Ashok Thakur

Saturday 25 April 2020

उद्धव ठाकरे क्यों छुपाना चाहते हैं साधुओं की निर्मम हत्या का सच

    
 Ashok Thakur, BJP
     सोशल मीडिया में अचानक एक साधू का चित्र आता है बुरी तरह घायल, खून से लथपथ और घायल है  ।लेकिन इसके बावजूद अबोध बालक से भोले-भाले चेहरे पर मुस्कुराहट है और जगह-जगह से सिर फटने के बाद भी चेहरे पर न पीड़ा, न शिकन और न ही शिकायत दिखाई दे रही है ऐसा मालुम पड़ता है जैसे हमला करने बालों के प्रति कोई शिकवा नहीं है | अपने खून के प्यासी इस भीड़ को वो अज्ञानी और अबोध मानकर न केवल मुस्करा रहा रहा है बल्कि ऐसा प्रतीत होता है मानो वो अब भी उनको माफ़ कर देना चाहता हो । मौत का भय जरा भी विचलित नहीं कर रहा है शायद वो कहना चाहता हो की शरीर नश्वर है आत्मा अजर अमर और अजन्मा है जो जन्म और मरण से परे है इसलिए मौत का डर कैसा | दूसरी तरफ़ बहसी दरिंदों की एक भीड़ है जिसमें मानवता और इंसानियत का नामोनिशान तक दिखाई नहीं दे रहा है । मैं सोच रहा हूँ क्या इस भीड़ में एक भी ऐसा इंसान नहीं था जिसमें मानवता नाम की कोई चीज हो और जो इस साधू के चेहरे की मासूमियत, निश्चलता और सरलता को पहचान सकता हो | शायद नहीं | जो थे भी वे सभी वहसी दरिन्दे थे जिनके अन्दर का इन्सानियत मर चुकी थी | जिस भगवे को ये देश हजारों-लाखों बर्षों से पूजता और सहेजता आया है जो शौर्य, शांति और ज्ञानरूपी प्रकाश का प्रतीक हो । जिसकी  प्रेरणा से हमारे लाखों शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण दे दिए हों | उसी भगवे के अन्दर लिपटा एक महामानव इन राक्षसों को नहीं दिखाई दिया और उन्होंने उसकी निर्ममता से हत्या कर दी | ये अमानवीयता और दरिंदगी की प्रकाष्ठा है |           

     आप सोच रहे होंगे कि मैं किस घटना की बात कर रहा हूँ ये महाराष्ट्र के एक जिले पालघर की घटना है|जिसको बीते आज 10 दिन होने बाले हैं लेकिन हत्या के पीछे के कारण सच्चाई से कोषों दूर है जैसा कि हम जानते हैं कि 16 अप्रैल की रात श्री वृक्षागिरी जी महाराज एवं श्री सुशीलगिरी जी महाराज एवं उनके ड्राईवर की उन्मादी भीड़ ने निर्मम हत्या कर दी है | इसी में से एक साधू के चित्र का मैंने जिक्र किया है | इस घटना की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है | इस घटना ने महाराष्ट्र सरकार, पालघर प्रशासन, स्थानीय पुलिस, स्थानीय राजनैतिक एवं सामाजिक नेतृत्व पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं ये घटना किसी भी सभ्य समाज और लोकतान्त्रिक व्यवस्था को झकझोर देने बाली है | आखिर कैसे एक भीड़ पुलिस की उपस्थिति में वेखौफ़ होकर कानून को अपने हाथ में लेकर तीनों की निर्मम हत्या कर देती  हैं | कई सवाल हैं कि क्या अब मुख्य मार्ग पर चलना भी अपराध हो गया है | क्या अब सड़क पर निकलने से पहले लोगों को अनेक बार सोचना पड़ेगा | क्या भगवा जो भारत के शौर्य, शांति, ज्ञान और गौरव का परिचायक है क्या इस देश में उसको पहनना अपराध हो गया है | क्या कोई भी बिना किसी छानवीन और पूछताछ के किसी को भी चोर या अपराधी कहकर मार देगा | क्या पुलिस की वर्दी का डर समाप्त हो गया है या वो भी भीड़ का हिस्सा बन गयी है। ऐसे ही अनेक सवाल हैं जिन्होंने हमें झकझोर कर रख दिया है | महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने घटना को जितना सरल बताने का प्रयास किया है क्या वास्तव में ऐसा ही है या कुछ और है ।  

     अगर हम लोगों की ही बात माने तो अनेक दिनों से उस क्षेत्र में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की अफवाह फ़ैली हुई थी | ऐसी भी संभावना है कि क्षेत्र में इस तरह की घटना हुई होगी जिससे अफवाह फ़ैल गई | अगर इस तरह की घटना क्षेत्र में घटित हुई थी तो स्थानीय प्रशासन को त्वरित एवं संतोषजनक कारवाई नहीं की होगी | जिसकी बजह से स्थानीय लोगों में रोष उत्पन्न हुआ होगा और पुलिस एवं प्रशासन से विश्वास कम हुआ होगा | जिसकी बजह से उन्होंने अपने बच्चों एवं परिवारों की सुरक्षा के लिए कानून को अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया जो बिलकुल जायज नहीं था | दूसरा ये भी हो सकता है कि बच्चा चोर गिरोह के साथ स्थानीय पुलिस की मिलीभगत की बात सामने आई हो या क्षेत्र के लोगों द्वारा पकडे गए किसी अपराधी को पुलिस ने छोड़ दिया हो | जिसके कारण उन्होंने पुलिस पर विश्वास नहीं किया और उसकी उपस्थिति में ही साधुओं पर हमला कर दिया | इसके अलावा मुझे और कोई कारण नजर नहीं आता है |      

     अगर पुलिस की अनुपस्थिति में क्षेत्र में स्थनीय सरपंच चित्रा चौधरी तीन घंटे तक हमलावारों को रोक सकती है तो विभिन्न पार्टियों के उपस्थित नेताओं ने एकत्रित आकर उसका साथ क्यों नहीं दिया | उन्होंने लोगों को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया | ज़िला परिषद का सदस्य जो मौक़े पर उपस्थित था वो मौन क्यों था । क्या इसलिए की वो  और उसके साथी नेता भगवा रंग से नफरत करते थे | दूसरा जिस भी स्थानीय निवासी या अधिकारी ने साधुओं की गाड़ी को रोका होगा तो उनका परिचय जरुर माँगा होगा | उन्होंने अपना परिचय भी जरुर दिया होगा तो फिर साधू भेष में होने के बाबजूद भीड़ को उकसाने का क्या कारण है | अगर चित्रा चौधरी साधुओं को पहचानकर बचाने की कोशिश कर सकती है अगर अकेली तीन घंटे तक लोगों को कानून अपने हाथों में लेने से रोक सकती हैं तो सवाल ये भी उठता है तो पुलिस उस भीड़ को रोकने में कैसे नाकाम हो गयी | जब बिल्डिंग के अंदर घायल साधु से पुलिस की बातचीत हो गयी और उन्होंने पुलिसकर्मीयों को अपने बारे में बता दिया और से बात ये तो सर्व सत्य है कि साधुओं को सैंकड़ों की भीड़ ने घेर रखा था | भीड़ में कुछ लोग हथियारों, लाठी-डंडों और पथ्थर भी लिए हुए थे | इसकी जानकारी पुलिस को सुचना के दौरान मिल ही गयी होगी | फिर भी पुलिस न केवल देर से पहुंची बल्कि बिना किसी तैयारी के आई |  इसके अलावा हत्या में पुलिस पर मिलीभगत का भी आरोप लग रहा है जैसा कि वीडियो में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि एक पुलिसवाला पूरी बात जानने के बावजूद साधू को बिल्डिंग से बाहर लेकर आता है जहां  उसकी जान को खतरा है और सब जानते हुए भी वह पुलिसवाला उसको मारने के लिए भीड़ के हवाले कर देता है |  फिर उसकी हत्या हो जाती है | वैसे तो ये पूरा मामला ही रफा-दफा हो गया होता और किसी को कानों-खबर नहीं होती | तीन दिन तक ऐसा हुआ भी और पुलिस पर कोई सवाल नहीं उठाया गया | लेकिन मुझे लगता है कि मामले को रफा-दफा करने और असली मुजरिमों को बचाने के लिए पुलिस ने कुछ निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया होगा जिससे व्यथित होकर किसी भाई ने वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा कर दिया | जिससे घटना की सच्चाई का पुरे देश को पता चला और पुलिस की संदिग्ध भूमिका भी सामने आ गयी | चौतरफा दबाब के बाद महाराष्ट्र सरकार हरकत मे आयी और उसने आनन-फानन में लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसमें अनेक निर्दोष भी शामिल  हैं और दो पुलिस बालों को सस्पैंड किया है लेकिन अभी तक उसने इस हत्या की सीबीआई जाँच कराने पर विचार नहीं किया और न ही करेंगे क्योंकि उनको यह पता है कि अगर इस घटना की जाँच सीबीआई या किसी निष्पक्ष संस्था के हाथ में चली गयी तो एक-एक करके इसकी घटना की सारी परतें खुल जायेंगी और शिव सेना को अपनी सरकार और चेहरा दोनों बचाना असंभव हो जाएगा | क्योंकि ये इतना संवेदनशील मामला है कि इस घटना की बजह से उसके अपने विधायक भी वगावत कर सकते हैं | इसलिए महारष्ट्र सरकार जाँच अपने हाथ में रखना चाहती है और सच्चाई को दबाना चाहती है |     

     इन सबसे परे कुछ परेशान कर देने बाले सवाल हैं कि आखिर हम किस युग में जी रहे हैं जिसमें लोगों को न कानून का डर है न पुलिस का खौफ है और न ही मानवीयता है | ऐसा लगता है कि पालघर में जंगल कानून चलता है आखिर कैसे लोग सड़क चलते साधुओं को ड्राईवर समेत मार सकते हैं जबकि वो किसी भी दृष्टिकोण से चोर दिखाई नहीं देते हैं |     

     इस पुरे घटनाक्रम में ऐसा प्रतीत होता है कि भीड़ में कुछ लोगों को साधू भेष से नफरत थी और उनका एकमात्र लक्ष्य साधुओं को मार डालना था | इस घटना ने कंधमाल में नक्सल-धर्मांतरण माफिया द्वारा स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती हत्याकांड को याद दिला दिया है आज एक बार फिर हिंदू विरोधी समूह ने भीड़ को साधुओं की हत्या के पहले बरगलाया और फिर उकसाया | सम्भवतः पुलिसकर्मीयों से भी गठजोड़ बनाया । महाराष्ट्र सरकार का यह कहना कि अभी तक गिरफ्तार लोगों में एक भी मुस्लिम नहीं है ये जाँच को भ्रमित करने की कोशिश है और महाराष्ट्र के गृहमंत्री एवं एक पार्टी का प्रवक्ता का स्थानीय सरपंच का बार-बार नाम लेना सरकार की मंशा पर संदेह पैदा करता है विशेषकर उस सरपंच का जो न केवल साधुओं को भीड़ से बचाने का प्रयास कर रही थी बल्कि तीन घंटे तक संघर्ष किया । उसका क़सूर इतना नाता भाजपा से है | ये घटिया राजनीति है इसकी जितना निंदा की जाये उतनी कम है | कुछ लोग तो उस रात उसकी हत्या भी करना चाहते थे जैसा कि उसने आरोप लगाया है | जिससे साफ जाहिर होता है कि भीड़ में कुछ लोग तो अवश्य थे जो साधुओं को हर हाल में मारना चाहते थे | इसीलिए उन्होंने  को भी निशाना बनाया था |     

     वैसे तो सब जाँच का विषय है लेकिन प्रथम दृष्टया चश्मदीद गवाहों के बयान से स्पष्ट हो गया है कि कुछ ग्रामवासियों को साधुओं के आने की अग्रिम सूचना थी । यह क्षेत्र में अवैध बांग्लादेशी मुसलमान की केन्द्र रहा है दो बार बंगलादेशियों की गिरफ़्तारी हो चुकी है । मुझे इस मामले के पीछे मुझे मुसलमानों से ज्यादा इसाई मिशनरी या नक्सलियों का हाथ होने का भी शक है क्योंकि ज्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में ये मिशनरीयां भोले-भाले आदिवासियों को बहला-फुसलाकर इसाई बनाने का प्रयास करती रहती हैं या फिर इन क्षेत्रों में नक्सलीयों का प्रभाव रहता है । साधू समाज धर्मांतरण को रोकने का लगातार प्रयास करता रहा है जो दोनों के हितों को नुक़सान पहुँचता है इसीलिए इन दोनों में उनके प्रति नफरत का भाव रहता है समय-समय पर इन मिशनरीयों के द्वारा समय-समय पर साधुओं पर हमले भी होते रहे हैं विशेषकर कांग्रेस शासित राज्यों में इन मिशनरीयों के पीछे सोनिया गाँधी और कैथोलोक चर्च का हाथ होने की आरोप लगते रहे हैं महाराष्ट्र में भी कांग्रेस समर्थित सरकार है इसलिए आतंकी एवं मिशनरी के होंसले बुलंद होना लाजमी है अत: इस मामले में उपरोक्त सभी सवालों की गहराई से जाँच करने की आवश्यकता है और दोषियों पर फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाकर शीघ्र अति शीघ्र फैसला कर कड़ी से कड़ी सजा देने की आवश्यकता है | ताकि भविष्य में कोई इस तरह का दुस्साहस न कर सके | जय हिन्द    

7 comments:

  1. Thakur ji
    Absolutely agreed with you.
    Really like your this blog.
    This is not only murder of Sadhu Sant but also a dirty step against Hindusam by Communist and Missionary

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  2. मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि पालघर के गांव में बच्चा चोर की अफवाह की वजह से संतों को हत्या हुई । नहीं साब नहीं 78 साल के भोले बाले संत जिनसे ठिक से चला भी नहीं जा रहा था गांव की सरपंच के अनुसार तीनों ने अपनी पहचान बताई थी आधार की पहचान भी दिखाई थी जुन्ना अखाड़ा की भी पहचान दिखाई थी । और इसी कारण हत्यारों ने 3 घंटे तक जानलेवा हमला नहीं किया था लेकिन जैसे ही पुलिस और लोकल नेता वहां पहुंचे तो तीनों की निर्मम हत्या कर दी गई ।
    कम्युनिस्ट और मिशनरियों ने संतो कि हत्या ही नहीं की बल्कि हमारी संस्कृति को भी चुनौती दी है
    चुनौती कबूल है
    लोक डॉउन हुआ है
    हम डाउन नहीं हैं
    जय हिन्द , वन्दे मातरम

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  3. मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि पालघर के गांव में बच्चा चोर की अफवाह की वजह से संतों को हत्या हुई । नहीं साब नहीं 78 साल के भोले बाले संत जिनसे ठिक से चला भी नहीं जा रहा था गांव की सरपंच के अनुसार तीनों ने अपनी पहचान बताई थी आधार की पहचान भी दिखाई थी जुन्ना अखाड़ा की भी पहचान दिखाई थी । और इसी कारण हत्यारों ने 3 घंटे तक जानलेवा हमला नहीं किया था लेकिन जैसे ही पुलिस और लोकल नेता वहां पहुंचे तो तीनों की निर्मम हत्या कर दी गई ।
    कम्युनिस्ट और मिशनरियों ने संतो कि हत्या ही नहीं की बल्कि हमारी संस्कृति को भी चुनौती दी है
    चुनौती कबूल है
    लोक डॉउन हुआ है
    हम डाउन नहीं हैं
    जय हिन्द , वन्दे मातरम

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  4. मैं इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि पालघर के गांव में बच्चा चोर की अफवाह की वजह से संतों को हत्या हुई । नहीं साब नहीं 78 साल के भोले बाले संत जिनसे ठिक से चला भी नहीं जा रहा था गांव की सरपंच के अनुसार तीनों ने अपनी पहचान बताई थी आधार की पहचान भी दिखाई थी जुन्ना अखाड़ा की भी पहचान दिखाई थी । और इसी कारण हत्यारों ने 3 घंटे तक जानलेवा हमला नहीं किया था लेकिन जैसे ही पुलिस और लोकल नेता वहां पहुंचे तो तीनों की निर्मम हत्या कर दी गई ।
    कम्युनिस्ट और मिशनरियों ने संतो कि हत्या ही नहीं की बल्कि हमारी संस्कृति को भी चुनौती दी है
    चुनौती कबूल है
    लोक डॉउन हुआ है
    हम डाउन नहीं हैं
    जय हिन्द , वन्दे मातरम

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  5. Truth will prevail in the end.

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