Ashok Thakur

Wednesday 8 April 2020

भारत में लाकडाउन की सफलता की समीक्षा एवं जरूरी उपाय

          भारत में कोरोना के खिलाफ संघर्ष तो काफी पहले प्रारंभ हो गया था और अनेक राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर लाकडाउन व कर्फ्यू लगाने प्रारंभ कर दिए थे केरल में तो पहला मामला 30 जनवरी को आ गया था |  पंजाब ने भी प्रोएक्टिव होकर फैसले लेने प्रारंभ कर दिए थे | भारत सरकार ने भी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन जी के नेतृत्व में काफी जल्दी मोर्चा संभाल लिया था | सबसे अच्छी बात ये थी कि डॉ हर्षवर्धन स्वयं एक डॉक्टर हैं और विषय की गंभीरता को ज्यादा अच्छे तरीके से समझ सकते हैं | उन्होंने अनेक प्रोएक्टिव कदम भी उठाये और माननीय प्रधानमंत्री जी को भी लगातार अपडेट करने का काम किया | इसीलिए सभी फैसले तेजी से लिए गए | दिल्ली सरकार ने भी समय रहते कुछ सख्त फैसले लेने का काम किया |  
          परन्तु जब 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू के लिए प्रधानमंत्री जी ने लोगों से आह्वान किया तब ये अंदाजा हो गया था कि स्थिति काफी गंभीर होने जा रही है और 24 मार्च को सम्पूर्ण लाकडाउन के साथ देश ने कोरोना के जंग छेड़ दी थी | आज लाकडाउन के 15 दिन पुरे होने जा रहे हैं और अगले छ: दिन में 21 दिन का लाकडाउन भी पूरा हो जाएगा | तो इस बात का आंकलन करना अति आवश्यक है कि आखिर इन 15 दिनों में हमने क्या पाया और क्या खोया | आखिर कोरोना के विरुद्ध संघर्ष में हम आज कहां खड़े हैं और लाकडाउन के 21 दिन बाद क्या स्थिति रहेगी |
      यदि हम आकड़ों पर नजर डालें तो देखेंगे कि देश में 30 जनवरी को पहला मामला आया था और 30 जनवरी से लेकर 01 मार्च तक देश में संक्रमण के केवल 3 ही मामले थे | जोकि जनता कर्फ्यू बाले दिन तक अर्थात 22 मार्च को देश में 365 हो गए थे | शायद इसी बजह से देश के प्रधानमंत्री ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्र के नाम सन्देश दिया और देश के अन्दर सम्पूर्ण लाकडाउन की घोषणा की | उस दिन तक देश में कुल 486 मामले हो चुके थे | ये गौर करने योग्य बात ये है कि इस दौरान ज्यादातर मामले विदेशों से लौटने बाले भारतीय नागरिकों के थे और ज्यादातर को विमानतल से ही क्वारटाइन कर लिया गया था परन्तु worldometer की कोरोना अपडेट के अनुसार  लाकडाउन के पश्चात 26 मार्च को 160, 30 मार्च को 227 और 01 अप्रैल से लेकर 07 अप्रैल तक औसतन लगभग 565 नये कोरोना संक्रमण के मामले  आये | इस प्रकार 07 अप्रैल मध्य रात्रि तक कुल कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 5351 हो गयी है जिसमें कोरोना वायरस से मरने बाले 160 मरीज और ठीक होने बाले 468 मरीज भी शामिल हैं | इस बात में कोई संशय नहीं है कि यूरोपीय और अमेरिकी देशों के मुआबले हमारी स्थिति काफी बेहतर है परन्तु लगातार विस्फोटक बनी हुई है और तबलीगी जमात जैसे सिरफिरों ने इसे और भयावह बना दिया है | इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के अन्दर लाकडाउन के बाबजूद संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं | तब सवाल यह उठता है कि आखिर कमी कहां है और अगर संक्रमण के मामले लाकडाउन के बाबजूद लगातार बढ़ते रहे तो 14 अप्रैल के बाद हमारी रणनीति क्या होनी चाहिए | 
          सबसे बड़ी बात तो ये है कि आज भी समाज का एक तबका लाकडाउन और संक्रमण को गंभीरता से नहीं ले रहा है और अनेक स्थानों पर लाकडाउन को मजाक बनाकर रख दिया है | अनेक सरकारों ने भी जाने-अनजाने इसके मायने ही बदल दिए हैं और लोगों की जान को खतरे में डालने का काम किया है | मैं ज्यादा दूर के बात तो नहीं करूंगा परन्तु दिल्ली में आस-पास के माहौल के आधार पर मेरा कुछ अवलोकन है यदि हम दिल्ली सरकार की बात करें तो चाहे निजामुद्दीन के मकरजी भवन में लाकडाउन की धज्जियाँ उड़ाने का मामला हो या हजारों की संख्या में दिल्लीवासियों का आनंद विहार एवं दिल्ली बॉर्डर पर इकठ्ठा होना हो | दोनों ही घटनाओं से दिल्ली सरकार के प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठे हैं और दिल्ली पुलिस की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठने लाजमी हैं | दिल्ली के स्लम बस्तियों की बात करें तो आपको झुण्ड के झुण्ड खड़े मिल जायेंगे | उनको इस बात का इल्म ही नहीं है कि कोरोना वायरस कितना खतरनाक है और एक बार उनकी बस्ती में घुस गया तो उसको रोकना नामुमकिन है | न तो दिल्ली सरकार की ओर से इनको समझाने बाला कोई है और न ही दिल्ली पुलिस ही कुछ करने को तैयार है इसी प्रकार अनाधिकृत, जो अब अधिकृत हैं, कालोनियों का हाल है | यदि कहीं थोड़ी कसर रह गयी है तो दिल्ली सरकार के कम्युनिटी भोजनालयों ने पूरी कर दी है | सामाजिक दुरी को मजाक बनाकर रख दिया | जहां एक ओर डॉक्टर, विशेषज्ञ एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन सामाजिक दुरी को अत्यंत जरुरी बता रहे हैं बहीं दिल्ली सरकार लोगों को अपनी नासमझी और राजनैतिक महत्वकांक्षा के चलते खतरे में धकेल रही है | बैसे तो सुनने-कहने अच्छा लगता है कि कुछ सामाजिक संस्थाएं एवं उनसे जुड़े लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं परन्तु लाख चाहकर भी इस तरह के कार्यों में सामाजिक दुरी बनाय रखना अत्यंत मुश्किल है और इन लोगों के पास कोरोना संक्रमण से बचने के आधुनिकतम उपाय भी नहीं है | वे दूसरों का भला करने के चक्कर में जाने-अनजाने अपनी और दूसरों की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं | फिर सवाल उठता है कि लाकडाउन को सफल बनाने के लिए क्या करना चाहिए | 
          मुझे लगता है कि पहले ही दिन से दिल्ली सरकार को एक केंद्रीकृत व्यवस्था के तहत काम करना चाहिए था | जिलाधिकारी और एसडीएम के अंतर्गत स्थानीय पुलिस, सरकारी कर्मचारियों और स्वेच्छा से योगदान देने बाले सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों का मोहल्ला स्तर पर एक मजबूत नेटवर्क खड़ा करना चाहिए था जो जिलाधिकारी के तहत काम करेगा | इस काम में स्थानीय RWA को भी शामिल किया जा सकता है |  केवल बही जो भागीदारो योजना के तहत दिल्ली सरकार से जुडी हुई हैं | इनको पहले प्रशिक्षित कर अपनी सुरक्षा के बारे में जागृत करना चाहिए था  | फिर इनके नेटवर्क के माध्यम से जरुरतमंदों को चिहिन्त करना चाहिए था क्योंकि इस काम को सरकारी अधिकारी उतना प्रभावी तरीके से नहीं कर सकते हैं जितना की ये सामाजिक लोग कर सकते हैं क्योंकि ये लोग ज्यादा नजदीक से लोगों को पहचानते हैं और इससे भ्रष्टाचार की संभावना भी कम होती है इसके पश्चात सरकार को केवल सुखा राशन उन तक पहुचना चाहिए था | क्योंकि लाकडाउन के कारण लोगों के पास ज्यादा काम नहीं है इसलिए खाना बनाकर देने का कोई औचित्य नहीं है वो स्वयं ये काम कर सकते हैं और इससे उनके लिये समय काटना भी आसान होता है जो इस समय सबसे मुश्किल काम है और व्यक्ति को बाहर निकलने के मजबूर करता है | अत: राशनकार्डधारियों को राशन की दुकानों और अन्य जरूरतमंदों को समाजिक नेटवर्क के माध्यम से राशन घर तक पहुचना चाहिए | इससे लाकडाउन को ज्यादा प्रभावी तरीके से सफल बनाया जा सकता है | इसके साथ-साथ केंद्रीकृत व्यवस्था के चलते संसाधनों का अपव्यय रोका जा सकता था | इससे सामाजिक संस्थाओं के योगदान को भी पहचान मिलती और उनको भविष्य में रचनात्मक कार्यों में जोड़ने का मार्ग भी प्रशस्त होता है ये बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि कोरोना से लड़ने के लिए भारत सरकार एवं राज्यों सरकारों के पास सीमित संसाधन हैं और ये कोई नहीं जानता कि कोरोना के खिलाफ ये जंग कब तक जारी रहेगी | 
          इसके अलावा दिल्ली सरकार को भीलवाड़ा की तर्ज पर कोरोना संक्रमण के टेस्ट की संख्या बढानी होगी | इसके लिए दिल्ली सरकार को सभी निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम, निजी लैब या क्लिनिकों एवं उनसे जुड़े डाक्टरों व नर्सिंग स्टाफ को अपनी निगरानी में ले लेना चाहिए | सामाजिक संस्थाओं की ही तर्ज पर एक केंद्रीकृत तंत्र खड़ा करना चाहिए | जो दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर एक टीम की तरह काम कर सके और एक तरफ से खतरे वाले क्षेत्रों में जांच में तेजी लायी जा सके | इन अस्पतालों, नर्सिंग होम, लैब एवं क्लीनिकों में से किनमें कोरोना संक्रमण और किनमें अन्य आपातकालीन मरीजों को देखा जायेगा | ये भी दिल्ली सरकार को तय करना चाहिए | ताकि एक टीम की तरह इस जंग को लड़ा जा सके | 
          परन्तु मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ लोग इस संघर्ष को समाचार माध्यमों और सोशल मीडिया के माध्यम से लड़ने की कोशिश कर रहे  हैं | जबकि जमीन पर हालात बिलकुल भिन्न है आज भी वास्तविक जरुरतमंदों तक सुविधाएं नहीं पहुच रही हैं | आज भी लोग सामाजिक दुरी और जरूरी सावधानियों को नजरंदाज कर भीड़ में जा रहे हैं | ऐसी किसी भी गतिविधि जिससे संक्रमण बढने का खतरा है उसको तुरंत रोकना होगा | फिर वह चाहे कोम्मुनिटी भोजनालय, राशन दूकान या सब्जी बाजार ही क्यों न हों | यूरोपीय देशों ने जिस प्रकार लाकडाउन को प्रभावी बनाने के लिये घर तक जरूरी सामान पहुँचाने का तंत्र खड़ा किया है | हम उसके आसपास भी नहीं हैं और न ही उसपर कोई प्रयास कर रहे हैं | इसी प्रकार पुरे स्वास्थ्य सेवाओं के तंत्र को एकीकृत करना होगा | ये तो ईश्वर की ही कृपा है कि अभी भारत में कोरोना यूरोपीय एवं अमेरिकी देशों की तरह कम्युनिटी लेबल तक नहीं पंहुचा है फिर भी हम संक्रमण को संम्पूर्ण लाकडाउन के बाबजूद आगे बढ़ने से नहीं रोक पा रहे हैं | सरकारों को इस बात को भी समझना होगा कि लाकडाउन को वो लम्बे समय तक जारी नहीं रख सकते हैं वरना आर्थिक मोर्चे पर कोरोना के प्रकोप से भी ज्यादा भयानक स्थिति बन सकती है | अत: जितना जल्दी इसको नियंत्रण में लाया जाये उतना ही अच्छा है अन्यथा न तो इसको रोक पाना संभव होगा और न ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाल पाना संभव होगा | मेरा अंत में यही सुझाव है कि हमें समस्त पूर्वाग्रहों, महत्वकांक्षाओं, मतभेदों और निहित राजनैतिक स्वार्थों को छोड़कर एक परिवार की तरह काम करना होगा | तभी हम इस वैश्विक संकट से बाहर आ सकते हैं | 
   
         



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