Ashok Thakur

Thursday 29 October 2020

नए कृषि कानूनों से देश के किसानों को डरने की कोई आवश्यकता नहीं - Ashok Thakur

Ashok Thakur



देश के कुछ क्षेत्रों में किसानों का आन्दोलन जारी है और अब दिल्ली में आयोजित विभिन्न किसान संगठनों की बैठक में मिलकर कृषि सुधार अधिनियमों का विरोध करने का निर्णय लिया है | इन सभी संगठनों का कहना है कि वर्तमान कृषि सुधार अमेरिका एवं यूरोप का एक असफल (FAIL) मॉडल है और सरकार कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों के हाथों सौंपने के लिए ऐसा कर रही है, वे इन कृषि सुधारों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एवं मंडियों को समाप्त करने की साजिस करार दे रहे हैं जिसके कारण किसानों का एक वर्ग, विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान, आशंकित एवं भ्रमित हैं अब सवाल उठता है कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है और इन किसान संगठनों का आन्दोलन कितना किसानों के हित में है और कितना उनके हितों के खिलाफ है |

यदि हम प्रथम दृष्टया देखें तो, सरकार पर ये आरोप तर्कहीन दिखाई पड़ते हैं क्योंकि भारत और पश्चिम की तुलना करना ठीक नहीं है भारत और पश्चिम का वातावरण एवं परिस्थितियाँ पूर्णत: भिन्न है इसलिए तुलना करने से पहले अनेक पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना अत्यंत आवश्यक है | कुछ समय पहले मुर्गीपालक किसानों के पिंजरों पर प्रतिबन्ध लगाने के मामले में देखने को मिला था | उस समय यूरोप की तर्ज पर मुर्गियों के पिंजरों पर प्रतिबंध लगाकर, उन्होंने खुले में रखने का दबाब बनाया गया था | एक बार तो पशु हिंसा के नाम पर सरकार एवं न्यायालय का एक बड़ा वर्ग उनके इस तर्क से सहमत भी दिखाई दे रहा था | परन्तु जब इसपर वैज्ञानिक अध्ययन किया गया तो पता चला कि यूरोप में वर्ष भर तापमान 20 डिग्री से नीचे रहता है और वहां मुर्गियां को खुले में रखने में कोई समस्या नहीं है परन्तु इसके ठीक विपरीत, भारत में भीषण गर्मी पड़ती है और तापमान 40 से 50 डिग्री तक चला जाता है उस तापमान में मुर्गियों का खुले में रखना संभव ही नहीं है और उन्हें तो वाताकुलुनित एवं स्वच्छ कमरों में रखने की आवश्यकता है इसलिए भारत की परिस्थितियों में मुर्गियों को पिंजरों में रखना जरूरी है | गहराई से अध्ययन करने पर पता चला कि भारत की कुछ सामाजिक संस्थाओं ने यूरोप के मुर्गीपालकों से चंदा लेकर भारत के मुर्गीपालक किसानों के हितों के साथ समझौता करने का काम किया | यूरोपीय व्यापारिक संघ एवं सरकारें, भारत में मुर्गीपालन में लगने वाली कम लागत के चलते, भारत के बढते निर्यात से दबाब में थीं | लेकिन पोल्ट्री फेडरेशन आफ इंडिया एवं सरकार की सक्रियता से समस्या का समाधान हो गया अन्यथा भारत के मुर्गीपालक किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था |  

आज एक बार फिर, उसी तर्ज पर अमेरिका एवं यूरोप के मॉडल का हवाला देकर कृषि सुधारों को रोकने की वकालत हो रही है जबकि अमेरिका एवं यूरोप में एक-एक फार्म कई सौ एकड़ जमीन में फैले हैं और भारत में अधिकतर किसानों के पास 01 अथवा 02 एकड़ से भी कम जमीन उपलब्ध है दोनों की परिस्थितियों की तुलना संभव ही नहीं है और न ही वहां की नीतियों को यहाँ की परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है | भारत में छोटे किसानों को लागत कम करने के लिए सामूहिक खेती करने की आवश्यकता है और इन सब बातों को ध्यान में रखकर, सरकार ने पहले से ही किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना प्रारंभ कर दिया था पहले से उपस्थित सहकारी संस्थाओं एवं 8 हजार से ज्यादा किसान उत्पादक संघों के अलावा सरकार 10 हजार नए किसान उत्पादक संघ बनाने का काम कर रही जिसके लिए नेफेड, एनसीडीसी एवं एसएफएसी को अधिकृत किया गया है लगभग रूपये 6,850 करोड़ का प्रावधान भी किया गया है इसके अलावा सरकार ने कृषि उत्पादक संघ बनाने के साथ-साथ नए कृषि सुधार अधिनियमों के प्रकाश में किसानों के प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी प्रारंभ कर दिए हैं | इसके अलावा नेफेड ने प्रारंभिक चरण में 100 आधुनिक मंडियां बनाने का काम प्रारंभ कर दिया है महाराष्ट्र में कृषि उत्पादक संगठन एवं नेफेड की साझेदारी में किसानों की पहली आधुनिक कृषि मंडी का शुभारंभ, माननीय मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे जी के हाथों से हो चुका है, अन्य मंडियों का काम युद्ध स्तर पर जारी है | इसके अलावा उपलब्ध मंडियों के आधुनिकीकरण का काम भी चल रहा है सरकार ने इन संगठनों एवं कृषि सहकारी संस्थाओं के माध्यम से 100 प्रतिशत छोटे एवं मझोले किसानों को जोड़ने, प्रशिक्षित करने एवं व्यापारिक बुनियादी ढांचा विकसित करने का लक्ष्य रखा है | ताकि वे निजी क्षेत्र की संस्थाओं से प्रतिस्पर्धा कर सकें |    

दूसरा कुछ राजनैतिक एवं किसान नेताओं का ये कहना कि इस व्यवस्था से देश का पूरा कृषि क्षेत्र चंद पूंजीपतियों के हाथों में चला जाएगा | तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ और न ही भारत में ऐसा संभव है | कुछ ऐसे ही सवाल स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के कृषि सुधारों के समय, 60 के दशक में भी उठाये गए थे | परन्तु सभी शंकाओं से परे, इसके परिणाम सुखद थे और हरित क्रन्ति एवं श्वेत क्रांति के बाद, अन्न एवं दुग्ध उत्पादन में न केवल देश आत्मनिर्भर बना बल्कि किसानों के जीवन में खुशहाली भी लाया | भारत में आज अधिकतर लोगों को ये जानकारी नहीं होगी कि हरित क्रांति एवं दुग्ध क्रांति में सरकारों से ज्यादा कृषि सहकारी संस्थाओं का योगदान था | नेफेड, इफ्फको, अमूल एवं राज्य सहकारी बैंकों ने हरित एवं श्वेत क्रांति लाने में बड़ी महती भूमिका निभाई थी भारत सरकार ने पिछले 6 सालों में, इन संस्थाओं की मजबूती के लिए काम किया है ताकि वे पहले से ज्यादा मजबूत एवं पेशेवर बन सकें | इसी का परिणाम है कि नेफेड, इफ्फको, कृभको एवं अमूल जैसी संस्थाओं को निजी क्षेत्र चाहकर भी चुनौती नहीं दे पाया है इन सुधारों के बाद कृषि में निजी क्षेत्र की भूमिका अवश्य बढ़ेगी और निजी क्षेत्र का भारी निवेश भी आयेगा | लेकिन पहले से काम कर रही किसानों की संस्थाओं एवं सरकार की सामानांतर निवेश योजना से संतुलन बना रहेगा | इसके लिए भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र के आधारभूत ढांचा विकास के लिए 01 लाख करोड़ का कोष स्थापित किया है ग्रामीण विकास के लिए भी भारी बजट का प्रावधान किया है कृषि बजट को 12 हजार करोड़ से बढाकर 1.34 करोड़ रूपये कर दिया है किसान सम्मान निधि के माध्यम से सीधा किसानों के खाते में 92 हजार करोड़ रूपये ट्रान्सफर किये गए हैं नेफेड, इफ्फको, कृभको, एफसीआई, अमूल, राज्य एवं जिला सहकारी बैंक, एपीएमसी, पैक्स जैसी लाखों संस्थाएं का बजट एवं कारोबार पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गया है | इन संस्थाओं का लाखो करोड़ का बुनियादी ढांचा एवं कारोबार है और इनपर किसानों का मालिकाना हक़ है | इसलिए मेरा कहना है कि किसानों को आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है जब निजी क्षेत्र की कम्पनियों आयेंगी तो इन कृषि संस्थाओं को भी प्रतिस्पर्धा के दबाब में ज्यादा पेशेवर एवं जबाबदेह बनना पड़ेगा | इससे अपने सदस्यों अर्थात किसानों को ज्यादा सुविधाएं, सेवाएँ, दाम एवं लाभांश देने के लिए बाध्य होंगी | जो किसानों के हित में है | अमेरिका एवं यूरोप में किसानों के पास विकल्प कोई नहीं था अत: वे पूरी तरह पूंजीपतियों पर आश्रित हो गए | परन्तु भारत में किसानों की अपनी लाखों संस्थाएं होने की वजह से ये संभव ही नहीं हैं |      

    तीसरा मेरा मानन है कि ये तीनों कानून एक अच्छी मंशा एवं साफ नियत के साथ लाये गए हैं और विपक्ष को भी संसद द्वारा पारित अधिनियमों पर विरोध एवं आपत्तियाँ की बजाय सुझावों को लागू करने पर जोर देना चाहिए | पिछले तीन दशकों से किसानों को घाटा देने वाली सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने का समय आ गया है मैं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जी से आग्रह करूंगा कि सन 2013 एवं सन 2019 में एपीएमसी (APMC Act) अधिनियम के जो प्रावधान कांग्रेस शासित 12 राज्यों में फलों और सब्जियों पर लागू करना चाहते थे और 2019 में अपने घोषणा पत्र में एपीएमसी (MSP) अधिनियम में बदलाव लाकर अपने घोषणा पत्र के 11 वें बिंदु को लागु करना चाहते थे जैसे कि कृषि उपज बाजार समितियों के अधिनियम को निरस्त करने, कृषि उपज में व्यापार को निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार सहित सभी प्रतिबंधों से मुक्त करना इत्यादि | आज समय आ गया है वे अपनी राज्य सरकारों से आग्रह करें कि उपरोक्त सुधारों को प्रभावी बनाने के लिए, भारत सरकार के कृषि अधिनियमों को लागू करें | वे विरोध करने की बजाय, अपने सार्थक सुझाव देकर भी इन सुधारों को किसानों के लिए लाभदायक बना सकते हैं |

    जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी (MSP) अथवा मूल्य स्थितिकरण कोष जैसी प्रणालीयों का सवाल है तो वे कभी समाप्त नहीं की जा सकती हैं क्योंकि सरकार को अपने सुरक्षित भंडारों के लिए अनाज खरीदने ही होते हैं जैसे कि भारत सरकार ने पिछले 6 साल में किसानों को फसल खरीदी के माध्यम से लगभग लाख करोड़ का भुगतान किया हैजो पहले की सरकारों के मुकाबले कई गुना अधिक है इसके साथ-साथ सरकार ने सभी भुगतानों को कैश-लैश अर्थात सीधे किसानों के खाते में देने की व्यवस्था की है जिससे काफी हद तक बिचौलियों के द्वारा होने वाले हजारों करोड़ के रिसाव को रोका जा सका है जिसको और अधिक मजबूत बनया जा रहा है ताकि किसान को भेजी जाने वाली एक-एक पाई उन तक पहुंच सके MSP एवं CAPC एक कानून के तहत ही पिछले 55 वर्षों से काम कर रही हैं देश के प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री ने संसद के अन्दर एवं बाहर दोनों जगह इनको जारी रखने का आश्वासन दिया है अत: इसपर भी किसानों को भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है |

     चौथा, जो लोग मंडियों के समाप्त होनी की बात कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वर्तमान सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में नयी मंडियां बनाकर उन्हें 7700 मंडियां तक ले जाने का काम किया है उनमें से कुछ का उन्नयन कर ई-नाम बाजार से जोड़ा है अन्य मंडियों को आधुनिक बनाने का काम चल रहा है लगभग 22 हजार छोटे हाटों का उन्नयन कर, उन्हें भी मंडी (एपीएमसी) बनाने का काम प्रारंभ किया है उसके लिए बजट में प्रावधान भी किया गया है | देश की लगभग 42000 मंडियों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, कृषि सुधारों के माध्यम से निजी क्षेत्र को जोड़ने से ही संसाधन जुटाने आवश्यक हैं | ये मंडियां एग्री-बाजार अर्थात ऑनलाइन बाजारों से भी जोड़नी होंगी | जिससे पुरे देश को एक बाजार बनाया जा सके और बाजार किसान के दरवाजे तक पहुँच जाए और उसके पास अपनी फसल को बेचने के सैंकड़ों विकल्प उपलब्ध हों | जो उसकी सौदा करने की ताकत को बढ़ाएगा | परन्तु ये सब इन कृषि सुधारों के बाद ही संभव है |

     मोदी सरकार ने 2015 से ही स्वामीनाथन कमेटी एवं अन्य कृषि विशेषज्ञों से जुडी विभिन्न सिफारिशों पर काम करना प्रारंभ कर दिया था | इसके लिए देश के लगभग 300 कृषि विशेषज्ञों से तीन दिन तक विस्तृत चर्चा भी हुई थी और एक-एक समस्या को चिन्हित कर योजना तैयार की गयी थी | जैसे कि किसानों को खेती के विभिन्न पहलुओं के बारे में शिक्षित करना,  उनकी मदद के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना, कृषि विश्वविद्यालयों को नई विज्ञान आधारित प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों की खोज को प्रोत्साहन देना, बीमा नीति का सरलीकरण कर उसे ज्यादा प्रभावी बनाना,  क्रेडिट और बेहतर नियम और शर्तों तक बेहतर पहुंच प्रदान करना, भूमि सुधारों के माध्यम से लैंडहोल्डिंग को समेकित करने का प्रयास करना, जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देना, मशीनीकरण को बढ़ावा देना, बाजारों को विनियमित करना, अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) को बढ़ावा देना, सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना, यूरिया एवं कीटनाशकों की सुविधाजनक आपूर्ति करना, उपज की शीघ्र खरीद/ वितरण करना एवं तीन दिन के अन्दर सीधा किसान के खाते में भुगतान सुनिश्चित करना, भण्डारण व्यवस्था को मजबूत बनाना, उत्पादन लागत पर 1.5 गुना एमएसपी (MSP) तय करना, 22 से ज्यादा फसलों को उसके दायरे में लाना, सिचिंत क्षेत्र को बढ़ाना इत्यादि | इसके अलावा 60 वर्ष की आयु पूरी करने वाले किसानों को न्यूनतम 3,000 रुपये/ प्रति माह पेंशन का भी प्रावधान किया गया है जिसपर स्वयं माननीय स्वामीनाथन जी एवं अन्य विशेषज्ञों ने संतोष भी जाहिर किया है इसी कड़ी में सरकार ने किसानों को कानूनी प्रतिबंधों से मुक्त करते हुए किसानों को विभिन्न करों से मुक्ति दिलाने, किसानों को डिलीवरी की रसीदेंभुगतान की देय राशि का उल्लेख करने के साथ ही उसी दिन किसानों को तुरंत देना की व्यवस्था करना, किसानों की उपज के लिए ख़ुफ़िया प्रणाली के माध्यम से मूल्य सूचना उपलब्ध कराने, देश में प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यापार और पारदर्शिता को बढ़ावा देने एवं किसानों को पारिश्रमिक मूल्य दिलाने के लिए कृषि में संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, उत्पादनवितरण और आपूर्ति की स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में काम करने के लिए कृषि सुधार अधिनियमों को लाया गया है ।

    मेरा स्पष्ट मानना है कि किसानों को डरने की आवश्यकता नहीं है | किसी भी कानून की सफलता एवं असफलता उसको लागू करने वाले तंत्र पर निर्भर करती है ये कानून भी अच्छी मंशा के साथ बनाये गए हैं और यदि उनको ईमानदारी से लागू किया गया तो इससे किसानों का मुनाफा तो बढ़ेगा ही, किसान सशक्त भी होंगे | उनके मुनाफे में वृद्धि की संभावनाएं बढ़ेंगी । बाकी भारत सरकार के पास बाजार नियमन की विभिन्न शक्तियां निहित है । जिनका इस्तेमाल वो कभी भी किसानों के हितों की रक्षा के लिए कर सकती हैं | मोदी सरकार का लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत बनाने का है और भारत सरकार ये भली-भांति जानती है कि आत्म-निर्भर किसान के बगैर आत्मनिर्भर भारत बनाना संभव नहीं है |  

अशोक ठाकुर 

निदेशक, नेफेड, भारत सरकार 


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