Ashok Thakur

Monday 20 January 2020

कांग्रेस का धोषणा पत्र देश को जोड़ने की बजाय तोड़ने बाला अधिक दिखाई देता है - अशोक ठाकुर  

चुनाव से पहले राजनैतिक पार्टियों द्वारा अपना घोषणा पत्र जारी करना एक परंपरा है सामान्य तौर पर राजनैतिक पार्टियाँ घोषणापत्र के माध्यम से अपना एजेंडा स्थापित करती हैं और अगले पांच बर्षों के लिये अपनी सरकार के लक्ष्य, नीतियाँ एवं सोच प्रकट करती हैं घोषणा पत्र तैयार करते हुए समाज के विभिन्न बर्गों, दबाब समूहों एवं समर्थकों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है  मुझे पूरी उम्मीद है कांग्रेस के निति निर्धारकों
पर जनता को यह तय करना होता है कि क्या वे उनकी नीतियों का समर्थन करती है या नहीं और इसी आधार पर वोट देती हैं परन्तु कांग्रेस द्वारा जारी घोषणा पत्र अनेक मायनों में भिन्न है और अगर हम कहें की कांग्रेस की सोच के अनुसार देश की तकसीर बदला गयी है और मेरे मन में एक सवाल खड़ा होता है कि क्या देश में देशद्रोहियों का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि सत्ता परिवर्तन की चाबी उनके हाथ में आ गयी है और ये सब देखकर कांग्रेस इतने दबाब में आ गयी कि अपने घोषणा पत्र में देशद्रोह की धारा को हटाये जाने को स्थान देने पड़ा है यही नहीं कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद देशद्रोह की धारा के साथ-साथ कश्मीर में अफ्सपा पर पुनर्विचार करने और धारा 370 एवं 35(ए) को बनाये रखने तक को स्थान दिया है और देश की जनता को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है या तो देश ही गलत दिशा में जा रहा है और देशद्रोहियों का प्रभाव बहुत बढ़ है और राजनैतिक पार्टियाँ उनके प्रभाव में नीतियाँ बनाने को मजबूर हो गयीं है या फिर कांग्रेस पूर्ण रूप से भ्रमित है और उसमें देशभक्त हासिये पर आ गये हैं और कांग्रेस की निति निर्धारण में उनकी भूमिका नगण्य रह गयी है
अब सवाल यह उठता है कि क्या कोई राजनैतिक पार्टी देश को कमजोर करने और तोड़ने की बात करने बालों को सरंक्षण देने जैसे विषयों को अपने घोषणा पत्र में स्थान दे सकती है घोषणा पत्र देखने के बाद मैं भी सोचने को मजबूर था कि आखिर ये घोषणा पत्र किसके लिए है क्या कांग्रेस जो कह रही है कि वो चाहती है कि लोग बेख़ौफ़ होकर भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह कहें जो देश की सर्वोच्च अदालत के जजों को खुलकर अफजल का कातिल कहें देश के अन्दर पनपने बाले अलगाववादियों, नक्सलवादियों और आतंकवादियों बेखोफ होकर जनता का कत्ल करें और उनको कानून का कोई डर न हो क्या देश का कानून आमजनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने बाला होना चाहिए या देश के अन्दर अश्थिरता फ़ैलाने को सरंक्षण देने बाला हो और कम से कम उस पार्टी से ये अपेक्षा कतई नहीं की जा सकती है जो छाती ठोककर दिन-रात देश को आजादी दिलाने और उसके लिए सबसे ज्यादा बलिदान देने का दावा करती हो
कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी आज भी उसी सामंतवादी सोच में जी रहे हैं जिसमें इनकी नानी जीतीं थी और उसी सोच के चलते देश को अपनी जागीर समझकर उसपर आपातकाल थोपा था एक कांग्रेसी नेता का राहुल गाँधी से आहात होकर केवल इसलिए पार्टी छोड़ना कि उन्होंने उसको अपने कुते से कम अहमियत दी हो इसका जीता-जागता प्रमाण है अर्थात जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी गरोब देश के अमीर प्रधानमंत्री थे शायद इतने अमीर कि उनका प्रधानमंत्री पद स्वीकार करना तक देश की जनता पर बड़ा एहसान था आजादी के आन्दोलन में भी इतने आमिर लोंगों का शामिल होना बड़ा त्याग है शायद उसी कारण सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे सामान्य परिवार के व्यक्ति के सामने एक भी वोट नहीं मिल पाने के बाबजूद वे भारत के प्रधानमंत्री बन गए इस परिप्रेक्ष में आज के कांग्रेसी नेताओं का त्याग और बलिदान का नारा लाजमी लगता है कांग्रेस के युवराज का तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता बाली कैबिनेट कमेटी का फैसला फाड़ने का कार्य हो या कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष का पद स्वीकार करना हो शायद कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं पर उनका बहुत बड़ा अहसान है कम से कम उनके क्रिया कलापों और निर्णय लेने प्रक्रिया से तो ऐसा ही दिखाई देता है मुझे लगता है कि उन्होंने पेरिस एवं इटली छोड़कर यहाँ गरीब देश में रहना स्वीकार किया ये भी देश के उपर उनका बहुत बड़ा अहसान है भले ही आज भी उनकी आत्मा वहीं पर बसती हो
लेकिन में अब  कांग्रेस के कर्णधारों से एक सवाल जरुर पूछना चाहूंगा कि आज कांग्रेस के कौन ऐसा नेता है जिसने देश की आजादी के आन्दोलन में भाग लिया है और आजादी के बाद कौन सा एक काम किया जो देश की एकता और अखंडता को अक्षुण रखने में सहायक सिद्ध हुआ हो आखिर वे आजाद भारत में गोवा, दमन द्वीप को शामिल करने के इच्छुक क्यों नहीं थे  बेरुवाड़ी और कच्छ पकिस्तान को छोड़ देने के लिए क्यों तत्पर थे  कच्छ पर तो पिछली मनमोहन सिंह सरकार का रुख भी आश्चर्यजनक था पानी पी-पीकर कोसने बाले राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ एवं जनसंघ के कार्यकर्ताओं के संघर्ष एवं बलिदान का ही परिणाम है आज कश्मीर, गोवा, दमन द्वीप, बेरूवाड़ी और कच्छ भारत का अभिन्न हिस्सा हैं | जवाहर लाल नेहरु का तिब्बत की भूमि को बंजर कहकर छोड़ देना या नेपाल और बर्मा के प्रस्तावों पर गलत रुख का परिणाम आज तक देश भुगत रहा है और सोनिया गाँधी की जिद के कारण आज नेपाल का माओवादियों के हाथ में जाना भी अत्यंत चिंताजनक है कश्मीर से कट्टरवादियों के द्वारा जब कश्मीरी पंडितों के उपर अत्याचार हो रहे थे वे अपने ही देश में बेघर होने को मजबूर थे परन्तु यही कांग्रेस पार्टी चुपचाप उनको लुटते-पिटते देखती रही है उनकी माँ-बहनों की अस्मिता लुटी गयी उनके घरों और जमीनों पर कब्जे कर लिए गए  परन्तु कांग्रेस पार्टी न केवल चुप रही बल्कि इतने बड़े नरसंहार, लूटपाट और अमानवीय अत्याचार के लिए एक भी आदमी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया एक भी आदमी को सजा नहीं मिला
अब एक बार फिर कांग्रेस ऐसे ही लोगों को सरंक्षण देने की बात कर रही है उसने अलगाववादियों, नक्सलवादियों को सरंक्षण देने के लिए देशद्रोह की धारा को समाप्त करने, अफ्सपा को कमजोर करने और धारा 370 एवं 35 (ए) को बनाये रखने जैसे विषयों को अपने घोषणा पत्र में शामिल करने का दुस्साहस किया है कांग्रेस के नेता सैफुदीन सोज़ ने तो खुले आम कश्मीर की आजादी का राग छेड़ा हुआ है कांग्रेस ने उसे उनका निजी ब्यान कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया हो परन्तु कांग्रेस ने कभी उसका विरोध भी नहीं किया है बल्कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार पी चिदंबरम ने भी कश्मीर की स्वायत्ता की बकालत की है | गुलाम नबी आजाद ने झूठे आकड़ों के आधार पर सीधे सेना की करवाई पर ही सबाल कर उसका मनोबल गिराने की कोशिश की है | इससे पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री के बेटे और कांग्रेस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने तो सेना प्रमुख को सड़क का गुंडा तक कह  डाला है मेरा कांग्रेस के युवराज से सवाल है कि आखिर उनकी पार्टी किस-किस के ब्यान से पल्ला झाड़ेगी कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर तो नरेंद्र मोदी सरकार को हटाने के लिए पाकिस्तान से मदद मांगने  के लिए इस्लामाबाद पहुंच गए और गुजरात के चुनाव के दौरान पाकिस्तानियों  को भारत बुलाकर उनसे मदद मांगने का काम किया भले ही उनको कांग्रेस ने आनन-फानन में सस्पैंड कर दिया था परन्तु आजतक पार्टी से निकाला नहीं बल्कि वापिस पार्टी में शामिल कर लिया  | कठुआ रेप कांड में तो गुलाम नवी आजाद के चुनाव एजेंट ने न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने का प्रयास किया और कांग्रेस के नेताओं ने उसपर कारवाई करने की बजाय विपक्ष के साथ मिलकर भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बदनाम करने की कोशिश की थी दुनिया को शांति और भाईचारे का सन्देश देने बाली हिन्दू संस्कृति को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है |

    इसी प्रकार JNU के अंदर भी देश विरोधी नारे लगाने और सर्वोच्च अदालत को अफजल का कातिल कहने बालों के मामले में राहुल गाँधी विना सोचे समझे उनके साथ खड़े होना गंभीर मामला है आखिर जो भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्हाह-इंशा अल्हाह के नारे लगा रहे थे कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने तो सार्वजनिक मंचों और चैनलों पर खुलेआम उनका समर्थन क्यों किया और उसके बाद कोरेगाँव हिंसा में पकडे गये अर्बन नक्सलियों के खुलासे पर तो कांग्रेस सीधे कटघरे में हैं | देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा के मुद्दे पर भी कांग्रेस की नीती स्पस्ट नहीं है और वो कहीं न कहीं अस्थिरता फैलाने बालों के साथ खड़ी नजर आती है | उनके नेताओं के ब्यान भी इसकी पुष्टि करते हैं जिनका पार्टी की तरफ से कभी खंडन भी नहीं आता है अधिक से अधिक कांग्रेस पार्टी निजी ब्यान कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास करती है जोकि उचित नहीं है |
एक बार फिर NRC के मुद्दे पर कांग्रेस की देश विरोधी सोच सामने आई है रोहिग्या मुसलमानों को देश से बाहर भेजने के सरकार के निर्णय पर छाती पीटने बाली कांग्रेस खुलेआम घुसपैठियों के पक्ष में खड़ी हो गयी है यहाँ तक की उनके शासनकाल में चुपचाप हजारों रोहिंग्या देश में आकर चुपचाप बस गए | आज देश के अन्दर एक अनुमान के अनुसार लगभग 5 करोड़ घुसपैठिये हैं जो अबैध तरीके से भारत में रह रहे हैं यहाँ के संसाधनों को उपभोग कर रहे हैं और भारत जैसे जनसँख्या का दबाब झेल रहे देश के रोजगारों का हनन कर रहे हैं जिसका हर्जाना हमारी युवा पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है आखिर हम सबको ये बात तो समझनी ही होगी कि देश के संसाधन सीमित हैं | क्या उनपर देश के नागरिकों का अधिकार है या मानवता के नाम पर उन विदेशियों को उनका उपभोग करने की खुली छुट दी जा सकती है जो मानव कहलाने लायक नहीं है और अपने देश से इसलिए भगाए गए कि उन्होंने ने अपने अमानवीय कार्यों से उस देश की सामाजिक और राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए खतरा बन गए थे क्या वे कल हमारे देश की राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए समस्या नहीं बन जायेंगे क्या हमारे नौजवान खड़े होकर केवल तमाशा देखते रहेंगे और दुसरे देशों के लोग उनकी संभावनाओं को सरकार की गलत नीतियों की बजह से हजम कर जायेंगे | परन्तु दुर्भाग्य से कांग्रेस के नीतियों के कारण ऐसा होता आया है और आज जब माननीय उच्चतम न्यायालय की निगरानी में असम के अन्दर लगभग 40 लाख अबैध लोंगों के पहचान हुई है तो कांग्रेस देश के साथ खड़ा होने की बजाय घुसपैठियों के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है और भाजपा विरोध के अति उत्साह में माननीय उच्चतम न्यायालय को भी कठघरे में खडा करने का प्रयास कर रही है |
    आजादी के समय कश्मीर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी, मनमोहन सिंह के रुख से से लेकर, गोवा, दमन द्वीप, कच्छ या बेरुवाड़ी पर कांग्रेस की सोच समझ से परे है आज बंगलादेशी घुसपैठियों पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी तक का रुख समझ से परे है | मुझे लगता है देश की युवा पीढ़ी को अब कांग्रेस से सवाल जरुर पूछना चाहिए कि आखिर 70 साल देश पर शासन करने बाली कांग्रेस पार्टी देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के मामलों में किसके साथ खड़ी है | देश की सीमायों पर कांग्रेस का क्या रुख है क्या कांग्रेस देश के घुसपैठियों के साथ खड़ी है या घुसपैठियों के खिलाफ खड़ी है आज देश के अन्दर नक्सलियों और अस्थिरता फैलाने बालों का समर्थन देने बाले बुद्धिजीवी बर्ग पर कांग्रेस का क्या पक्ष है क्या देश को तोड़ने की बात करने बालों की ही अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है या उनका विरोध करने बालों की भी अभिव्यक्ति की आजादी होना चाहिए इन सब बिषयों पर अब कांग्रेस का रुख स्पस्ट होना चाहिए  

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