Ashok Thakur

Friday 18 December 2015

सिविल सोसायटी वनाम सरकार का दमनचक्र

     भारत में जब जब संत आगे बढ़े देश व समाज में क्रांति का संचार हुआ और यही क्रांति परिवर्तन का कारण बनी | आचार्य चाणक्य का मार्गदर्शन नन्द बंश के अत्याचारी शासन का अंत बना और गुरु समर्थ रामदास के मार्गदर्शन में हि वीर शिवाजी मुगलों के अत्याचारी शासन की समाप्ति के सूत्रधार बने और शायद देश की युवा पीढ़ी यह नहीं जानती की स्वामी दयानंद ही १८५७ की क्रांति के वास्तविक सूत्रधार थे आजादी के आन्दोलन में अनेक संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और स्वामी विबेकानंद का उदघोष उठो जागो और आगे बढ़ो तथा अरविन्द घोष का चिंतन ही अंग्रजों की निरंकुशता व अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष के दौरान वीर सावरकर, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोश इत्यादि क्रांतिकारियों की शक्ति का मूल मन्त्र बना था परिणाम स्वरूप हमें आजादी प्राप्त हुई पर आधी अधूरी  | १९७७ के आपातकाल के विरुद्ध गुरूजी का चिंतन और जयप्रकाश नारायण का त्याग ही युवाओं की प्रेरणा बना और अंतत: संघर्ष में विजय मिली |
      आज एक वार फिर चारों ओर अराजकता का माहौल है एक तरफ तो करोंड़ों लोग भूख से मरने को लाचार हैं तो दूसरी तरफ लाखों करोड़ रूपये लुट कर विदेशी बैंकों में जमा कर दिए गए हैं जो देश की तरक्की में बाधक बन रहे हैं और यही धन स्विट्जरलैंड व इटली के लोगों की अयाशी का साधन बन रहा हैं सत्ता में बैठे लोग निरंकुशता की समस्त हदें पर कर रहे है एक तरफ तो विदेशी भाषा के माध्यम से समृद्व व उच्च बर्ग को रोजगार सुरक्षा मिल रही है और गांव देहात व माध्यम बर्ग के बालक प्रतिभाशाली, मेधावी व मेहनती होते हुए भी विदेशी भाषा के करना प्रतिस्पर्धा में पिछड़ कर बेरोजगार रहने के लिए मजबूर हैं शिक्षा को महंगा और अंग्रेजी का स्तर बढ़ाया जा रहा है ताकि माध्यम व ग्रामीण बर्ग प्रतिस्पर्धा से बाहर ही रहे |  दूसरी तरफ विदेशी व देशी कम्पनियों के साथ मिलकर किसानों की जमीनों को, सड़े गले अंग्रजी समय के कानूनों की मदद से, विकास के नाम पर नेता कौड़ियों के भाव खरीद कर बड़ी बड़ी कम्पनियों को मोटी हिस्सेदारी लेकर बेच रहे हैं दिल्ली जैसे शहरों में मकान आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुके हैं और फाईनेंस्रों के माध्यम से बनाबटी तेजी बनाकर आम आदमी की जेब काटी जा रही है चारों तरफ रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार का बोलबाला है जन्म के समय अस्पताल से लेकर मरने के समय शमशान घाट तक विना रिश्वत कोई काम नहीं होता है पुलिस व अपराधी मिलकर लूटपाट व अपराध कर रहे हैं यदि कोई आवाज उठाने की कोशिश करता है बह या तो पुलिस की मार खाकर चुप हो जाता है जैसे की हरियाणा के हरसरू व पलवल में या फिर किसी झूठे केस में फंसाकर जेल में डाल दिया जाता है या फिर जान से हाथ धो बैठता है यदि इक्के - दुक्के  फैसलों को छोड़ दें तो अधिकतर मामलों में न्यायालयों में फैला भ्रष्टाचार भी  इन कम्पनियों के संरक्षण का काम करता है पानी जैसी मुलभुत आवश्यकता की कमी लगातार बढ रही है और पानी को लेकर झगड़े व हत्या आम बात होती जा रही है भू माफियों व बड़ी कम्पनियों ने सरकार के साथ मिलकर नदियों की खादर पर भी  ने कब्जे कर लिए हैं जोहड़ तो कब के लुप्त हो चुके हैं न जाने पानी को लेकर देश व शहरों का क्या भविष्य क्या होगा ईश्वर ही जानता है |
        आज एक बार फिर बाबा रामदेव जैसे संत ने भ्रस्टाचार, भूख व गरीबी मिटाने का बीड़ा उठाया है और पिछले पांच बर्षों से लगातार स्वास्थ्य व भ्रष्टाचार के साथ-साथ  स्वदेशी सामान, स्वदेशी भाषा में शिक्षा व विदेशों में जमा देशी मुद्रा को भारत लाना इत्यादि विषयों पर जन जागरण अभियान चलाया है जिसके सकरात्मक परिणाम अब आने लगे हैं और इनके खिलाफ जहाँ जहाँ भी आवाज उठी है लोगों का समर्थन मिलने लगा है  परन्तु कुछ लोग यह तो अनजाने में यह जानबूझकर किसी के इशारे पर अन्ना और बाबा रामदेव के आन्दोलन की तुलना कर रहे हैं वे वास्तव में जानते नहीं कि अन्ना को मिलने  बाले समर्थन का कारण भी बाबा रामदेव द्वारा फैलाई चेतना ही है अन्ना के आन्दोलन को बाबा के लाखों भगतों का अपार समर्थन मिला और सरकार झुकी बरना सरकार के कान में जून तक न रेंगती और उनका हस्र भी निगमानंद जैसा हो सकता था दूसरी तरफ बाबा रामदेव सरकारी दलालों की चाल को समझ रहें हैं और कह रहे हैं की व्यक्ति अर्थात रामदेव या अन्ना महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि मुद्वा बड़ा है उदेश्य महान है और हमें उसपर ध्यान लगाकर पूरी शक्ति के साथ संगठित संघर्ष करना चाहिए यही बजह है कि मतभेद के वावजूद बाबा रामदेव ने अन्ना के अनशन को समर्थन जारी रखा जबकि अन्ना ने ऐसा नहीं कर सके काश वे ऐसा कर सकते और अन्ना को यह भी समझ लेना चाहिए की सरकार उनके शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक आन्दोलन से नहीं बल्कि आन्दोलन के करना युवाओं व अन्य देशवासियों के भड़क जाने से होने वाली हिंसा से डर रही है सरकार यह जानती है की यदि युवा जिनकी संख्या आज देश की ४०% है यदि भड़क गए तो नियंत्रित करना असंभव होगा | दिल्ली की स्थिति इजिप्ट व लीबिया से भी भयावव हो सकती है और बड़े स्तर पर हिंसा भी हो सकती थी अर्थात आजादी जिस प्रकार गाँधी के अहिंसापूर्ण आन्दोलन से क्रांतिकारियों की ताकत बढ़ने का खौफ अंग्रजों को रहता था और भगत सिंह के बलिदान के बाद खड़ी हुई शक्ति आजादी की लड़ाई का आधार बनी ठीक उसी प्रकार बाबा रामदेव व अन्ना अहिंसापूर्ण आन्दोलन की सफलता के मूल में भी हिंसा का खौफ ही है यही कारण है की उसने बाबा रामदेव के अनशन में बढती भीड़ को दिल्ली आने से रोकने के लिए ही बर्बरता पूर्ण करवाई करवाई की थी क्योंकि दो दिन बाद लोगों की बढती भीड़ को नियंत्रित करना असंभव हो जाता जिसके परिणाम स्वरूप कुछ भी हो सकता था बाबा रामदेव एक बार फिर दिल्ली से दहाड़ रहे हैं सरकार व कांग्रेस पार्टी की सिटी पीती गूम है और बह किसी तरह देश के सड़े गले कानूनों के पेचीदगियों को सहारा लेकर बाबा रामदेव को लोगों की नजरों में गिरना चाहती है मिडिया में सरकार के कुछ दलाल अटपटे प्रश्न खड़े कर रहे हैं जैसे बाबा की कम्पनियों के व्यापार व बालाकृष्णन, बाबा रामदेव के पासपोर्ट के विवरण के बारे में इत्यादि | अब इन्हें कौन बताये की इससे पहले भी स्वदेशी का एक बड़ा आन्दोलन देश में खड़ा हुआ था परन्तु विकल्प की कमी के कारण असफल हुआ आज बाबा रामदेव ने स्वदेशी के आह्वान के साथ उत्पादन में विकल्प भी दिया जिसके परिणाम स्वरूप स्वदेशी आन्दोलन के परिणाम सकरात्मक आने लगे हैं उत्पादों को बाजार में लाने के लिए पतंजली या उससे जुडी कम्पनियां का मार्का बेहद जरुरी था बरना जाग्रति के बाबजूद लोग विदेशी वस्तुएं अपनाने को मजबूर हो जाते और आज पतंजली के कारण ही करोड़ों लोग योग व आयुर्वेद के साथ साथ स्वदेशी को भी अपना रहे हैं | बाबा रामदेव के ट्रस्टों की सम्पत्ति कोई एक दिन में तो खड़ी नहीं हुई हैं वे तो हजारों करोड़ में पहले भी थी तब तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी सभी नेता चाहे लालू हों या कचालू बाबा के चरणों में लोट कर आशीर्वाद ले रहे थे और जब बाबा ने बिहार में उनको बोटों का आशीर्वाद नहीं दिया तो ठग हो गए  दूसरा सेवा के लिए आधारभूत ढांचा तो चाहिए ही और यदि बाबा रामदेव ने वो खड़ा कर दिया तो इसका लाभ किसे मिल रहा है क्या देशवासियों को नहीं मिल रहा है तो सरकार को आपत्ति क्यों | बाबा व आचार्य बालाकृष्णन के पासपोर्ट में पिता के नाम को लेकर बबाल है जबकि सारा देश जानता है कि सन्यास के वाद सन्यासी के माता पिता उसका गुरु ही होता है अब इन क़ानूनी त्रुटियों का सहारा लेकर बाबा के व्यक्त्तित्व को गिराने कि साजिस सरकार कर रही है जिसमें कुछ मिडिया के लोग भी भागीदार बन रहे हैं क्योंकि मिडिया कौन सा दूध का धुला है उसमें भी भ्रष्टाचार चरम पर है इससे दुर्भाग्यपुरण और क्या हो सकता है
         अत: हमें सावधान रहने की आवश्यकता है और ये नेता बड़े ही धूर्त, लोमड़ी से भी चालाक और रंग बदलने में गिरगिट को भी मात करने वाले हैं बड़े ही मनोबिज्ञानिक हैं और लोंगो की कमजोर मानसिकता का फायदा उठाना भली प्रकार जानते हैं पहले तो इन्होने सामान्य गलतियों को भी अपराध की श्रेणी में रखकर हर आदमी को अपनी नजरों में गिराने का कम किया है ताकि उसमें आवाज उठाने का मनोबल ही न बचे और दूसरा यदि बाबा के दिशा देने से लोग खड़े हो गए तो सिविल सोसायटी पर ब्लैक मेल करने के आरोप लगाकर ध्यान बांटने का प्रयास कर रहे हैं मजे कि बात है कि उन्होंने चालाकी से ब्लैक मेल का अर्थ ही बदल दिया | भला बाबा व अन्ना ने इनसे बदले में क्या लाभ माँगा है और यदि सरकार को लगता है कि जो मुद्दे उठाये हैं उनको जनसमर्थन नहीं मिल रहा है तो डर क्यों रहे हैं लोकतंत्र में मुद्दों पर समर्थन प्राप्त कर सरकार पर दबाब बनाने का काम तो ये नेता समय समय पर स्वयं भी करते हैं और ये काम यदि अन्ना या बाबा रामदेव ने कर दिया तो गलत हो गया | अब इस आन्दोलन से देर सवेर सकरात्मक परिणाम अवश्य ही आयेंगे | इससे एक वार फिर भारत की संत शक्ति का परचम लहराएगा और गीता का श्लोक सार्थक होगा कि
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌॥"
  जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ॥

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