज्य सरकारें एपीएमसी क्षेत्र के बाहर मार्किट फीस कम होने के कारण दबाव में आएँगी | वर्तमान मंडियों की प्रबंधक समितियों का एकाधिकार कम होगा और प्रतिस्पर्धा के कारण उन्हें अपने साथ रखने के लिए किसानों को ज्यादा सुविधाएं देनी पड़ेंगी | जिसका सीधा फायदा किसानों को होगा | किसानों की कृषि सहकारी संस्थाएं एवं किसान उत्पादक संगठनों को उनके उत्पादों को खरीदने एवं बेचने की अलग से छुट होगी | जो उनको सीधे फ़ूड चेन से जोड़ने का काम करेंगे और विचौलियों की भूमिका को कम करेंगे | निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा के कारण उनपर भी किसानों को ज्यादा अच्छी सेवाएँ देने का दबाव होगा | अभी इन संस्थाओं के प्रबंधक अपने एकाधिकार के कारण सुस्त रहते हैं | जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है | इन सुधारों के बाद उन्हें किसानों को ज्यादा बेहतर सेवाएँ एवं सुविधाएं देनी पड़ेंगी | जो किसानों के हित में हैं आज नेफेड अपने स्तर पर पहले चरण में 100 आधुनिक मंडियों की स्थापना कर रही है जो वर्तमान सरकारी मंडियों को अपनी सेवायों में सुधार के लिए बाध्य करेंगी | सरकार ने उपलब्ध 8 हजार किसान उत्पादक संघों के अलावा 10 हजार नए एफपीओ बनाने का काम प्रारंभ किया है जिसके लिए लगभग रूपये 6,850 करोड़ का प्रावधान भी किया गया है | इसके अलावा सरकार ने नए कृषि सुधार अधिनियमों के प्रकाश में किसानों को प्रशिक्षण देने का कार्य भी प्रारंभ किया है | इस कार्य में पैसे की कमी न आये इसके लिए सरकार ने 1 लाख करोड़ के बुनियादी ढांचा विकास फण्ड की घोषणा की है किसानों एवं कृषि संस्थओं को मजबूत बनाने के सभी काम युद्ध स्तर पर जारी है जिसके परिणाम जल्द ही दिखाई देने लगेंगे | जिसके बाद निजी क्षेत्र के लोगों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा जिसका अंतत: किसानों को फायदा मिलेगा | सरकार के वर्तमान प्रस्ताव अर्थात राज्यों सरकारों को निजी मंडी एवं कर लगाने की छूट देने एवं पंजीकरण के लिए नियम बनाने की छुट देने के बाद किसानों को आश्वस्त हो जाना चाहिए |      

§  तीसरा न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम फैलाए जा रहे हैं | परन्तु कुछ तथ्यों आर गौर करने से किसानों का भ्रम दूर हो सकता है जैसे कि आज कांग्रेस एवं अन्य दल एमएसपी की गारंटी की बात कर रहे हैं जबकि कांग्रेस ने अपने 10 साल के कार्यकाल में इसको चिमटे से भी छूने से परहेज किया था जबकि मोदी सरकार ने ए-2 + एफएल के फोर्मुले के तहत स्वामीनाथन की मांग को स्वीकार कर कृषि उत्पाद की लागत पर 50% मुनाफे के साथ एमएसपी के निर्धारण का निर्णय लिया | दूसरा चंद फसलों की बजाय 23 फसलों को इसके दायरे में लाने का काम किया | तीसरा कुल उत्पादन की खरीदी जो 2014 से पहले 7 से 8 प्रतिशत ही होती थी जिसका लाभ 5% से भी कम किसानों को मिलता था वहीं आज धान में कुल उत्पादन की 43%, गेहूं में कुल उत्पादन की 36%, गन्ने के कुल उत्पादन की 80% एवं कपास के कुल उत्पादन की लगभग 30% तक खरीदी करने का काम किया है दलहन एवं तिलहन में तो बजट 650 करोड़ रूपये से बढाकर 50 हजार करोड़ करते हुए वार्षिक खरीदी को सवा लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 35 लाख मीट्रिक टन तक ले जाने का काम किया है | जो कि पहले के मुकाबले 30 गुना से भी ज्यादा है | मोदी सरकार दवारा लिखित आश्वासन देने के बाद एमएसपी के संबध में कोई सवाल बचना ही नहीं चाहिए |

§  शांता कुमार समिति की सिफारिशों पर भी गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया | शांता कुमार जी ने कभी भी एमएसपी समाप्त करने की बात नहीं की थी और न ही एफसीआई को समाप्त करने की बात की है बल्कि उन्होंने एफसीआई की दोषपूर्ण खरीदी, बिक्री एवं भंडारण व्यवस्था को सुधारने की बात कही थी और एफसीआई की खरीदी, भंडारण एवं बिक्री प्रक्रिया में राज्यों एवं अन्य निजी संस्थाओं को जोड़ने की भी सिफारिस की थी | उनकी मंशा पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लाने की थी | जिससे ये संस्था किसानों के प्रति ज्यादा व्यवसायिक, जबावदेह बन सके | केंद्र सरकार द्वारा मंडियों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार राज्यों को देने के बाद ये सवाल भी समाप्त हो गया है |

§  मैं समझता हूँ कि आज जिन परिस्थितियों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को गुजरना पड़ रहा है ऐसा ही परिस्थितयों से एनडीडीबी की स्थापना एवं हरित क्रांति के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी को भी गुजरना पड़ा था | एनडीडीबी की स्थापना के समय काफी विरोध झेला था और मात्र 500 रूपये के बजट का भी प्रावधान नहीं कर सके थे | लेकिन वो अपने फैसलों के साथ खड़े रहे और बाद में सभी शंकाओं से परे उस समय के सुधारों के परिणाम सुखद निकले थे | श्वेत क्रांति एवं हरित क्रांति के बाद दुग्ध एवं अन्न उत्पादन में देश न केवल आत्मनिर्भर बना बल्कि लाखों किसानों के जीवन में खुशहाली लाने का भी काम किया | आज अनेक निजी कंपनियों के बाजार में होने के बाबजूद अमूल, इफ्फको, नेफेड एवं कृभको अग्रणी कृषि संस्थाएं हैं | मोदी सरकार के कार्यकाल में इनके जैसी हजारों संस्थाओं  का बजट एवं कारोबार पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है | आज किसान उत्पादक संगठन तेजी से विकसित हो रहे हैं | देश का फल, सब्जी , दलहन, तिलहन एवं अन्न उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुच गया है | इन संस्थाओं ने लाखो करोड़ का बुनियादी ढांचा एवं कारोबार खड़ा कर लिया है वे निजी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कम्पनियों को टक्कर देने में सक्षम हैं इसलिए किसानों को कतई आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है | ऐसा कहना कि कृषि क्षेत्र पर पूंजीपतियों का कब्जा हो जायेगा या किसानों की जमीनें छीन ली जाएँगी | उनपर सरकार ने जो प्रस्ताव दिए हैं उनसे सभी शंकायें का निराकरण कर दिया है | सरकार ने विवाद को एसडीएम कोर्ट से बाहर सिविल न्यायलय में जाने की शर्त को स्वीकार कर लिया है | कृषि अनुबंधों की सारी जिम्मेदारी किसान के बजाय करार करने वाली कंपनी पर डाल दी है और स्पष्ट कर दिया है कि किसान पर न तो कोई पेनल्टी लगेगी और न ही जमीन पर ऋण लेने अथवा कुर्की करने का अधिकार होगा | किसान की जमीन पर खड़ी सरंचना अगर तय समय के अन्दर नहीं हटाई गयी तो किसान को मालिकाना हक़ मिल जायेगा | मुझे लगता है कि अब किसानों के जमीन पर पूंजीपति कब्ज़ा कर लेंगे | इस प्रकार की बात करने का कोई औचित्य नहीं रह गया है | इसके अलावा इन विधेयकों के अलावा भी बिजली एवं पराली के संबंध में भी सरकार ने किसानों को रहत देने की बात की है     

    इसलिए मेरा किसानों से कहना है कि मोदी सरकार की मंशा को समझना चाहिए | जिसने पिछले वर्षों में कृषि बजट को 12 हजार करोड़ से बढ़ाकर 1 लाख 34 हजार करोड़, कृषि शोध को बढ़ावा देने, कृषि उपज के सभी खर्चे एवं परिवार की मजदूरी जोड़कर लागत का डेढ़ गुना एम्एसपी निर्धारण, एमएसपी का दायरा 23 फसलों तक बढ़ाने, पहले से उपलब्ध मंडियों का बजट कई गुना बढ़ाने और उनको आधुनिक बनाने, 22 हजार छोटे हाटों को कृषि मंडियों में परिवर्तित करने, यूरिया की कालाबाजारी को समाप्त करने, फसल बीमा का दायरा जिले से घटाकर ग्राम पंचायत करने, सिंचित क्षेत्र में सुधार करने एवं लगभग 11 करोड़ से ज्यादा किसानों को डीबीटी से जोड़कर 6000 रूपये वार्षिक राशी सीधा उनके खाते में हस्तांतरित करने का निर्णय लिया हो या विचौलियों की भूमिका को सीमित करने के लिए एमएसपी पर खरीदी का भुगतान सीधा किसान के खाते में करने, खरीदी का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करने, भ्रष्टाचार पे रोक लगाने एवं एक किसान से खरीदी की अधिकतम सीमा तय करने का महत्वपूर्ण निर्णय लेकर खरीदी की प्रक्रिया में बड़े वदलाब किये हैं इससे बड़े, समृद्धशाली एवं प्रभावशाली किसानों की तानाशाही को लगाम लगी है | ये सभी निर्णय मध्यम एवं गरीब किसानों के हितों की रक्षा हेतु लिए गए हैं इसलिए आज उन गरीब एवं मंझोले किसानों को समझना होगा कि कुछ समृद्धशाली एवं प्रभावशाली किसान उनका हक़ छिनना चाह रहे हैं जो इन कृषि सुधारों में निहित हैं अत: कुछ लाख किसान धक्काशाही से करोड़ों किसानों के हितों को दांव पर लगाकर अपने हितों को साधने में सफल हो जायें | ये देश हित एवं किसान हित में नहीं है जिसको रोकने की आवश्यकता है और अब सैंकड़ों किसान इसके खिलाफ मुखर भी होने लगे हैं | मुझे पूरा भरोसा है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान होगा |

अशोक ठाकुर 

निदेशक, नेफेड, भारत सरकार 

 

 

Thursday 29 October 2020

नए कृषि कानूनों से देश के किसानों को डरने की कोई आवश्यकता नहीं - Ashok Thakur

Ashok Thakur



देश के कुछ क्षेत्रों में किसानों का आन्दोलन जारी है और अब दिल्ली में आयोजित विभिन्न किसान संगठनों की बैठक में मिलकर कृषि सुधार अधिनियमों का विरोध करने का निर्णय लिया है | इन सभी संगठनों का कहना है कि वर्तमान कृषि सुधार अमेरिका एवं यूरोप का एक असफल (FAIL) मॉडल है और सरकार कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों के हाथों सौंपने के लिए ऐसा कर रही है, वे इन कृषि सुधारों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एवं मंडियों को समाप्त करने की साजिस करार दे रहे हैं जिसके कारण किसानों का एक वर्ग, विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान, आशंकित एवं भ्रमित हैं अब सवाल उठता है कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है और इन किसान संगठनों का आन्दोलन कितना किसानों के हित में है और कितना उनके हितों के खिलाफ है |

यदि हम प्रथम दृष्टया देखें तो, सरकार पर ये आरोप तर्कहीन दिखाई पड़ते हैं क्योंकि भारत और पश्चिम की तुलना करना ठीक नहीं है भारत और पश्चिम का वातावरण एवं परिस्थितियाँ पूर्णत: भिन्न है इसलिए तुलना करने से पहले अनेक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना अत्यंत आवश्यक है | कुछ समय पहले मुर्गीपालक किसानों के पिंजरों पर प्रतिबन्ध लगाने के मामले में देखने को मिला था | उस समय यूरोप की तर्ज पर मुर्गियों के पिंजरों पर प्रतिबंध लगाकर, उन्होंने खुले में रखने का दबाब बनाया गया था | एक बार तो पशु हिंसा के नाम पर सरकार एवं न्यायालय का एक बड़ा वर्ग उनके इस तर्क से सहमत भी दिखाई दे रहा था | परन्तु जब इसपर वैज्ञानिक अध्ययन किया गया तो पता चला कि यूरोप में वर्ष भर तापमान 20 डिग्री से नीचे रहता है और वहां मुर्गियां को खुले में रखने में कोई समस्या नहीं है परन्तु इसके ठीक विपरीत, भारत में भीषण गर्मी पड़ती है और तापमान 40 से 50 डिग्री तक चला जाता है उस तापमान में मुर्गियों का खुले में रखना संभव ही नहीं है और उन्हें तो वाताकुलुनित एवं स्वच्छ कमरों में रखने की आवश्यकता है इसलिए भारत की परिस्थितियों में मुर्गियों को पिंजरों में रखना जरूरी है | गहराई से अध्ययन करने पर पता चला कि भारत की कुछ सामाजिक संस्थाओं ने यूरोप के मुर्गीपालकों से चंदा लेकर भारत के मुर्गीपालक किसानों के हितों के साथ समझौता करने का काम किया | यूरोपीय व्यापारिक संघ एवं सरकारें, भारत में मुर्गीपालन में लगने वाली कम लागत के चलते, भारत के बढते निर्यात से दबाब में थीं | लेकिन पोल्ट्री फेडरेशन आफ इंडिया एवं सरकार की सक्रियता से समस्या का समाधान हो गया अन्यथा भारत के मुर्गीपालक किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था |  

आज एक बार फिर, उसी तर्ज पर अमेरिका एवं यूरोप के मॉडल का हवाला देकर कृषि सुधारों को रोकने की वकालत हो रही है जबकि अमेरिका एवं यूरोप में एक-एक फार्म कई सौ एकड़ जमीन में फैले हैं और भारत में अधिकतर किसानों के पास 01 अथवा 02 एकड़ से भी कम जमीन उपलब्ध है दोनों की परिस्थितियों की तुलना संभव ही नहीं है और न ही वहां की नीतियों को यहाँ की परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है | भारत में छोटे किसानों को लागत कम करने के लिए सामूहिक खेती करने की आवश्यकता है और इन सब बातों को ध्यान में रखकर, सरकार ने पहले से ही किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना प्रारंभ कर दिया था पहले से उपस्थित सहकारी संस्थाओं एवं 8 हजार से ज्यादा किसान उत्पादक संघों के अलावा सरकार 10 हजार नए किसान उत्पादक संघ बनाने का काम कर रही जिसके लिए नेफेड, एनसीडीसी एवं एसएफएसी को अधिकृत किया गया है लगभग रूपये 6,850 करोड़ का प्रावधान भी किया गया है इसके अलावा सरकार ने कृषि उत्पादक संघ बनाने के साथ-साथ नए कृषि सुधार अधिनियमों के प्रकाश में किसानों के प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी प्रारंभ कर दिए हैं | इसके अलावा नेफेड ने प्रारंभिक चरण में 100 आधुनिक मंडियां बनाने का काम प्रारंभ कर दिया है महाराष्ट्र में कृषि उत्पादक संगठन एवं नेफेड की साझेदारी में किसानों की पहली आधुनिक कृषि मंडी का शुभारंभ, माननीय मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे जी के हाथों से हो चुका है, अन्य मंडियों का काम युद्ध स्तर पर जारी है | इसके अलावा उपलब्ध मंडियों के आधुनिकीकरण का काम भी चल रहा है सरकार ने इन संगठनों एवं कृषि सहकारी संस्थाओं के माध्यम से 100 प्रतिशत छोटे एवं मझोले किसानों को जोड़ने, प्रशिक्षित करने एवं व्यापारिक बुनियादी ढांचा विकसित करने का लक्ष्य रखा है | ताकि वे निजी क्षेत्र की संस्थाओं से प्रतिस्पर्धा कर सकें |    

दूसरा कुछ राजनैतिक एवं किसान नेताओं का ये कहना कि इस व्यवस्था से देश का पूरा कृषि क्षेत्र चंद पूंजीपतियों के हाथों में चला जाएगा | तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ और न ही भारत में ऐसा संभव है | कुछ ऐसे ही सवाल स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के कृषि सुधारों के समय, 60 के दशक में भी उठाये गए थे | परन्तु सभी शंकाओं से परे, इसके परिणाम सुखद थे और हरित क्रन्ति एवं श्वेत क्रांति के बाद, अन्न एवं दुग्ध उत्पादन में न केवल देश आत्मनिर्भर बना बल्कि किसानों के जीवन में खुशहाली भी लाया | भारत में आज अधिकतर लोगों को ये जानकारी नहीं होगी कि हरित क्रांति एवं दुग्ध क्रांति में सरकारों से ज्यादा कृषि सहकारी संस्थाओं का योगदान था | नेफेड, इफ्फको, अमूल एवं राज्य सहकारी बैंकों ने हरित एवं श्वेत क्रांति लाने में बड़ी महती भूमिका निभाई थी भारत सरकार ने पिछले 6 सालों में, इन संस्थाओं की मजबूती के लिए काम किया है ताकि वे पहले से ज्यादा मजबूत एवं पेशेवर बन सकें | इसी का परिणाम है कि नेफेड, इफ्फको, कृभको एवं अमूल जैसी संस्थाओं को निजी क्षेत्र चाहकर भी चुनौती नहीं दे पाया है इन सुधारों के बाद कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिका अवश्य बढ़ेगी और निजी क्षेत्र का भारी निवेश भी आयेगा | लेकिन पहले से काम कर रही किसानों की संस्थाओं एवं सरकार की सामानांतर निवेश योजना से संतुलन बना रहेगा | इसके लिए भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के आधारभूत ढांचा विकास के लिए 01 लाख करोड़ का कोष स्थापित किया है ग्रामीण विकास के लिए भी भारी बजट का प्रावधान किया है कृषि बजट को 12 हजार करोड़ से बढाकर 1.34 करोड़ रूपये कर दिया है किसान सम्मान निधि के माध्यम से सीधा किसानों के खाते में 92 हजार करोड़ रूपये ट्रान्सफर किये गए हैं नेफेड, इफ्फको, कृभको, एफसीआई, अमूल, राज्य एवं जिला सहकारी बैंक, एपीएमसी, पैक्स जैसी लाखों संस्थाएं का बजट एवं कारोबार पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है | इन संस्थाओं का लाखो करोड़ का बुनियादी ढांचा एवं कारोबार है और इनपर किसानों का मालिकाना हक़ है | इसलिए मेरा कहना है कि किसानों को आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है जब निजी क्षेत्र की कम्पनियों आयेंगी तो इन कृषि संस्थाओं को भी प्रतिस्पर्धा के दबाब में ज्यादा पेशेवर एवं जबाबदेह बनना पड़ेगा | इससे अपने सदस्यों अर्थात किसानों को ज्यादा सुविधाएं, सेवाएँ, दाम एवं लाभांश देने के लिए बाध्य होंगी | जो किसानों के हित में है | अमेरिका एवं यूरोप में किसानों के पास विकल्प कोई नहीं था अत: वे पूरी तरह पूंजीपतियों पर आश्रित हो गए | परन्तु भारत में किसानों की अपनी लाखों संस्थाएं होने की वजह से ये संभव ही नहीं हैं |      

    तीसरा मेरा मानन है कि ये तीनों कानून एक अच्छी मंशा एवं साफ नियत के साथ लाये गए हैं और विपक्ष को भी संसद द्वारा पारित अधिनियमों पर विरोध एवं आपत्तियाँ की बजाय सुझावों को लागू करने पर जोर देना चाहिए | पिछले तीन दशकों से किसानों को घाटा देने वाली सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने का समय आ गया है मैं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जी से आग्रह करूंगा कि सन 2013 एवं सन 2019 में एपीएमसी (APMC Act) अधिनियम के जो प्रावधान कांग्रेस शासित 12 राज्यों में फलों और सब्जियों पर लागू करना चाहते थे और 2019 में अपने घोषणा पत्र में एपीएमसी (MSP) अधिनियम में बदलाव लाकर अपने घोषणा पत्र के 11 वें बिंदु को लागु करना चाहते थे जैसे कि कृषि उपज बाजार समितियों के अधिनियम को निरस्त करने, कृषि उपज में व्यापार को निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार सहित सभी प्रतिबंधों से मुक्त करना इत्यादि | आज समय आ गया है वे अपनी राज्य सरकारों से आग्रह करें कि उपरोक्त सुधारों को प्रभावी बनाने के लिए, भारत सरकार के कृषि अधिनियमों को लागू करें | वे विरोध करने की बजाय, अपने सार्थक सुझाव देकर भी इन सुधारों को किसानों के लिए लाभदायक बना सकते हैं |

    जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी (MSP) अथवा मूल्य स्थितिकरण कोष जैसी प्रणालीयों का सवाल है तो वे कभी समाप्त नहीं की जा सकती हैं क्योंकि सरकार को अपने सुरक्षित भंडारों के लिए अनाज खरीदने ही होते हैं जैसे कि भारत सरकार ने पिछले 6 साल में किसानों को फसल खरीदी के माध्यम से लगभग लाख करोड़ का भुगतान किया हैजो पहले की सरकारों के मुकाबले कई गुना अधिक है इसके साथ-साथ सरकार ने सभी भुगतानों को कैश-लैश अर्थात सीधे किसानों के खाते में देने की व्यवस्था की है जिससे काफी हद तक बिचौलियों के द्वारा होने वाले हजारों करोड़ के रिसाव को रोका जा सका है जिसको और अधिक मजबूत बनया जा रहा है ताकि किसान को भेजी जाने वाली एक-एक पाई उन तक पहुंच सके MSP एवं CAPC एक कानून के तहत ही पिछले 55 वर्षों से काम कर रही हैं देश के प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री ने संसद के अन्दर एवं बाहर दोनों जगह इनको जारी रखने का आश्वासन दिया है अत: इसपर भी किसानों को भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है |

     चौथा, जो लोग मंडियों के समाप्त होनी की बात कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वर्तमान सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में नयी मंडियां बनाकर उन्हें 7700 मंडियां तक ले जाने का काम किया है उनमें से कुछ का उन्नयन कर ई-नाम बाजार से जोड़ा है अन्य मंडियों को आधुनिक बनाने का काम चल रहा है लगभग 22 हजार छोटे हाटों का उन्नयन कर, उन्हें भी मंडी (एपीएमसी) बनाने का काम प्रारंभ किया है उसके लिए बजट में प्रावधान भी किया गया है | देश की लगभग 42000 मंडियों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, कृषि सुधारों के माध्यम से निजी क्षेत्र को जोड़ने से ही संसाधन जुटाने आवश्यक हैं | ये मंडियां एग्री-बाजार अर्थात ऑनलाइन बाजारों से भी जोड़नी होंगी | जिससे पुरे देश को एक बाजार बनाया जा सके और बाजार किसान के दरवाजे तक पहुँच जाए और उसके पास अपनी फसल को बेचने के सैंकड़ों विकल्प उपलब्ध हों | जो उसकी सौदा करने की ताकत को बढ़ाएगा | परन्तु ये सब इन कृषि सुधारों के बाद ही संभव है |

     मोदी सरकार ने 2015 से ही स्वामीनाथन कमेटी एवं अन्य कृषि विशेषज्ञों से जुडी विभिन्न सिफारिशों पर काम करना प्रारंभ कर दिया था | इसके लिए देश के लगभग 300 कृषि विशेषज्ञों से तीन दिन तक विस्तृत चर्चा भी हुई थी और एक-एक समस्या को चिन्हित कर योजना तैयार की गयी थी | जैसे कि किसानों को खेती के विभिन्न पहलुओं के बारे में शिक्षित करना,  उनकी मदद के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना, कृषि विश्वविद्यालयों को नई विज्ञान आधारित प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों की खोज को प्रोत्साहन देना, बीमा नीति का सरलीकरण कर उसे ज्यादा प्रभावी बनाना,  क्रेडिट और बेहतर नियम और शर्तों तक बेहतर पहुंच प्रदान करना, भूमि सुधारों के माध्यम से लैंडहोल्डिंग को समेकित करने का प्रयास करना, जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देना, मशीनीकरण को बढ़ावा देना, बाजारों को विनियमित करना, अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) को बढ़ावा देना, सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना, यूरिया एवं कीटनाशकों की सुविधाजनक आपूर्ति करना, उपज की शीघ्र खरीद/ वितरण करना एवं तीन दिन के अन्दर सीधा किसान के खाते में भुगतान सुनिश्चित करना, भण्डारण व्यवस्था को मजबूत बनाना, उत्पादन लागत पर 1.5 गुना एमएसपी (MSP) तय करना, 22 से ज्यादा फसलों को उसके दायरे में लाना, सिचिंत क्षेत्र को बढ़ाना इत्यादि | इसके अलावा 60 वर्ष की आयु पूरी करने वाले किसानों को न्यूनतम 3,000 रुपये/ प्रति माह पेंशन का भी प्रावधान किया गया है जिसपर स्वयं माननीय स्वामीनाथन जी एवं अन्य विशेषज्ञों ने संतोष भी जाहिर किया है इसी कड़ी में सरकार ने किसानों को कानूनी प्रतिबंधों से मुक्त करते हुए किसानों को विभिन्न करों से मुक्ति दिलाने, किसानों को डिलीवरी की रसीदेंभुगतान की देय राशि का उल्लेख करने के साथ ही उसी दिन किसानों को तुरंत देना की व्यवस्था करना, किसानों की उपज के लिए ख़ुफ़िया प्रणाली के माध्यम से मूल्य सूचना उपलब्ध कराने, देश में प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यापार और पारदर्शिता को बढ़ावा देने एवं किसानों को पारिश्रमिक मूल्य दिलाने के लिए कृषि में संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, उत्पादनवितरण और आपूर्ति की स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में काम करने के लिए कृषि सुधार अधिनियमों को लाया गया है ।

    मेरा स्पष्ट मानना है कि किसानों को डरने की आवश्यकता नहीं है | किसी भी कानून की सफलता एवं असफलता उसको लागू करने वाले तंत्र पर निर्भर करती है ये कानून भी अच्छी मंशा के साथ बनाये गए हैं और यदि उनको ईमानदारी से लागू किया गया तो इससे किसानों का मुनाफा तो बढ़ेगा ही, किसान सशक्त भी होंगे | उनके मुनाफे में वृद्धि की संभावनाएं बढ़ेंगी । बाकी भारत सरकार के पास बाजार नियमन की विभिन्न शक्तियां निहित है । जिनका इस्तेमाल वो कभी भी किसानों के हितों की रक्षा के लिए कर सकती हैं | मोदी सरकार का लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत बनाने का है और भारत सरकार ये भली-भांति जानती है कि आत्म-निर्भर किसान के बगैर आत्मनिर्भर भारत बनाना संभव नहीं है |  

अशोक ठाकुर 

निदेशक, नेफेड, भारत सरकार 


Thursday 8 October 2020

कृषि सुधार अधिनियम लाने का निर्णय, मोदी सरकार का ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि साहसिक कदम भी है |

    

  Ashok Thakur, Director, NAFED 
          हरित क्रांति के बाद देश से अन्न संकट क्या समाप्त हुआ | कृषि एवं किसान दोनों ही सरकारों के एजेंडे से बाहर हो गए | देश की अर्थव्यवस्था में भले ही कृषि की भागीदारी लगातार कम होती चली गयी हो या किसानों की आय लगातार घटती चली गयी | परन्तु किसी भी सरकार ने पिछले 55 सालों से उस व्यवस्था को बदलने का साहस नहीं किया | आज के दिन ये महत्वपूर्ण नहीं है कि ये सरकार का ये प्रयास सार्थक होगा अथवा नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आखिर किसी ने तो एक असफल व्यवस्था को बदलने का साहस किया | अर्थात ये साहस पहले की सरकारों में नहीं था, मैं इस साहसिक कदम के लिए मोदी सरकार को हार्दिक बधाई देता हूँ | 

       संसद द्वारा पारित अधिनियमों पर कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों के विरोध एवं आपत्तियाँ केवल राजनीतिक हैं। इन दलों ने पिछले पचपन सालों में सत्ता में रहते हुए किसानों के हितों के लिए कुछ भी नहीं किया | प्रारंभ से ही कांग्रेस ने कानून के नाम पर देश के किसानों को धोखा दिया है । हरित क्रांति के बाद समय-समय पर कृषि सुधार नहीं किये गए जो अत्यंत आवश्यक थे | परिणाम सवरूप किसानों की आय एवं जीडीपी में कृषि की भागीदारी लगातर गिरती चली गयी | खेती की लागत लगातार बढती चली गयी | आज जब मोदी सरकार कृषि आय को दुगना करने के लिए सुधार कर रही है तो विपक्ष शोर मचा रहा है और किसानों को गुमराह कर रहा है |

        सबसे बड़ी तो बात ये है कि 2013 में स्वयं राहुल गांधी ने खुद कहा कि कांग्रेस पार्टी द्वारा शासित 12 राज्य एपीएमसी अधिनियम से फलों और सब्जियों को बाहर कर देंगे और अब वे खुद ही एपीएमसी अधिनियम में बदलाव का विरोध कर रही है | चुनावों के समय, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि वह एपीएमसी (MSP) अधिनियम को बदल देगी, किसानों के व्यापार पर कोई कर नहीं लगेगा और अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। सन 2019 के चुनाव घोषणापत्र में, कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से कृषि पर वादों के 11 वें बिंदुमें स्पष्ट रूप से कहा है कि कांग्रेस कृषि उपज बाजार समितियों के अधिनियम को निरस्त करेगी और कृषि उपज में व्यापार को निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार सहित सभी प्रतिबंधों से मुक्त करेगी ।अबयदि कांग्रेस इन अधिनियमों का विरोध कर रही हैतो उन्हें देश को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने घोषणा पत्र में किसानों से झूठ बोला था | अत: कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में जिन कृषि सुधारों के बारे में बात की है, अब राजनैतिक स्वार्थों के चलते अगर उन्हीं कृषि सुधारों का विरोध कर रही है जो अनैतिक है | कांग्रेस को मोदी सरकार के किसानों को सशक्त बनाने के कदमों और किसानों को गुमराह करने से बाज आना चाहिए |

    किसानों में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि कृषि सुधार अधिनियमों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी (MSP) प्रणाली को समाप्त करने की योजना है । जबकि MSP पर स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के समय का बनाया गया कानून जो आज भी यथावत है और उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है उल्टा मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में MSP व्यवस्था को मजबूत बनाने का काम किया है और उसे ज्यादा प्रभावी तरीके से लागू किया है यही नहीं 2009-14 के बीच MSP पर, कांग्रेस सरकार के समय में मात्र 1.25 लाख मीट्रिक टन दालों की खरीद की गई थी । जबकि मोदी सरकार ने 2014 से 2019 के बीच 76.85 लाख मीट्रिक टन दालों की खरीद की है । यह 4,962% की वृद्धि है धान और गेहूं की खरीदी भी कांग्रेस शासन के मुकाबले दुगुनी की है यदि MSP पर किसनों को भुगतान की बात करें तोमोदी सरकार ने पिछले साल में किसानों को लाख करोड़ का भुगतान किया हैजो कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है और वह भी सीधा किसानों के खाते में किया गया है जिसके कारण आढ़तियों के शोषण से भी उसको काफी हद तक मुक्ति मिली है |

    इसके अलावा मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि की गई है। यूपीए शासन (2013-14) के दौरानजहां मसूर की एमएसपी 2,950 रुपये थी, अब यह बढ़कर 5,100 रुपये हो गई है। इसी तरह, उड़द का एमएसपी 4,300 रुपये से बढ़कर 6,000 रुपये हो गया है। इसी तरह मूंग, अरहर, चना और सरसों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी भारी वृद्धि की गई है । स्वयं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बार-बार दोहराया है कि एमएसपी की प्रणाली जारी रहेगीऔर कोई बदलाव नहीं किया जाएगा । 

    वास्तव में, इन अधिनियमों का MSP और APMC प्रणाली से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है | पहला तो, MSP पर पहले से ही कानून है और न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए आयोग भी बना है अत: नया कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है दूसरा, आज देश में 70 साल के बाद लगातार प्रयास करने के बाबजूद लगभग 7700 मंडियां का ही निर्माण हो पाया है जबकि एक अनुमान के अनुसार देश में आज 42000 मंडियों की आवश्यकता है इसका मतलब लगभग 35000 नयी मंडियों बनाने के जरूरत है जो इन कृषि सुधारों के बाद निजी क्षेत्र के सहयोग से बनना ही संभव हो सकता है | जिसके सरकार ने 1 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत कोष की भी घोषणा की है अत: आज देश में मंडियां समाप्त करने के लिए नहीं बल्कि नयी एवं आधुनिक मंडियां बनाने के लिए अधिनियम लाया गया है इस अधिनियम के आने के बाद किसानों की मंडियों का न केवल विस्तार होगा बल्कि किसानों को मंडी कर में लगभग 6 प्रतिशत का लाभ मिलेगा | 

     विपक्ष के किसी भी सदस्य ने संसद में चर्चा के दौरान अधिनियमों के किसी भी प्रावधान का विरोध नहीं किया |  इन कृषि सुधारों के तहत, किसान अब अपनी उपज को बाजार के बाहर बेच सकेंगे और वह भी मंडी कर में छुट के साथ अपनी कीमत पर बेचेगा । अब किसानों को मंडियों से बाहर फसल बेचने पर कोई कर नहीं देना होगा | 

        आज तक कांग्रेस ने किसानों को सशक्त बनाने के लिए कुछ नहीं किया। केवल एक बार, अपने 55 साल के शासन में, कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ किया और उसमें भी एक बड़ा घोटाला हुआ। मीडिया रिपोर्ट बताती है कि किसानों को भी इससे कोई फायदा नहीं हुआ। जबकि मोदी सरकार में प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि के तहत, किसानों को अब तक 92,000 करोड़ रुपये से अधिक दिए गए हैं ।2009-10 में UPA के दौरान, कृषि बजट मात्र रुपये 12,000 करोड़ था | जिसे बढ़ाकर माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा रूपये 1.34 लाख करोड़ कर दिया है |  मोदी सरकार द्वारा 10,000 नई एफपीओ बनाने पर 6,850 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं |  कृषि क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत 1 लाख करोड़ खर्च करने की घोषणा की है |  किसानों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए पिछली सरकार के रूपये 8 लाख करोड़ के मुकाबले मोदी सरकार ने 15 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है | मोदी सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू कर उत्पादन लागत पर एमएसपी (MSP) को 1.5 गुना तक बढ़ा दिया है जो अब 22 से ज्यादा फसलों पर लागू है | इसके साथ ही प्रधान मंत्री किसान मान-धन के तहत, 60 वर्ष की आयु पूरी करने बाले किसानों को न्यूनतम 3,000 रुपये / माह पेंशन का प्रावधान किया गया है ।

उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम का उदेश्य:- 

किसानों को कानूनी प्रतिबंधों से मुक्त किया जाएगा । किसानों को अब मंडियों में लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों को अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा । सरकारी मंडियों के कर से भी किसानों को मुक्ति मिलेगी |

किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा । उन्हें अन्य स्थानों पर उपज बेचने के विकल्प प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया गया है | अबकिसान लाभकारी कीमतों पर बेचने के अन्य विकल्पों का भी लाभ उठा सकेंगे |

किसानों को भुगतान सुनिश्चित करने के लिए, एक प्रावधान है कि डिलीवरी की रसीदें, भुगतान की देय राशि का उल्लेख करने के साथ ही उसी दिन किसानों को तुरंत दी जानी होगी 

केंद्र सरकार, किसी भी केंद्रीय संगठन के माध्यम से, किसानों की उपज के लिए मूल्य सूचना और बाजार खुफिया प्रणाली की एक प्रणाली बना सकती है ।

देश में प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यापार होगा और पूरी पारदर्शिता के साथ काम किया जाएगा |

अंतत: इसका उद्देश्य किसानों को पारिश्रमिक मूल्य मिलना है ताकि उनकी आय में सुधार हो सके |

 मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम  का उदेश्य:-

अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) के लिए सहयोग करना |

उच्च और आधुनिक तकनीकी इनपुट उपलब्ध कराने के लिए अन्य स्थानीय एजेंसियों के साथ साझेदारी विकसित करने में मदद करना |

अनुबंधित किसानों को सभी प्रकार के कृषि उपकरणों की सुविधाजनक आपूर्ति करना |

क्रेडिट या नकदी पर गुणवत्ता वाले कृषि उपकरणों की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करना |

प्रत्येक अनुबंधित किसान से उपज की शीघ्र खरीद/ वितरण सुनिश्चित करना |

अनुबंधित किसान को नियमित और समय पर भुगतान सुनिश्चित करना |

सही लॉजिस्टिक सिस्टम बनाए रखना और वैश्विक विपणन मानकों को सुनिश्चित करना |

 आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020:-  

इस अधिनियम के माध्यम से, कृषि में संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किया जाएगा, किसानों को भी सशक्त बनाया जाएगा, और निवेश को प्रोत्साहित किया जाएगा। यह उत्पाद, उत्पाद रेंज, आंदोलन, वितरण और आपूर्ति की स्वतंत्रता प्रदान करेगा और कृषि बिक्री अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद करेगा।

    मेरा स्पष्ट मानना है कि उपरोक्त कृषि सुधार अधिनियमों को अगर ईमानदारीपूर्वक लागू किया जाता है तो इससे किसानों का मुनाफा तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ किसान सशक्त भी होंगे | उनको अपनी उपज बेचने के लिए नए अवसर मिलेंगेजिससे उनके मुनाफे में वृद्धि की संभावनाएं बढ़ेंगी । इन कानूनों के आने से कृषि क्षेत्र को आधुनिक तकनीक का लाभ मिलेगा । न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं मूल्य स्थितिकरण कोष से सरकारी खरीद यथावत जारी रहने से बाजार नियमन की शक्तियां सरकारों में निहित रहेगी । ये अधिनियम किसानों को उनकी फसलों के भंडारण और बिक्री के लिए तो स्वतंत्रता देंगे ही बल्कि उन्हें बिचौलियों के चंगुल से भी बचायेंगे ।  


अशोक ठाकुर 
निदेशक, नेफेड, भारत सरकार