Ashok Thakur

Tuesday 14 April 2020

कोरोना वैश्विक संकंट के लिए जिम्मेदार कौन? - अशोक ठाकुर

Ashok Thakur 

          पिछले कल  भारत के प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन था | उन्होंने अन्य देशों की तरह तालाबंदी को 03 मई 2020 तक के लिए बढ़ाने की घोषणा करते हुए कहा कि अभी इस महामारी को रोकने के लिए तालाबंदी, शारीरिक दुरी, पृथकवास, मुख्पट्टी एवं शुद्धिकरण के अलावा कोई उपाय नहीं है | इसके तुरंत  बाद दोपहर दो बजे मुंबई के बांद्रा स्टेशन और अन्य शहरों के मजदूरों ने अपना धैर्य खो दिया और उनका सड़कों पर उतरना भयावह था | क्योंकि 21 दिन तालाबंदी के बाबजूद भारत में कल रात तक कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 11 हजार हजार पार कर गयी है | अर्थात कोरोना आम लोगों के बीच मौजूद है और इनमें अगर एक भी संक्रमित घुस जाता है तो हालात और बिगड़ सकते हैं |
          दूसरी तरफ अगर हम विश्व के आकड़ों पर गौर करें तो आज रात्री तक विश्व में कोरोना संक्रमित मरीजों के संख्या 20 लाख पार कर जाएगी |  अभी तक कोरोना संक्रमण लगभग 1 लाख 26 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले चूका है अकेले अमेरिका में ही मरीजों की संख्या 6 लाख पार हो गयी है पूरा यूरोप मृत्यु शःया पर पड़ा है | मुझे आज  दुनिया के महान विज्ञानिक आइंस्टीन के परमाणु परीक्षण के समय गीता को उद्धृत कर कही वो लेने याद आ रही हैं  "श्रीभगवानुवाच | कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो | लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: | ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: || अर्थात मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और सृष्टि का नाश करने बाला हूँ परन्तु शायद आइंस्टीन जैसे विज्ञानिक ने भी कभी ये कल्पना नहीं की होगी की एक दिन दूरबीन से भी दिखाई नहीं देने वाला एक वायरस का बढ़ा हुआ विकराल रूप सारी पृथ्वी को लाचार और मजबूर बना देगा | उसके सामने बड़ी-बड़ी महाशक्तियां घुटने टेकने को मजबूर हो जाएँगी | दूसरा मुझे आज रामायण की एक चौपाई याद आ रही हैं जिसमें अंहकार और दंभ को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कहा है | आज अमेरिका और यूरोपिय देश जो अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं का दंभ भरते थे और उन्होंने काफी हद तक मृत्यु दर पर भी नियंत्रण पा लिया था यही दंभ उनपर भारी पड़ गया | डोनाल्ड ट्रम्प तो अंतिम समय तक गलतफहमी का शिकार रहे और आज पूरा अमेरिका उसका खामियाजा भुगत रहा है | सभी स्वास्थ्य सुविधाएं और इंतजाम बौने साबित हो रहे हैं
          अब सवाल ये उठता है कि पुरे विश्व को इस संकट में धकेलने के लिए कौन जिम्मेदार है क्या कभी इस पर किसी की जबाबदेही तय होगी भी या नहीं | क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन की भूमिका की भविष्य में जाँच होनी चाहिए या नहीं | वैसे तो मेरा मानना है कि अभी हम सबको अपनी पूरी शक्ति के साथ इसे वायरस को नियंत्रण में लाने का काम करना चाहिए | परन्तु एक बार ये महामारी नियंत्रण में आ जाये | तो फिर पूरी इमानदारी के साथ जाँच भी होनी चाहिए और आत्ममंथन भी होना चाहिए कि आखिर  इस संकट के लिए कौन जिम्मेदार है | उनको दुनिया के सामने लाना ही चाहिए | 
          इसलिए अभी तत्काल हम इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं कि ये चीन का जैविक हथियार है जो वुहान की एक लैब इंस्टिट्यूट आफ वाईरोलोजी से लीक हुआ है या ये वायरस किसी पशु-पक्षी या सी-फ़ूड के माध्यम से वुहान में आया है या चीन के विज्ञानिकों ने कनाडा की नेशनल माइक्रो बायोलॉजी लैब से चुराया है या फिर दुनिया के सबसे बड़े आमिर दानी बिल गेट्स और दवा कम्पनियों की मिली भगत का परिणाम है बिल गेट्स वास्तव में दानी हैं या बगुला भगत है या भेड़ की खाल में भेड़िया है | लेकिन अभी तक ये सब केवल कहानियाँ (Theory)  हैं और जाँच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है |
          परन्तु इन सभी के आब्जुद कुछ सवाल हैं जिनपर तुरंत विचार करना और निर्णय लेना अति आवश्यक है क्योंकि अगर अभी निर्णय नहीं लिया तो ये विश्व के लिए घातक हो सकते हैं पहला सवाल है कि अगर चीन को नबंबर के अंत में इस महामारी और इसके खतरनाक संक्रमण के बारे में जानकारी मिल गयी थी  तो उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से दुनिया के अन्य देशों को समय रहते क्यों नहीं चेताया | उसने इस सच्चाई को 6 हफ्ते तक क्यों छुपाये रखा | दूसरा सवाल ये खड़ा होता है कि अगर चीन इसको वुहान के अलावा चीन के अन्य शहरों में फ़ैलाने से रोकने में कामयाब हो गया था तो स्वभाविक है कि इसे दुनिया के अन्य देशों में फ़ैलने से भी रोका जा सकता था | लेकिन उसने ऐसा नहीं किया | चीन ने वुहान के निवासियों को अपने अन्य शहरों में जाने से तो रोका परन्तु विश्व के अन्य देशों में जाने से रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया | चीन के शहर वुहान से लाखों यात्री एवं पर्यटक लगातार दुसरे देशों में क्यों जाते रहे | क्या ये एक साजिस के तहत जानबूझकर किया गया तो विश्व को तुरंत सावधान होने की आवश्यकता है | इससे पहले भी 2002 -03 में सार्स वायरस फैलने के दौरान भी जानकारी छुपाई थी जिसके लिए उसे उस समय WHO से कड़ी लताड़ भी पड़ी थी | तत्कालीन WHO के डायरेक्टर जनरल ने चीन के पशु बाजारों से वायरल संक्रमण के खतरों को लेकर आगाह किया था | इसके बाबजूद चीन ने केवल चुप रहा बल्कि वास्तविक आंकड़ों को भी छुपाने का काम किया | इसलिए विश्व को तुरंत ये तय करना होगा कि चीन पर कितना और कैसे भरोसा किया जा सकता है करना भी है या नहीं करना है |
          आखिर WHO ने सही समय पर अन्य देशों को क्यों नहीं चेताया | उसने कई हफ्तों तक कोरोना वायरस के एक दुसरे से फैलने की संभावना से इन्कार क्यों किया | यहाँ तक कि एक दुसरे से फैलने की ताइवान की घोषणा, जोकि उनके फाइनेंसियल टाइम्स में प्रकाशित भी हुई, को क्यों नजरंदाज किया गया | न केवल नजरंदाज किया बल्कि 14 जनवरी को ट्विट में लिखा कि कोविड-19 के मामले में साफ नहीं है कि ये इंसानों से इंसानों में फैलता है जब अमेरिका ने चीन पर कोरोना मामले को छुपाने का आरोप लगाया तो WHO ने चीन का वचाव क्यों किया और कहा कि ये वुहान तक सीमित है इसलिए घबराने के जरूरत नहीं है यहाँ तक कि WHO के डायरेक्टर जनरल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता की ये दुनिया में फैलेगा और मौतें होंगी इसके अलावा यात्राएँ चालू रखने की भी सलाह दी | जबकि इस सलाह के 3-4 दिन के अन्दर चीन में मामले 79000 पार कर चुके थे और वायरस दुनिया के अन्य देशों में फ़ैल चूका था | वैसे तो WHO के डायरेक्टर जनरल पर इससे पहले भी सूचनाएं छुपाने के आरोप लग चुके हैं | इसलिए दुनिया के सामने अब सबसे बड़ा सवाल है कि अगर WHO का इतना गैर-जिम्मेदाराना रवैया है तो आगे उसपर कैसे भरोसा किया जा सकता हैं उपरोक्त तथ्यों के आधार पर इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि WHO के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी किसी साजिस का हिस्सा हों | इसलिए दुनिया के देशों को इसपर तुरंत फैसला लेना होगा कि क्या उनको WHO के भरोसे इस लड़ाई को लड़ना है या नहीं | 
          इसके अलावा अमेरिका और यूरोप के देशों के नेतृत्व को भी आत्म मंथन करना होगा कि आखिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी | आखिर इन देशों का ख़ुफ़िया तंत्र भी क्यों वेबस क्यों हो गया और इन देशों को इस गंभीर खतरे से चेताने में नाकाम क्यों हो गया | राजनैतिक स्तर पर फैसले लेने में इतनी देरी क्यों हो गयी |
          भारत की राजनैतिक शक्ति को भी अपने दंभ से बाहर आकर जमीनी हकीकत को समझना होगा | पहले दिल्ली फिर मुंबई, सुरत, अहमदावाद और न जाने कितने शहरों के मजदुर पलायन को बेताव हैं हजारों की संख्या में सडकों पर उतर आये हैं शारीरिक दुरी तो दूर की बात है वे एक-एक कमरे में झुंडों में रह रहे हैं अगर एक भी मरीज इनमें घुस गया तो हमारे हालात भी अमेरिका की गरीब बस्तियों ब्रोंक्स एवं क्वींस जैसे बन सकते हैं क्योंकि इनमें इतनी घनी आबादी है जो लाखों लोगों के संक्रमण और हजारों लोगों की मौत का कारण बन सकती है | इन घटनाओं की जबाबदेही भी तय करनी होगी कि आखिर ये परिस्थितियाँ बनी तो क्यों बनीं |
           अंत में मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम और पूरा विश्व इस संकट से जल्द से जल्द बाहर आयें और विश्व के अन्दर बंधुत्व और भाईचारे को स्थापित कर सकें । विश्व को संकट में  डालने बालों को दंड देंगे तथा इससे घटना से सबक लेकर संकल्प लेंगे कि हम "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।  के मूल मन्त्र को सार्थक करेंगे


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